द्रमिडोपनिषद प्रभाव् सर्वस्वम् 28

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः

द्रमिडोपनिषद प्रभाव् सर्वस्वम्

<< भाग 27

सन्तमिगु तमिळ् मरैयोन् , वेदान्तगुरु (वेदान्ताचार्य)

(द्रमिडोपनिषद् प्रभावसर्वस्व का अन्तिम अध्याय)

स्वामी देशिक (वेदान्ताचार्य) जी स्पष्टरूप से कहते है कि संस्कृत वेद को समझने के लिये सर्वप्रथम अरुलिच्चेयल (दिव्यप्रबन्ध) का अध्ययन करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है | दिव्य प्रबन्ध केवल उन लोगों के लिये नही जो वेद नही पढ सकते परंतु कहने का तात्पर्य यह है कि  बिना दिव्य प्रबन्ध पढे, वेद पढने वाले भी वेद का पूर्ण अर्थ प्राप्त नही सकते |

स्पष्टतः यह अविवादित विषय है कि स्वामी वेदान्ताचार्य एक ऐतिहासिक आचार्य एवं संस्कृत के महान् विद्वान है, जिसका प्रमाण उनके विशिष्ट ग्रन्थ रचनाएँ है | परन्तु , उन्होने कभी यह नही सोचा कि वेदान्त कि उत्कृष्ट सिद्धान्त तत्त्वज्ञानवेत्ताओं मे उनकी निष्ठा एवं उनकी कौतुक संस्कृत भाषा परिज्ञान होने के बावज़ूद उन्होने दिव्यप्रबन्धाध्ययन की उपेक्षा की हो |

भगवद्पाद श्रीवेदान्ताचार्य स्वामीजी अपने “अधिकार सङ्ग्रह ” मे कहते है :

चेय्य तमिळ् मालैकळ् नाम् तेळिय ओडित्तेळियाद मरैनिलङ्गळ् तेळिगिन्ड्रोमे  “ |

इस पासुर मे, स्वामी वेदान्ताचर्य संस्कृत वेद को “ तेळियाद मरैनिलङ्गळ् ” अर्थात् ” वेद श्रुति के अस्पष्ट अनुभाग ” से सम्बोधित करते है | इसके विपरीत आपश्री दिव्यप्रबन्ध को “तमिळ् मालैकळ् तेळिय ओडि ” कहते हुए दर्शाते है कि दिव्यप्रबन्ध को स्पष्टरूप से सीखना चाहिये | यह केवल सुझाव नही है परन्तु आपश्री का नित्य स्वनियम एवं स्वाभ्यास है (नाम् तेळिय ओडि) |  

यही विचार को अपने “द्रमिडोपनिषद् तात्पर्य रत्नावली ” ग्रन्थ मे व्यक्त करते हुए कहते है :

” यत् तत् कृत्यं श्रुतिनां मुनिगणविहितैस्सेतिहासैः पुराणै:

तत्रासौ सत्वसीम्नः शठमथनमुनेस्संहिता सार्वभौमी “

वेद की सरल परिभाषा और अर्थ बोधक, इतिहास एवं पुराण, श्रेष्ठ मुनियों का कार्य है | ये सभी सामान्यतया अभिज्ञात है (अपने आपमे सिद्ध करते है) कि इनके कुछ अनुच्छेद (इतिहास एवं पुराण) रजोगुणी एवं तमोगुणी है | परन्तु इसके विपरीत अगर आप गौर करे तो शठकोप सूरी के दिव्य प्रबन्ध सत्वगुण के चरम सीमा मे है (विशुद्ध सत्त्व युक्त है) जैसे शठकोप सूरी स्वयं है और उत्तमोत्तम है (वेद को समझाने के लिये) | अतैव श्री शठकोप सूरी जी की श्री शठकोप संहिता सर्वोपरि एवं सर्वश्रेष्ठ है |

श्रीयामुनाचार्य (श्रीआळवन्दार) जी के स्तोत्र-रत्न के चौथे श्लोक के भावार्थ मे ” माता-पिता .. ” स्वामी वेदान्ताचार्य लिखते है :

अथ पराशर प्रबन्धादपि वेदान्त रहस्य  वैशद्यातिशयहेतुभूतै: सद्य: परमात्मनि चित्तरङ्जकतमै: सर्वोपजीव्यै: मधुरकविप्रभृति सम्प्रदाय परम्परया नाथमुनेर्पि उपकर्तारं कालविप्रकर्षेSपि परमपुरुष सङ्कल्पात् कदाचित् प्रातुर्भूय साक्षादपि सर्वोपनिषत्सारोपदेष्टरम् पराङ्कुश मुनिम्  “माता-पिता-भ्रातरेत्यादि उपनिषद् प्रसिद्ध भगवत् स्वभाव दृष्ट्या  प्रणमति – मातेति ” |

उपरोक्त व्याख्या का अर्थ कुछ इस प्रकार है :: यहाँ श्रीवेदान्ताचार्य स्पष्टीकरण कर रहे है कि वेदान्त के जो रहस्य है उनका यथार्थ प्रकाश श्री शठकोप सूरी ने ही किया है, और अन्य सन्तों या मुनियों जैसे श्री पराशर मुनि की तुलना मे श्री शठकोप सूरी का अभूतपूर्व रहस्योद्घाटन सर्वोत्तम है | और तो और, श्री शठकोप सूरी के पासुर सभी जनों के लिए उपलब्ध एवं उपयोगी है और भगवद्-भक्तों के लिये तो अमृतपान है | इसी कारण, श्री शठकोप सूरी ही उपनिषदों के मान्य शिक्षक है | इसी कारण, आप श्री (श्री शठकोप सूरी) सभी के पूजनीय है – माता, पिता, भ्राता, और स्वयं भगवान् के तुल्य है |    

यतिराज-सप्तति ग्रन्थ मे, एक श्लोक मे स्वामी वेदान्ताचार्य कहते है ::

यस्य सारस्वतं श्रोतो वकुलामोदवासितं श्रुतिनां विश्रयामासं शठारिं तं-उपास्महे

वेदों ने अपने आप को त्याग दिया, जब स्वत: प्रमाण अयोग्य एवं व्यर्थ हुए यथार्थ सिद्धान्त को समझाने मे | ऐसे आशाहीन वेदों (का उद्धार), श्री शठकोप सूरी, (वह सन्त जो वकुला फूलों से सदैव युक्त है या को सदैव धरते है), ने अपने ग्रन्थो से किया |

अपने पादुका-सहस्र ग्रन्थ मे, स्वामी वेदान्ताचार्य अनेकानेक श्लोकों मे आळ्वार एवं पासुरों का जिक्र करते है | आप सभी के लिये कुछ ही उदाहरणार्थ प्रस्तुत है | २९वें श्लोक मे, स्वामी वेदान्ताचार्य कहते है तमिल भाषा, जिसका प्रादुर्भाव अगस्त्य मुनि ने किया, संस्कृत वेदों के तुलना मे, श्रेष्ठता को प्राप्त हुई केवल आळ्वार के पासुरों द्वारा | २२वें पासुर मे, वेदान्ताचार्य स्पष्ट रूपेण कहते है, भगवद्-कृपापात्र बनने के लिये, आळ्वारानुग्रहीत पासुरार्थानुसन्धान के अलावा अन्योपाय नही है अर्थात् वह व्यक्तित्व जो भगवच्छरणारविन्द से सुप्रसिद्ध है और जिनका नाम शठकोप है |

अमृतास्वादिनि प्रबन्ध मे, स्वामी वेदान्ताचार्य कहते है, श्री शठकोप सूरी है जो श्रेष्ठतम एवं उत्तमोत्तम आचार्य है जो भक्तों की रक्षा कर मोक्ष कि ओर प्रेरित करते है |

अन्त मे, स्वामी वेदान्ताचार्य अपने आप को द्राविद वेदान्त विद्वान से सम्बोधित कर स्वयं की प्रसंशा करते है | स्वयं को संबोधित करते हुए कहते है -“ सन्तमिगु तमिळ् मरैयोन् तूप्पुल् तोण्ड्रुम् वेदान्तगुरु ” | उनकी प्रसंशा – “सेन्तमिळ्त्-तूप्पुल-तिरुवेङ्गडवन् वाळिये” |

अत: यह स्थापित हो गया है कि हमारे पूर्वाचार्य आळ्वारों एवं उनके पासुरों को सर्वोत्तम बोध माना गया है | इन २८ लेखों (अनुच्छेदों) मे, पूर्वाचार्य के विश्वासरूपि सागर की एक बूंद (विश्वाससागरबिन्दु) को प्रकाशित किया है | पूर्ण प्रभाव को समझने के लिये ऐसे नियमित एवं कुछ उदाहरण पर्याप्त नही है अपितु ऐसे भाव को समझने के लिये पूर्वाचार्यों के विलक्षण ग्रन्थों का नित्यानुसन्धान करना होगा | लेखक जैसे दासों कि आशा है कि इस माध्यम से आप भक्त पाठकों मे तनिक भर भी पूर्वाचार्यों के असीमित ग्रन्थों के विभिन्न व्याख्याएँ जैसे तिरुक्कुरुगै पिल्लान, नञ्जीयर, नम्पिळ्ळै, पेरियवाच्चान् पिळ्ळै, वडुक्कु तिरुवीधिपिळ्ळै, वादिकेसर अळिगय मणवाळ जीयर, स्वामी अळगिय मणवाल पेरुमाळ् नायनार, वेदान्ताचार्य, वरवरमुनि इत्यादि के प्रति इच्छा जागरूक हुई होगी | आगे और आशा करते है कि ऐसे विशुद्ध आचार्य परम्परागत सम्प्रदाय के आचार्यों के प्रति प्रेम और भक्ति अधिकाधिक जागरूक हो और उनके टीकाओं के प्रति भी | हम सभी गणातीत रूप से ॠणि है उभय वेदान्त शिरोमणि काञ्चि महाविद्वान प्रतिवादि भयङ्कर अन्नङ्गाचार्य स्वामी के प्रति जिन्होने ऐसे विलक्षण ग्रन्थ को प्रकाशित किया जिसमे यह सिद्ध है कैसे संस्कृत ग्रन्थ और पूर्वाचार्यों कि वेदिक व्याख्या, पूर्णतया आळ्वार मार्गदर्शित है |

आळ्वार की जय हो ! पासुरों की जय हो !

आचार्य की जय हो, जिनके शब्द विशुद्ध है !

इनके ग्रन्थों की जय हो, जो इस जगत् के लिये प्रकाश है !

और अन्त मे वेदों की जय हो !

सुख कि धुन्ध मे और दु:ख के अन्धकार मे, आशा है कि आळ्वार अनुग्रहीत पासुर हमारे दिल एवं बुद्धि मे प्रकाशित रहे | हे स्वामी रामानुजाचार्य !! यह एक इच्छा कि पूर्ति करिये और आप के दासानुदासों पर अनुग्रह करे |

आधार – https://granthams.koyil.org/2018/02/26/dramidopanishat-prabhava-sarvasvam-28-english/

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