चरमोपाय निर्णय – प्रस्तावना

श्रीवैष्णव संप्रदाय में आचार्य के श्रीचरणारविन्दो को चरमोपाय बताया गया है। चरम याने अंतिम, उपाय याने उपेय की प्राप्ति का साधन । अपने पूर्वाचार्यों ने यह बताया है कि अपने अंतिम लक्ष की प्राप्ति के लिये आचार्य के चरणारविन्दो को ही उपाय के रूप में स्वीकार करना चाहीये ।

श्री आंध्रपूर्ण स्वामीजी बताते है की “आचार्य एक विशेष स्थान है, श्री रामानुज स्वामीजी मात्र आचार्य स्थान पर सुशोभित हो सकते हैं।”

श्रीपेरियवाच्चान् पिल्लै के पुत्र नायनाराच्चान् पिल्लै  अपने संप्रदाय के विद्वानों में से एक है ,इन्होने चरमोपाय निर्णय नामक एक विशेष ग्रंथ की रचना की है । इस ग्रंथ में भगवान और पूर्वाचार्यो के वचनों का उल्लेख करकेश्रीरामानुज स्वामीजी के वैभव को प्रकाशित किया गया है।

श्रीपेरियवाच्चान् पिल्लै – तिरुचेगंनूर

श्री पिल्लैलोकाचार्य स्वामीजी श्रीवचन भूषण ग्रंथ के प्रारम्भ में कहते है की वेद / वेदांतम का सार स्मृति, इतिहास और पुराण के द्वारा जाना जा सकता है । अंत में श्री वचन भूषण के ४४७ वे सूत्र में बताते है कि “ आचार्य अभिमानमे उद्धारकम ”  अर्थात श्री आचार्य की कृपा के द्वारा मात्र शिष्य इस संसार के भव बंधन से छूट जाता है, जो की वेद / वेदांतम का सार है ।

पिल्लै लोकाचार्य – वरवरमुनि स्वामीजी  ( श्री भूतपुरी )

श्री वरवरमुनी स्वामीजी उपदेश रत्नमाला के ३८ वें पासूर में बताते हैं की

एम्बेरुमानार दर्शनमेन्ने इदर्क्कु ,

नम्बेरुमाल पेरीटूट्टू नाट्टीवैतार, अम्बूवियोर

इन्द दर्शनतै, एम्बेरुमानार वलर्त्त

अन्द च्चेयलरिकैका ॥३८॥

 

“श्री वैष्णव संप्रदाय के वैभव को बडानेवाले श्री रामानुज स्वामीजी हैं । श्री रामानुज स्वामीजी का वैभव बड़ाने के लिएश्री रंगनाथ भगवान ने श्रीवैष्णव संप्रदाय का नाम श्री रामानुज संप्रदाय रखा ।”

श्री रामानुज स्वामीजी श्री आदिशेष के अवतार हैं । अनादिकाल से विषयों का अनुभव करते हुये संसार सागर में मग्न रहनेवाले जीवात्माओं पर निर्हेतुक कृपा कर उनको अपना दास बनाकर,रहस्यत्रय आदि के अर्थों को बताकर उनको इस दुःख रूपी संसार से मुक्त कराते हैं ।

श्री वरवरमुनि स्वामीजी बताते हैं कि जो जीवात्मा अपने आचार्य की आज्ञा का तदनुकूल आचरण करेगें,वे महात्मा  श्री रामानुज स्वामीजी के विशेष कृपा पात्र बनेंगे और संसार सागर से पार होकर श्री परमपद में भगवान के श्री चरणारविन्दो का आश्रय लेंगे ।

इस ग्रन्थ को श्रीमान सारथी तोताद्रीजी ने अँग्रेजी में अनुवाद किया है,उसको आधार बनाकर हिन्दी में अनुवाद किया गया है ।

– अडियेन सम्पत रामानुजदास,

– अडियेन श्रीराम रामानुज श्रीवैष्णवदास

Source : https://granthams.koyil.org/2012/12/charamopaya-nirnayam-introduction/

3 thoughts on “चरमोपाय निर्णय – प्रस्तावना”

  1. In fourth paragraph third line a word “yane” is used it should be “artharth”.. to be more nice…
    Adiyen
    Srishilan C.

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  2. श्री वैष्णव समाज के लिए महत्वपूर्ण जानकारी। श्री रामानुज सम्प्रदाय की विस्तृत ग्रँथ का हिन्दी अनुवाद जिसमे द्रविड़ वेद भी हो यदि सी डी या पुस्तक जिस रूप मे उपलब्ध हो की कृपया जानकारी दिलावे। सादर जयश्रीमन्नारायण।

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