प्रपन्नामृत – अध्याय ५०
श्री कुरेश स्वामी का सुन्दर गिरि पर निवास
🔹एकबार कुरेश स्वामीजी रंगनाथ भगवान के दर्शन के लिये गये तो द्वारपोलोंने उन्हे रोकदिया।
🔹द्वारपालोंने कहा की “कृमिकण्ठ राजा नाराज न हो इसलिये यतिराज के संबंधियोंको मंदिरमें प्रवेश नही दिया जा रहा है”।
🔹द्वारपालोंने आगे कहा, “फिर भी आप तो महात्मा हैं इसलिये आप भीतर जा सकते हैं”।
🔹कुरेशाचार्य बोले, “यतिराज के संबंध से रहित रंगनाथ भगवान का दर्शन मैं नही करना चाहता” ऐसा बोलकर व्यथित मन से परिवार सहित वृषभाचल (सुंदरगिरी) पर चले गये।
🔹वहाँ सुन्दरबाहु भगवान की सन्निधीमें उन्होंने सुन्दरबाहु स्तव, अतिमानुष स्तव, श्रीवैकुण्ठ स्तव, श्रीस्तव की रचना की।
🔹उसी समय में गोष्ठीपुरी में श्री गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी १०५ की आयुमें अपने आचार्य श्रीयामुनाचार्य स्वामीजी का ध्यान करते हुये वैकुण्ठ धाम पधार गये।
🔹उनके पुत्र श्रीमन्नारायणाचार्य स्वामीजी ने उनका श्रीवैष्णव ब्रह्ममेध विधी से अन्त्येष्टि संस्कार सम्पन्न कराया।
🔹तत्पश्चात यतिराज के दो शिष्योंने सुंदरगिरी पर आकर यतिराज का कुशलवृत्तान्त सुनाया।
🔹आचार्य के कुशल समाचार सुनकर कुरेशाचार्य अत्यन्त प्रसन्न हुये और आये हुये इन दोनों श्रीवैष्णवोंको प्रेमवश यतिराज मानकर स्वागत सत्कार कर अपने को कृतार्थ माना।