श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
वरदराज भगवान् आविर्भाव कि कहानी
ब्रह्मा ने ध्यान से सुना जो वेगसेतु पेरुमाल ने सरस्वती को निर्देश दिया था। मैं आने वाले सभी दिनों में आपके तट पर बस जाऊँगा। उनके लिए संबोधित शब्द (ब्रह्मा) कि वह जल्द ही उपहार मिलेगा, उनके मन में प्रतिबिंबित हो रही थी I
ब्रह्मा ने घटनाक्रमों को कालक्रम से स्मरण किया – देवों, ऋषियों और मुनीयों के बीच विवाद; उन पर अभिशाप डाला गया ; सरस्वती क़्रोधावेश में छोड़ना; तपस्या के लिए पृथ्वी पर एक उपयुक्त स्थान के लिए खोज; अशरीरि की आवाज़; काँची में उनका आगमन; सरस्वती और असुरों से कई आतंक का सामना और कैसे एम्पेरुमान (श्री रंगनाथ / भगवान) ने हर अवसर पर रक्षा की।
इतना कुछ इतने कम समय में हो गया।
“आप धारणा से परे हैं। यह एक भाग्य के लिए मैं अनुरोध करता हूं कि आप हमेशा मेरे मन में स्थापित रहेंगे (अर्थात्, मैं आपको कभी नहीं भूलूंगा)। केवल आप ही मेरे धन हैं”।
आप और आपकी महानता के ऊपर चिंतन करना, केवल यही मेरा पोषण है और मेरे लिए लाभदायक भी।
“मैं उत्सुकता से उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब मुझे उपहार से सम्मानित किया जाएगा, अर्थात् आप” ब्रह्मा ने स्वयं से कहा।
सरस्वती के सहित, वे वेल्वी का कार्य जारी रखा। शुभ दिन पर, उत्तर वेदी (जहां यग्न के लिए अग्नि स्थापित की जाती है) के मूल में एक चमकदार प्रकाश दर्शित हुआ जो हजारों सूरज के चमक के साथ मेल खाता हो।
सभी इकट्ठे हुए प्रसन्नतापूर्वक नृत्य किये और भजन किये कि “वरदराज भगवान् का आविर्भाव हुआ। वरदराज भगवान् का आविर्भाव हुआ !! ”
देवताओं और मुक्तात्माओ ने अपनी प्रसन्नता को शंख ध्वनि के रूप में व्यक्त किया।
सभी उपस्थित लोग अपना मन वरदराज भगवान् के कमल नयनों पर स्थिर किये और लाल होंट जो फल के सामान थे। वे उनके नेत्र और होंठों के आकर्षण से अपने मन मोहित होने से रोक रहे थे I
वरदराज भगवान् का पवित्र उद्भव शुभ “प्राथ: श्रावण काल” पर हुआ था।
क्या वो समय “प्राथ: श्रावण काल” है?
प्रबुद्ध होने की प्रतीक्षा करें।
“वाजिमेते वपा होमे धातुरूत्तर वेधित: I उधिताय हुताधाग्नेर उतारान्काय मंगलम II” श्री देवराज मंगलम – मानवाल मामुनी से प्रस्तुत I
अडियेन श्रीदेवी रामानुज दासी
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