चरमोपाय निर्णय- तिरूमुडी संबंध

तिरूमुडी संबंध

॥ श्री: ॥

॥ श्रीमते रामानुजाय नमः ॥
॥ श्रीमद्वरवरमुनयेनमः ॥
॥ श्रीवानाचलमहामुनयेनमः ॥
॥ श्रीवादिभीकरमहागुरुवेनमः ॥

 

 

श्री शठकोप स्वामीजी अपनी निर्हेतुक कृपा से सहस्त्रगीती का उपदेश करते है । (श्री नाथमुनी स्वामीजी ने १२००० बार कन्नीण शिरताम्बू का पारायण किया जिससे श्री शठकोप स्वामीजी ने प्रसन्न होकर उनको दिव्य प्रंबंध ,रहस्य ग्रंथ के अर्थ एवं अष्टांग योग की विद्या को प्रदान किया ।)

श्री शठकोप स्वामीजी त्रिकालज्ञ थे जिनको भूत , भविष्य और वर्तमान में क्या होनेवाला है सब कुछ मालूम था । उनको श्री सहस्त्रगीति के “पोलिग पोलिग” (५.२.१) पाशूर का अर्थ बताते हुये उन्होने श्री रामानुज स्वामीजी के अवतार रहस्य का खुलासा किया, और “कलियुम केड़ुम कंण्डु कोंण्मीन”कहा जिसक अर्थ है  कली का नाश होगा और कहा कि इस प्रपन्न कुल में एक महान विभूति का अवतार होगा जो सारे संसार का उद्धारक होगा ।

 

यह सुनकर श्रीनाथमुनी स्वामीजी अति आनंदित होगये और उन्होने अधिक जानने के लिये कन्नीण शिरताम्बू के १० वें पाशूर का निवेदन कर स्वामीजी को प्रसन्न करते हैं और पूछते हैं कि आप तो सर्वज्ञ है,तो फिर अवतार लेनेवाले उस महान विभूति के स्वरूप का वर्णन कीजिये ।

 

विनंती सुनकर श्री शठकोप स्वामीजीश्री नाथमुनी स्वामीजी के स्वप्न में आकर कहते है कि “ काषाय वस्त्र, त्रिदण्ड, द्वादश तिलक, विशाल भुजायें, सुन्दर मुस्कुराता हुआ मुखारविन्द और नेत्रो में वात्सल्य गुण रहेगें, ऐसे श्री रामानुज स्वामीजी का दिव्य मंगल विग्रह रहेगा ”।

 

श्री नाथमुनी स्वामीजी स्वप्न में से उठकर श्री शठकोप स्वामीजी के पास गये और कहा की जैसे श्री रामानुज स्वामीजी का दिव्य मंगल विग्रह का वर्णन किया है वह तो आप से भी सुंदर है । तब श्री शठकोप स्वामीजी ने कहा उसमे कोई आश्चर्य होने की बात नहीं हैं क्योंकि श्री रामानुज स्वामीजी के दर्शन से पूर्ण जगत आकर्षित होगा ।

 

श्री नाथमुनी स्वामीजी श्री शठकोप स्वामीजी से पुछते है कि श्री भविष्यदाचार्य का सदैव स्मरण, आराधन कैसे करते रहे । श्री शठकोप स्वामीजी उस दिन एक शिल्पी के स्वप्न में श्री भविष्यदाचार्य के रूप में आकर कहा की मेरा एक श्रीविग्रह बनाओ और उसे तिंत्रिणी वृक्ष के नीचे विराजमान करो। सुबह शिल्पी श्री तिंत्रिणी वृक्ष के नीचे आकर बिना रुकावट के स्वप्न में जैसे दर्शन हुआ था वैसे ही श्री विग्रह बनाना प्रारम्भ किया । श्री विग्रह परिपूर्ण रूप से बनते ही श्री शठकोप स्वामीजी ने उसपर अपनी दिव्य दृष्टि से कृपा कटाक्ष किया।

 

श्री नाथमुनी स्वामीजी को बुलाकर श्री शठकोप स्वामीजी ने श्री भविष्यदाचार्य का श्री विग्रह प्रदान किया। और कहा की जैसे लक्ष्मणजी को श्रीराम भगवान का दायाँ हाथ कहा जाता है वैसे ही श्री भविष्यदाचार्य भी मेरे चरणारविन्द है ।

 

श्री शठकोप स्वामीजी कहते हैं “श्री भविष्यदाचार्य मेरे अंश है, वह मेरे चरणारविन्द है, वे मेरी इच्छाओं की पूर्ति करनेवाले है।तुम्हारे परिवार में एक महापुरुष होगा जो की श्री भविष्यदाचार्य के साक्षात दर्शन करेगा । श्री भविष्यदाचार्य के अवतार के समय मेष मास होगा, मेरे अवतार नक्षत्र (विशाखा) के १८ वें दिन आद्रा नक्षत्र में होगा। जैसे गीता में १८ अध्याय है और अंतिम अध्याय में श्री भगवान को उपाय बताया गया है। वैसे ही मेरे अवतार नक्षत्र के १८ वें दिन होनेवाले श्री भविष्यदाचार्य को उपाय मानना ।जैसे मेरी सेवा करते हो वैसे ही श्री भविष्यदाचार्य की सेवा करना।”

 

इतना कहकर श्री नाथमुनी स्वामीजी विरनारायणपुर जाने के लिये आज्ञा करते हैं  श्री नाथमुनी स्वामीजी श्री शठकोप स्वामीजी की कृपा का अनुभव करते हुये इस श्लोक को निवेदन करते हैं ।

 

यस्सवैभव कै कारून्नकरस्सन भविष्यादाचार्यपरस्वरूपम  ।

संधार्चयमास महानुभावम तम कारीसुनुम शरणम प्रपद्ये ॥

 

मै श्री शठकोप स्वामीजी की शरण ग्रहण करता हूँ , जो कारीजी के पुत्र है और जिन्होने निर्हेतुक कृपा करके मुझे स्वप्न में श्री भविष्यदाचार्य का दर्शन कराया ।

 

पेरियावाचन पिल्लै स्वामीजी बताते हैं कि इस रहस्य को अत्यन्त गोपनीय रखा गया और सिर्फ गुरु परम्परा स्वामीयों को इसकी जानकारी थी ।

 

श्री नाथमुनी स्वामीजी ४००० प्रबन्ध का अध्ययन करके श्री विरनारायन पुर के लिए लौट जाते हैं ।वहाँ पर विराजमान श्री मन्नार भगवान का मंगलाशासन करते हैं और भगवान उनको तीर्थ, तुलसी, शठारी देकर बहुमान करते हैं। श्री नाथमुनी स्वामीजी घर लौटकर अपने दो भतीजों को श्री शठकोप स्वामीजी की कृपा का वर्णन करते हैं। वे दोनों आश्चर्य चकित होते हैं और अपने आपको भाग्यवान मानते हैं कि ऐसे महान पुरुष के साथ हमारा सम्बन्ध है।

 

उसके बाद श्री नाथमुनी स्वामीजी द्वय मंत्र का अर्थ श्री सहस्त्रगीति के द्वारा अपने शिष्य श्री तिरुक्करमंगई आण्डान को बताते हैं । “पोलिग पोलिग” (सहस्त्रगीति ५.२.१) के पासूर का वर्णन करते हुये श्री शठकोप स्वामीजी के वचनों को और इन्होने जो स्वप्न में अनुभव हुआ उसका वर्णन किया । तब श्री तिरुक्करमंगई आण्डान ने कहा की मेरा संबंध आप के साथ है जिन्होने स्वप्न में श्री भविष्यदाचार्य का दर्शन किया है।

 

इस पूर्ण दृष्टांत को नाथमुनी स्वामीजी ने पुण्डरीकाक्ष स्वामीजी, कुरुगइ कवलप्पन और अपने पुत्र ईश्वरमुनी को वर्णन करते हैं । नाथमुनी स्वामीजी कुरुगइ कवलप्पन को अष्टांग योग सीखने के लिए,पुण्डरीकाक्ष स्वामीजी को संप्रदाय कोआगे बढ़ाने के लिये और ईश्वरमुनी को अपने पुत्र का नाम यामुनाचार्य रखने के लिए आज्ञा करते हैं।

 

श्री नाथमुनी स्वामीजी अपने अंतिम दिनों में श्री पुण्डरीकाक्ष स्वामीजी को बुलाकर श्री भविष्यदाचार्य के श्री विग्रह को प्रदान करते हैं और इस बात को गुप्त रखने के लिये कहते हैं । इस श्री विग्रह को ईश्वरमुनी के होनेवाले पुत्र को प्रदान करना और कहना कि यह श्रीविग्रह श्रीनाथमुनी स्वामीजी को विशेष रूप से श्रीशठकोप स्वामीजी द्वारा भेंट में मिली है । पूर्ण रूप से इसपर अवलम्ब रहने के लिए कहते हैं । श्री विग्रह का ध्यान करते हुये “आल्वार तिरुवडिगले शरणम” कहते हुये नित्य कैंकर्य के लिए परमपद को प्रस्थान करते हैं ।

 

एक बार श्री राममिश्र स्वामीजी और तिरुवल्लीकेनी पान पेरूमाल अरयर श्री पुण्डरीकाक्ष स्वामीजी की सन्निधि में सहस्त्रगीति का अध्ययन कर रहे थे । “पोलिग पोलिग” पासूर में “कलियुम केड़ुम” आते ही श्री नाथमुनी स्वामीजी द्वारा बताया गया पूर्ण दृष्टांत का वर्णन करते हैं । दृष्टांत को सुनकर वे पूछते है कि ऐसे श्री भविष्यदाचार्य के दर्शन के भाग्य किसको होगें ? तब श्री पुण्डरीकाक्ष स्वामीजी कहते हैं कि जब इनका अवतार होगा तब पूर्ण जगत इनकी शरण ग्रहण करेगा और हर एक व्यक्ति को मोक्ष पाने के लिए इनके साथ सम्बन्ध रखना पड़ेगा ।

 

श्री पुण्डरीकाक्ष स्वामीजी परमपद प्रस्थान करते समय श्रीराममिश्र स्वामीजी को बुलाते हैं और पूनः रामानुज स्वामीजी के अवतार रहस्य का वर्णन करते हैं ।

श्री पुण्डरीकाक्ष स्वामीजी श्री राममिश्र स्वामीजी को संप्रदाय के कैंकर्य को बढाने के लिए आज्ञा करते हैं ।

और कहते हैं कि श्रीईश्वरमुनी को पुत्र होगा,जिनका नाम यामुन होगा । श्री यामुनाचार्य स्वामीजी का अवतार होने के बाद श्री नाथमुनी स्वामीजी के इच्छा अनुसार वे स्वयं श्री भविष्यदाचार्य को ढूँढकरसम्प्रदाय का वर्धताम अभिवर्धताम करेगें ।

 

श्री पुण्डरीकाक्ष स्वामीजी श्री भविष्यदाचार्य के श्रीविग्रह को श्री राममिश्र स्वामीजी को प्रदान कर कहते हैं कि रामानुज स्वामीजी के अवतार रहस्य को श्री यामुनाचार्य स्वामीजी को पूर्ण रूप से बताकर श्री विग्रह प्रदान करना ।

 

श्री पुण्डरीकाक्ष स्वामीजी की आज्ञानुसार श्री राममिश्र स्वामीजी श्री यामुनाचार्य स्वामीजी को श्री रंगम लाकर सम्प्रदाय के रहस्य अर्थ और श्री भविष्यदाचार्य के अवतार रहस्य के बारे में बताते हैं । श्रीवैष्णवों के साथ रहकर सम्प्रदाय का प्रचार प्रसार करने के लिए आज्ञा करते हैं ।

 

श्री राममिश्र स्वामीजी के अंतिम दिनों में श्री नाथमुनी स्वामीजी स्वप्न में आकर कहते हैं कि श्री भविष्यदाचार्य को जाकर देखो उनका अवतार हुआ होगा और श्री भविष्यदाचार्य के श्री विग्रह को श्री यामुनाचार्य स्वामीजी को प्रदान करो, जो मुझे अति प्रिय है । श्री राममिश्र स्वामीजी सोचने लगे की श्री नाथमुनी स्वामीजी ने ऐसे क्यों कहा? तब श्री नाथमुनी स्वामीजी कहते हैं कि मैंने श्रीभविष्यदाचार्य का दर्शन सिर्फ स्वप्न में किया है, मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी जबमेरे पौत्र श्री यामुनाचार्य स्वामीजी उनका साक्षात दर्शन करेगें ।

 

 

भविष्यदाचार्य के अवतार रहस्य को यामुनाचार्य स्वामीजी तक पहूँचाने के कैंकर्य को पाकर श्रीराममिश्र स्वामीजी नाथमुनि स्वामीजी की निर्हेतुक कृपा का स्वप्न में अनुभव दर्शन कर बहुत प्रसन्न थे। उस वक्त श्री यामुनाचार्य स्वामीजी मिलने आये,तब श्रीराममिश्र स्वामीजी ने इस पूर्ण दृष्टान्त का वर्णन किया ।श्री राममिश्र स्वामीजी ने श्री यामुनाचार्य स्वामीजी को श्री भविष्यदाचार्य का श्री विग्रह प्रदान किया और कहा कि  “यह श्री विग्रह श्री नाथमुनी स्वामीजी को अतिप्रिय है, तुम परिपूर्ण रूप से इनपर अवलम्ब रहना और इनके अवतार रहस्य को गुप्त रखना । तुम इस महापुरुष को ढूंढकर मिलना जो की हमारे संप्रदाय के वैभव को बड़ानेवाले है।”

श्रीराममिश्र स्वामीजी की आज्ञानुसार श्री यामुनाचार्य स्वामीजी श्री भविष्यदाचार्य के श्रीविग्रह का विशेष ध्यान देते हुये श्रीरंगम में विराजमान थे । वे श्री भविष्यदाचार्य को ढूँढने लगे, लेकिननहीं ढूँढ पाने पर वे अत्यन्त दुखी हुये । उस समय यामुनाचार्य स्वामीजी कुछ श्रीवैष्णवों के द्वारा रामानुज स्वामीजी के वैभव को सुनाते है और उन्हे ढूँढने के लिये वरदराज भगवान कि सन्निधि में पहुँचते हैं, वहाँ पर श्रीकांचिपूर्ण स्वामीजी के पुरुषकार से रामानुज स्वामीजी का दर्शन करते हैं ।

 

 

श्री शठकोप स्वामीजी के अनुसार तीन बातें उन विशेष व्यक्ति में विद्यमान थी।आद्रा नक्षत्र, श्री भविष्यदाचार्य के श्री विग्रह की तरह उनका स्वरूप और बड़ता हुआ वैभव । इन सब लक्षणों को देखते हुये उन्हे श्री रामानुज स्वामीजी मान लिया गया और अपने श्रीनेत्रो से उन पर विशेष कृपा कटाक्ष किया।

श्री यामुनाचार्य स्वामीजी अपने अंतिम समय में श्री गोष्ठिपूर्ण स्वामीजी को बुलाकर श्री भविष्यदाचार्य के श्री विग्रह को प्रदान करके उसका इतिहास बतायाऔर श्री रामानुज स्वामीजी को रहस्य अर्थों का उपदेश देने के लिये आज्ञा करते हैं । श्री रामानुज स्वामीजी ही श्री भविष्यदाचार्य के अवतार है जिनका अवतार प्रपन्न कुल में सूर्य की तरह प्रकाशमान हो रहा है। और कहा कि श्री वैष्णव संप्रदाय श्री रामानुज सम्प्रदाय के नाम से हीजाना जायेगा ।

 

अंतिम समय में श्री वैष्णव जन श्री यामुनाचार्य स्वामीजी को कुछ वार्ता सुनाने के लिये कहते हैं, तब श्रीस्वामीजी कहते हैं कि “ श्री शठकोप स्वामीजी के पाशूर के अनुसार श्री रामानुज स्वामीजी अपने सम्प्रदाय का नेतृत्व करेगें और मुझे अत्यन्त दुःख हो रहा है कि मुझे श्री रामानुज स्वामीजी के साथ सहवास करने को नहीं मिला। इस प्रकार रामानुज स्वामीजी के पहले के सभी आचार्य यह बताते हैं कि रामानुज स्वामीजी ही उद्धारक आचार्य हैं । ”

 

“श्री रामानुज स्वामीजी के पहिले सभी आचार्यों ने श्री रामानुज स्वामीजी को ही कैसे उद्धारक कहा ?”

 

अस्पोतयन्ती पितर प्रन्तुथ्यन्थी पितामह ।

वैष्णवो नः कुले जात सनः सन्तारायीश्यती ॥ (श्री वराह पुराण श्लोक )

 

श्री वराह पुराण के इस श्लोक में आता है कि परिवार में कोइ श्रीवैष्णव होजाने पर पितृजन पितृलोक में खुश होते हैं कि अब हमें पितृलोक से छुटकारा पाने का मौका आ गया है। पितृलोक में रहनेवाले पितृजन, अपने परीवार में श्रीवैष्णव बने हुये सदस्य को अपना उद्धारक मानते है।पितृलोक में रहनेवालेपितृजन वैष्णव नहीं होते हुये भी उनका अंतिम लक्ष परमपद ही होता है। जो की श्रीवैष्णव के सम्बन्ध मात्र से उनको मिलता है और वे लोग उसे अपना उद्धारक मानते हैं ।

लेकिन श्री नाथमुनि स्वामीजी तो स्वयं श्री वैष्णव शिरोमणि हैं और परमपद में विराजमान है, उनको किसी उद्धारक की आवश्यकता ही नहीं है। “परन्तु वे श्री रामानुज को ही अपना उद्धारक क्यों मानते हैं ?”

 

श्री नाथमुनि स्वामीजी को पूर्ण विश्वास है कि श्री शठकोप स्वामीजी ही उद्धार करनेवाले है, लेकिन शठकोप स्वामीजी ने स्वयं कहा था कि जैसे लक्ष्मणजी को श्रीरामजी का दाया हाथ माना जाता है वैसे ही श्री रामानुज स्वामीजी मेरे चरणारविन्द के रूप में है। इसी कारण श्री नाथमुनी स्वामीजी श्री रामानुज स्वामीजी से अपने सम्बन्ध को श्रेष्ठ मानकर उद्धारक मानते और प्रेम बढ़ाते है । वे इस रहस्य ज्ञान को पुण्डरीकाक्ष स्वामीजी को प्रदान करते हैं, पुण्डरीकाक्ष स्वामीजी राममिश्र स्वामीजी को, राममिश्र स्वामीजी यामुनाचार्य स्वामीजी को, और यामुनाचार्य स्वामीजी अपने शिष्य गोष्ठीपूर्ण स्वामीजी, शैलपूर्ण स्वामीजी, वररंगाचार्य स्वामीजी, मालाकार स्वामीजी, महापुर्ण स्वामीजी को प्रदान करते हैं ।

 

जैसे “ तस्मे देहम तथो ग्राहयम ” गरुड पुराण के इस श्लोक में कहा गया है कि जिस भक्त में आठ गुण रहते है,

  • जिसे भागवतो में निस्वार्थ प्रेम है ।
  • जिसे भगवत सेवा में आनंद होता है ।
  • जो भगवान की सेवा करता है ।
  • जिसे अहंकार नहीं है ।
  • जिसे भगवद विषय सुनने में जिसे रुचि है ।
  • जिसे भगवद विषय सुनकर अनुभव– आनन्द होता है ।
  • जो सदैव भगवान के प्रति सोचता रहता है ।
  • जो सांसारिक वस्तुओं की चाहना नहीं करता है ।

 

वह मेरे समान पूजनीय है और उनसे सहवास और सत्संग करना चाहिये।

यामुनाचार्य स्वामीजी के प्रमुख शिष्य, श्री रामानुज स्वामीजी से अपना सम्बन्ध स्थापित करना चाहते थे । रामानुज स्वामीजी के साथ आचार्य सम्बन्ध स्थापित करते हैं ।

सभी आचार्यों ने अपने बच्चों को श्री रामानुज स्वामीजी का शिष्य बनाया और अपने सम्बन्ध से भी बढ़कर अपने बच्चों का श्रीरामानुज स्वामीजी से सम्बन्ध होना श्रेष्ठ माना ।

जैसे भगवान घंटाकर्ण पर कृपा करते समय उसके भाई पर भी कृपा कर दिये, विभीषण के साथ आये हुये ४ राक्षसों को भी मोक्ष दिये,प्रह्लाद के सम्बन्धियों पर भी जैसे कृपा किये वैसे ही अपने बच्चे श्री रामानुज स्वामीजी के शिष्य हो जाने पर हम लोगो पर भी कुछ विशेष कृपा हो जायेगी ऐसा श्री रामानुज स्वामीजी के आचार्य गण मानते थे ।

जो कोई भी मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा से शरण में आता हैं, उनके सम्बन्धियों पर भी श्रीरामानुज स्वामीजी कृपा करके मोक्ष देते हैं । इस कारण से आचार्य जन भी श्री रामानुज स्वामीजी से सम्बन्ध स्थापित करना चाहते है ।

श्री यामुनाचार्य स्वामीजी की आज्ञा का पालन करते हुये श्री रामानुज स्वामीजी को गुरु परम्परा में विराजमान कराने के लिये ५ आचार्य गण “आचार्य का स्थान” ग्रहण करते हैं ।

यामुनाचार्य स्वामीजी अपने पाँच शिष्यों को रामानुज स्वामीजी को रहस्य अर्थो को बताने के लिये आज्ञा कर रहे है

 

आचार्यत्व दो प्रकार का होता है , उद्धारक आचार्य याने जो आचार्य संसार के भव बंधन से छुड़ाते है, और उपकारक आचार्य याने जो शिष्य को संसार के भवबंधन छुड़ानेवाले आचार्य से सम्बन्ध कराते है ।

ये पाँच आचार्यगण उपकारक आचार्य है, जिन्होंने श्री रामानुज स्वामीजी का सम्बन्ध श्री शठकोप स्वामीजी से गुरु परम्परा के द्वारा कराया है।

अगर वे उद्धारक आचार्य होते तो वे अपने बच्चों का स्वयं समाश्रयण कर सकते थे, लेकिन उन्होने श्री रामानुज स्वामीजी (जो की श्री शठकोप स्वामीजी के चरणारविन्द है )से समाश्रयण करवाया ।

 

– अडियेन सम्पत रामानुजदास,

– अडियेन श्रीराम रामानुज श्रीवैष्णवदास

source : https://granthams.koyil.org/2012/12/charamopaya-nirnayam-thirumudi/

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