प्रपन्नामृत – अध्याय ६६

🌷 श्रीभूतपुरी माहात्म्य 🌷

🔹श्रीरामानुजाचार्य वैकुण्ठ गमन से ३दिन पुर्व अहर्निश गूढार्थ का उपदेश देते रहे।

🔹यतिराज ने सभी शिष्योंको बताया की उनका ४ दिनमें वैकुण्ठगमन निश्चित है।

🔹सभी शिष्य दु:खी होकर शरीर त्यागनेके लिये तैय्यार होगये तो यतिराजने बताया, “मेरे वियोगमें शरीर त्यागोगे तो पतित होजाओगे”

🔹शिष्य बोले, “हम आपकी सेवाके बिना एक क्षण भी नही रह सकते, अत: आपही कुछ उपाय बताईये”

🔹यतिराज ने कृपावश अपना ही एक अर्चाविग्रह बनवाया और उसका गाढालिंगन करके विग्रह का ब्रह्मरंध्र सूँघकर उसमें अपनी शक्ति प्रतिष्ठित करदी।

🔹इस अर्चाविग्रह की सविधी प्रतिष्ठापना करके यतिराज ने उन्हे उसी अर्चाविग्रहकी प्रेमपुर्वक सेवा करनेका आदेश दिया।

🔹अवतार स्थल श्रीभूतपुरी के समान श्रीरंगम तथा यादवाद्रि पर भी यतिराज ने विग्रह बनवाकर गाढालिंगन करके अर्चाविग्रह की स्थापना करायी।

🔹लोकसंरक्षक यतिराज के श्रीविग्रह का दर्शन आज भी श्रीभूतपुरीमें होता है।

🔹यतिराज का अवतार स्थल श्रीभूतपुरी सभी दिव्यदेशोंसे श्रेष्ठ है। अत: मुमुक्षुओंको चाहिये की यहाँपर निवास करें।

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