प्रपन्नामृत – अध्याय ६०

  श्री रामानुजाचार्य का वैभव (१) 🔹श्री विष्वक्सेनजी श्री शठकोप स्वामीजी के रूपमें भूतल का भार उतारने के लिये आये थे। 🔹परंतु संसारी जीवोंको देखकर और भगवान के विरह में भगवान का चिन्तन करते हुये एक इमलीवृक्ष के कोटरमें जीवन व्यतीत किये। 🔹जीवोंको कोई उपदेश न दे पाये तब उन्होने विचार किया की श्री आदिशेष … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ५९

अर्चावतोरों द्वारा श्रीयतिन्द्र का वैभव प्रकाशन 🔹रंगनाथ भगवान ने यतिराज को कहा, “आपसे संबंधित जितने भी श्रीवैष्णव हैं तथा भविष्यमें आपकी परंपरामें आनेवाले जो जीव होंगे उनके लिये तथा आपके लिये हमनें अपनी दोनों विभूतियाँ प्रदान कर दी है।” 🔹वेंकटेश भगवान ने भी ऐसा ही कहकर यतिराज का वैभव बढाया। 🔹एक समय वेंकटाद्रि के मार्गपर … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ५८

श्रीकुरेशाचार्य का वैकुण्ठ निवास 🔹श्रीकुरेशाचार्य का वैकुण्ठ जानेका संकल्प सुनकर भी उनकी पत्नी आण्डाल ने विनाविलाप उसे स्वीकार किया। 🔹श्रीकुरेशाचार्य ने अपने दोनों पुत्रोंको बुलाकर कहा की वें गोदारंगेश के शरणमें रहें, श्रीरामानुजाचार्य को रक्षक मानकर अपनी माता की आज्ञापालन करते हुये और श्रीवैष्णवोंकी सेवा करते हुये जीवन व्यापन करें। 🔹ऐसा कहकर उन्होनें अनायासही, सहजता … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ५७

श्रीकुरेशाचार्य की आचार्य निष्ठा 🔹एकबार श्रीकुरेशाचार्यने रंगनाथ भगवान की सन्निधी में आकर भगवान का मंगलाशासन किया। 🔹रंगनाथ भगवानने अति प्रसन्न होकर उनसे मनोवांछित वर मांगनेको कहा। 🔹श्रीकुरेशाचार्य ने कहा, “आपने मुझे पहले से ही सबकुछ दिया है, अब  कुछ भी कामना नहीं है।” 🔹भगवान ने पुन: आग्रह करनेपर श्रीकुरेशाचार्य बोले, “आप मुझे परमपद दे दीजिए।” … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ५६

श्री अनन्त आलवान की कैंकर्य निष्ठा 🔹यतिराज के एक शिष्य श्री अनन्तालवान स्वामीजी यतिराज के आज्ञा से वेंकटाचलपर “रामानुज सरोवर” की खुदाई कर रहे थे। 🔹उनकी पत्नी टोकरीमें मिट्टी भरकर दूर डाल रही थी। 🔹एक बालक सहायता के लिये आया तो अपना कैंकर्य बिगडता देखकर स्वामीजी ने उसे चले जाने के लिये कहा। 🔹तब वह … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ५५

प्रपन्नामृत – अध्याय ५५ श्री आन्ध्रपूर्णाचार्य स्वामी की अनन्य आचार्य निष्ठा 🔹श्री आन्ध्रपूर्णाचार्य अपने आचार्य यतिराज के श्रीचरणों को ही उपाय उपेय मानकर उनकी सेवा में रहते थे। 🔹श्री आन्ध्रपूर्णाचार्य जब यतिराज के साथ रंगनाथ भगवान के दर्शन के लिये जाते तब वे रंगनाथ भगवान का दर्शन न करके यतिराज के दर्शन ही करते थे। … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ५४

प्रपन्नामृत – अध्याय ५४ श्री यतिराज अष्टोत्तर शतनाम 🔹 यतिराजने सभी विरोधी मतोंको परास्त करके समस्त लोकोंमें श्रेष्ठ जनोंद्वारा सम्मत श्रीवैष्णव सिद्धान्त की स्थापना की। 🔹 यतिराज के ७४ प्रधान शिष्य तथा असंख्य शिष्य थे। 🔹सभी शिष्य नित्य आचार्य सेवा में संलग्न रहते थे। 🔹आचार्य वरदविष्णु, आचार्य कुरेश, श्रीभाष्य के व्याख्यान का कैंकर्य करते थे। … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ५३

प्रपन्नामृत – अध्याय ५३ श्रीगोदाम्बा के अभिष्ट की पूर्ति 🔹प्राचीन समय में गोदाम्बाजी ने एक बार उनसे रचित दिव्य प्रबन्ध में भगवान से प्रार्थना की थी की, “यदि आपने मेरा पाणिग्रहण संस्कार करलिया तो मैं आपको सौ घडे क्षीरान्न तथा सौ घडे माखन का भोग लगाउंगी। 🔹उक्त दिव्य प्रबन्ध में लिखित गोदाम्बाजी के अभिष्ट को … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ५२

प्रपन्नामृत – अध्याय ५२ श्री वरदान भगवान के द्वारा कुरेशाचार्य को दृष्टिप्रदान 🔹एक दिन यतिराज ने कुरेश स्वामीजी को वरदराज भगवान् का स्तोत्र रचनेकी आज्ञा प्रदान की और कहा की भगवान से नेत्र ज्योति माँगो। 🔹स्तोत्र की रचना करके कुरेश स्वामीजी ने यतिराज को श्रवण कराया। 🔹फिर यतिराज के साथ काँची जाकर यह स्तोत्र वरदराज … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ५१

प्रपन्नामृत – अध्याय ५१ यतिराज का पुन: श्रीरंगम् लौट आना 🔹श्रीवैष्णव द्वेषी राजा चौल नरेश ने महापुर्ण स्वामीजी एवं कुरेश स्वामीजी को नेत्रहीन बनाने के पश्चात् राज्य के सभी श्रीवैष्णव मन्दिर तोड़ना प्रारंभ करदिया। 🔹श्री रंगनाथ भगवान का मन्दिर तोडने के लिये जब वह सेना सहित जा रहा था तब उसके कण्ठमें कीड़े पड़ गये … Read more