प्रपन्नामृत – अध्याय 14
विशिष्टाद्वैत दर्शन के आधारभूत तत्वों में प्रमाण – भाग १/३
🔺काञ्चीपुरी के पुर्व भागमें भरतजी के अंश से अवतीर्ण दाशरथि स्वामीजी का प्रादुर्भाव हुआ।
🔺अपने मामाजी रामानुजाचार्य के सन्यास का समाचार सुनकर वें रामानुजाचार्य से समाश्रित होगये।
🔺तदनन्तर श्री कुरेश स्वामीजी भी श्री रामानुजाचार्य द्वारा भगवत् शरणारगति प्राप्त किये।
🔺एक समय यादवप्रकाश की माताजी ने यादवप्रकाश को समझाया की रामानुजाचार्य शेषजी का अवतार हैं अत: उनसे वैर ना करो और उनसे शरणागति ग्रहण करलो।
🔺अभी भी संशयग्रस्त यादवप्रकाश रामानुजाचार्य के पास आकर शंखचक्रधारण, उर्ध्वपुण्ड्र, काषाय वस्त्र, सगुण ब्रह्म इत्यादि विषयोंपर तर्क वितर्क करने लगें।
🔺रामानुजाचार्य की आज्ञा से कुरेश स्वामीजी शास्त्रप्रमाण सहित निम्न विषयोंपर बोले:
1⃣ शंखचक्र उर्ध्वपुण्ड्र यज्ञोपवीत धारण
2⃣ सन्यास वेष धारण
3⃣ सगुण ब्रह्म
प्रपन्नामृत – चतुर्दश अध्याय
विशिष्टाद्वैत दर्शन के आधारभूत तत्वों में प्रमाण – भाग २/३
शंखचक्र – उर्ध्वपुण्ड्र धारण प्रमाण
* श्रुति: संसार सागर को पार करने की इच्छा से भगवद्भक्त भगवत शरणागति करके अग्नि संतप्त शंख-चक्र धारण करता है।
* सामवेद: चक्र संतप्त तनुब्राह्मण भगवान की सायुज्यता एवं सालोक्यता प्राप्त करते हैं अत: मुमुक्षुओंको दोनों भुजमूलोंमें शंखचक्र तथा ललाटमें उर्ध्वपुण्ड्र धारण करना चाहिये।
* अथर्ववेद: विष्णु के चिन्होंसे अंकित मनुष्य वैकुण्ठ लोकको प्राप्त करते हैं।
* भीष्म पर्व: चारों वर्णोंके लोगोंद्वारा शंखचक्रांकित वैष्णव वन्दनीय एवं पूज्य होते हैं।
* हारीत स्मृति: ताप पुण्ड्रादि पञ्चसंस्कारवान ही महा भागवत कहलाते हैं। पञ्चसंस्कार विहीन अवैष्णव विप्र भी चाण्डाल की श्रेणीमें गिना जाता है।
* वामन पुराण: अवैष्णव ब्राह्मण को भी चाण्डाल मानना चाहिये। वैष्णव अगर वर्णविहीन भी हो तो भी तीनों लोकोंको पवित्र करता है।
* लिङ्गपुराण: अष्टाक्षर मन्त्र को जाननेवाले तप्तचक्रांकित जीव श्री वासुदेव के सेवक ही हैं।
* कठवल्ली श्रुति: शंखचक्रधारी उर्ध्वपुण्ड्र धारण किये हुये तथा मूलमंत्र का उच्चारण करनेवाले महात्मा सर्वोत्कृष्ट हैं।
* स्कन्द पुराण: शंखचक्रांकित क्षुद्र भी स्वर्गलोक के नेता होते हैं। ऐसे ब्राह्मण वैष्णव भूमण्डल में दुर्लभ हैं।
* अर्थवणोपनिषद: भगवान के चरणोंके आकृतिवाले उर्ध्वपुण्ड्र को ललाटमें धारण करनेवाले विष्णु के प्रिय तथा मुक्ति एवं अक्षय पुण्य के भागी बनते हैं।
* महोपनिषद: उर्ध्वपुण्ड्रधारी जीव भगवान नारायण को जानकर जन्ममरणादिक बन्धन तोडकर वैकुण्ठमें निवास करते हैं।
* ब्रह्मरात्र: प्रणव (ॐ) का उच्चारण करके भगवान विष्णु का ध्यान करके तिलक करनेवाले भगवान के सायुज्य को प्राप्त करते हैं।
* वशिष्ठ स्मृति: नाक के मूल से लेकर केश पर्यंत ललाट पर उर्ध्वपुण्ड्र का दोनों पार्श्व एक एक अंगुल चौडा करना चाहिये।
* सनत्कुमार संहिता: पासा का सच्छिद्र उर्ध्वपुण्ड्र धारण करको बीचमें हरिद्रा की श्री धारण करना चाहिये। छिद्र रहित उर्ध्वपुण्ड्र अपवित्र एवं अदर्शनीय होता है।
* पद्मपुराण: जिन वैष्णवोंके गले में तुलसी और कमल की माला, भुजमूलमें तप्त शंखचक्र का चिह्न, और मस्तकपर सुन्दर सच्छिद्र उर्ध्वपुण्ड्र विराजमान हैं उनके द्वारा तीनों लोक पवित्र हो जाते हैं।
* ईश्वरसंहिता: भगवद् विग्रह से स्पर्श कराकर शुद्ध श्रीचुर्ण को मस्तकपर धारण करनेवाले श्रीवैष्णव अश्वमेध का फल प्राप्त कर वैकुण्ठ लोक में सम्मानित होते हैं। अत: सच्छिद्र उर्ध्वपुण्ड्र के बीचमें श्रीचुर्ण धारण करना चाहिये।
प्रपन्नामृत – चतुर्दश अध्याय
विशिष्टाद्वैत दर्शन के आधारभूत तत्वोंमें प्रमाण – भाग ३/३
यज्ञोपवीत – सन्यासवेष धारण प्रमाण
🔹पराशर स्मृति: ब्रह्मचारी, सन्यासी को एक तथा गृहस्थ-वानप्रस्थ को दो यज्ञोपवीत धारण करना चाहिये।
🔹पाञ्चरात्र: सन्यासी को दो काषाय वस्त्र, त्रिदण्ड, कोपीन, कटिसुत्र, कमण्डल, सच्छिद्र उर्ध्वपुण्ड्र, तुलसी कमलाक्ष माला, शंखचक्र तथा एक यज्ञोपवीत धारण करना चाहिये।
सगुण ब्रह्म प्रमाण
🔹उपनिषद्: ब्रह्म सर्वज्ञ है और सभी चीजोंको अलग अलग रूपसे तत्त्वत: जानता है।
🔹परब्रह्म परमात्माकी अनेक शक्तियाँ हैं। ज्ञान-बल तथा अनेक क्रियाएँ हैं। परब्रह्म अनेक कल्याणगुणोंसे युक्त हैं।
नारायण परत्व प्रमाण
🔹सभी वेदमंत्र नारायण को ही परब्रह्म बतलाते हैं।
🔹नारायण ही सर्वश्रेष्ठ तथा सर्वथा शुद्ध हैं।
🔹सृष्टि के पूर्वकालमें केवल नारायण ही थे। न तो ब्रह्मा थे न रुद्र।
🔹महाभारतमें नारायण को ही सर्वश्रेष्ठ आश्रय बतलाया है।
🔹शास्त्रोंमें नारायण को ही वास्तविक माता पिता आचार्य बतलाया है।
🔹नारायण ही जगत्कारण हैं।
🔹विष्णु धर्मोत्तर पुराणमें भी सनातन भगवान विष्णु की ही शरणागति बतलायी गयी है।
श्री कुरेशाचार्य के प्रमाणोंसे यादवप्रकाश आश्चर्यित हुये।
इस प्रकार यादवप्रकाश को पराजित करके कुरेशाचार्य यतिश्रेष्ठ रामानुजाचार्य की सेवामें संलग्न होगये।