प्रपन्नामृत – अध्याय ६३

🌷श्रीरामानुजाचार्य का वैभव (४)🌷

🔹श्रीशेष लोककल्याणार्थ इस भूतलपर यतिराज के रुपमें अवतरित होकर संसारके प्रधान आचार्य हुये।

🔹दयासागर श्रीरामानुजाचार्य के शिष्य संबंध से संसार के समस्त प्राणि कलियुगमें भी निष्पाप होकर मुक्त होजायेंगे।

🔹आचार्यपद के सर्व लक्षण की पूर्ति श्रीरामानुजाचार्य में मिलने से उन्ही के चरणारविंद परम प्राप्य हैं।

🔹श्रीमहापुर्ण इत्यादि स्वामियोंने यतिराज के आचार्य बनकर परमधामको प्राप्त किया।

🔹श्री दाशरथि आदि महात्माओंने उनके
शिष्य बनकर परमधामको प्राप्त किया।

🔹रामानुजाचार्य कहते थे की, “अपने परमाचार्य से प्रणीत ग्रंथोंका अध्ययन एक दिन भी श्री यामुनाचार्यजी की सन्निधी में मैं करलेता तो मैं मृत्युलोक से वैकुण्ठ तक सीढी बांधदेता।

🔹यतिराजमें भगवान से भी अधिक शक्ति थी।

🔹जो संसारी इस पंचम उपाय (गुरुनिष्ठा) को सम्यक जानकर श्रीरामानुजाचार्य ते चरणोंका भक्त बन जाता है वह सर्वतत्वज्ञाता कृतार्थ एवं वन्द्य और समस्त संसारियों में मुक्त माना जाता है।

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