प्रपन्नामृत – अध्याय ४२
आचार्य कृपा ही मोक्ष का उपाय है
🔹श्री महापुर्णाचार्य स्वामीजीने आचार्य आज्ञा से मानेरनम्बि नामक क्षुद्र कुलोत्पन्न महात्मा का ब्रह्ममेध विधी से दाह संस्कार किया।
🔹समस्त रुढिवादी ब्राह्मणोंने धर्म विरुद्ध कार्य बताकर उनकी निन्दा की और उनको पतित मानने लगे।
🔹श्रीमहापूर्णाचार्य की पुत्री अतुलायी ने सभी लोगोंके सामने कहा, “मेरे पिताजी ने कोई धर्मविरुद्ध कार्य नही किया। इससे बढकर कार्य रंगनाथ भगवान ने किया जिन्होने क्षुद्र कुलोत्पन्न योगिवाहन स्वामीजी का पूर्ण शरीर ही निगल लिया था तो क्या भगवान अपवित्र होगये?”
🔹यतिराज के पुछनेपर महापुर्णाचार्य स्वामीजी ने बताया कि “भगवान रामने अधम पक्षी जटायु का ब्रह्ममेध संस्कार किया, क्षुद्र कुलोत्पन्न महात्मा विदुरजी का ब्रह्ममेध संस्कार धर्मराज युधिष्ठीर ने किया। मानेरनम्बि जटायु जी से भी निकृष्ट थे या मैं धर्मराज युधिष्ठीर से बडा हुँ?”
🔹”वेदार्थ यही है की भगवान का अनन्य शरणागत भक्त कभी क्षुद्र नही होता वह भागवत होता है। उनके जाति वर्ण का निरुपण नही करना चाहिये।”
🔹एक समय यतिराज ने मार्गमें चलते हुये एक गुंगे व्यक्ति को मठमें लाकर एक कोठरीमें ले जाकर अपने चरण कमल का स्पर्श कराकर कहा की “संसार से उद्धार के लिये गुरु का विग्रह ही परम रक्षक है”
🔹कुरेश स्वामीजी ने छिपकर यह दृश्य देखा और सोचा की आज मैं भी गुंगा होता तो मुझपर भी ऐसी कृपा होती। आजतक यतिराजने अपने श्रीविग्रह को रक्षक नही बताया केवल भगवान को ही रक्षक बताया। ऐसा सोचकर कुरेश स्वामीजी मुर्छित होगये।
🔹तत्पश्चात गोष्ठीपुर्ण स्वामीजीने भी बताया की, “आचार्यनाम का निरन्तर स्मरण करना चाहिये और उनके ही श्रीविग्रह का ध्यान करते हुये गुरुदेव ही मोक्ष का उपाय है यह मानकर उनके वचनोंमे विश्वास रखना चाहिये।”