प्रपन्नामृत – अध्याय ३७

प्रपन्नामृत – अध्याय ३७

🚩श्रीकुरेश का सम्पत्ति त्याग🚩

🔸काँची के समीप कुरम गाँव के स्वामी कुरेश थे, जो प्रख्यात, धनवान, दानवीर थे।

🔸वें सुर्योदय से रात्रि के दो प्रहर तक निरन्तर अन्नदान देते थे।

🔸विशाल अन्नशाला के भारी किवांड रात्रिमें बंद करते समय मेघ गर्जन के समान ध्वनि उत्पन्न होती थी।

🔸जब कांचीमें वरदवल्लभा अम्माजी ने इस आवाज के बारेमें पुछा तो वरदराज ने कुरेशजी का वैभव बताया।

🔸अम्माजी ने उनसे मिलने की इच्छा जतानेपर वरदराज भगवान ने कांचीपूर्ण स्वामीजी को कुरेशजी को बुलानेके लिये भेजा।

🔸कांचीपुर्ण स्वामीजी से संदेश प्राप्त होनेपर कुरेशजी को संकोच हुवा की “कहाँ मैं और कहाँ अम्माजी? मैं तो मदत्रय (धन, विद्या, कुल के मद) मैं लिप्त हुँ।”

🔸यह सोचकर कुरेशजी अपना समस्त वैभव त्यागकर श्रीरंगधाम के लिये पत्नी आण्डाल के साथ प्रस्थान किये।

🔸रास्तेमें उनकी पत्नी आण्डाल को भय लग रहा था।

🔸कुरेशजी बोले की “आपके पास कोई कीमती वस्तु है इसीलिये आपको डर लग रहा है।”

🔸आण्डाल अम्माजी के पास एक सोने का प्याला था जिसे कुरेश स्वामीजीनें फेंकदिया और कहा, “अब कोई भय नही”

🔸श्रीरंगम् पहुँचनेपर रामानुजाचार्यने प्रसन्न होकर कुरेशजी को अपने मठमें बुलाया।

🔸कुरेशजी ने रामानुजाचार्य को प्रणाम किया और रामानुजाचार्य ने उन्हे दृढ आलिंगन करते हुये अतुलनीय हर्ष प्रगट किया।

🔸तदनन्तर कुरेशजी उञ्छवृत्तिसे योगक्षेम निर्वाह करते हुये पत्नीसहित श्रीरंगम् में निवास करने लगे।

Leave a Comment