वरदराज भगवान् आविर्भाव कि कहानी १४ – २

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

वरदराज भगवान् आविर्भाव कि कहानी

<< भाग १४ – १

सोने के पर्वत के रूप में बढ़ती हुई, “पुण्य कोटी विमान” (भगवान का वाहन) दिखाई दे रहा था। अंदर वरदराज भगवान् एक  प्रकाश के रूप में दिखाई दिये जो सूरज को भी लज्जित करदे।

“चैत्र मासी सिथे पक्षे चतुर्धस्याम तिथौ मुने:

शोभने हस्त नक्षत्रे रविवार समन्विते I

वपाहोमे प्रवृथ्थे तू प्राथस सवन कालिके:

धातुरत्तर वेध्यंथ: प्रातुरासीत जनार्धना II”

चैत्र मॉस का रविवार का दिन था, मामनिवण्णन् प्रकट हुए। यह शुभ दिन हस्त नक्षत्र में नये चांद के चौथे दिन था।

प्रातः सवनम (प्रातस् सवन) का समय, भगवान ब्रह्मा के नेत्रों के लिए पर्व हुए।

वेल्वी सुबह, दोपहर और शाम को तीन बार किया जाना है। क्रमानुसार, इन्हें प्रातः सवनम, मध्यानिक सवनम और सायम सवनम के नाम से जाने जाते है।

सुबह याग में जानवरों के आंतरिक भाग का मांस आवश्यक है।

उस समय पेररुरालन (वरदराज भगवान्) धर्मार्थ रूप से प्रकट हुए थे।

नारायण स्वयं वरदराज भगवान् के रूप में प्रकट हुए हैं।

सर्वान्तर्यामी भगवान्, उनके बाहों में, शंख, चक्र और गदा सहित अब हमारे लिए वरदराज भगवान् का रूप लिया है।

वेदांत का सार प्रकाश के रूप में अब हमारे लिए (वरदराज भगवान् के रूप में) आये है। वह जो हमें उद्धार का मार्ग  (वैकुंट) गोचारित करते है, वे हमारे लिए नीचे उतर आये है। सभी उन्हें देखकर वरदराज भगवान् की महिमा कर रहे थे।

वहां एकत्र सभी वरदराज भगवान् के मनमोहित आकर्षण में वे स्वयं को खो दिया, जिन्होंने “मंजुयूर पोन्मलै मेलेलुन्ध मामुगिल” सोने के एक ऊंचे पहाड़ के ऊपर एक बादल का रूप याद दिलाया था I

ऐसा दिखाई दिया, ब्रह्मा उन्हें देखकर, जो साधारणतः आंखों को पता लगने योग्य नहीं होते है, भ्रांत चित्त हो गये ।

तिरुमंगै आळ्ळवार कहते है “अथथा अरिये एंर्रालैक्का पिथथा एनरू पेसुगिन्रार पिरार एन्नैय”  – अगर मैं आपको पिता, राजा इत्यादि के रूप में पुकारता हूं, तो अन्य जन मुझे पागल कहते है। भक्ति के चरम पर जो होते है वे अन्य लोगों के लिए पागल हि होंगे।

नारद भक्ति सूत्र  – उन्मथ्थवथ , जडवथ और पिशाचवथ के तीन लक्षणों का वर्णन करती है।

भक्ति (भगवान से प्रेम और समर्पण) का अनुभव मनुष्यों में भिन्न भिन्न  हो सकता है। यह किसी किसी को जगह जगह ब्रमण करवाती है, एक स्थान पर टिकने नहीं देता, पागल प्रतीत होते है। और किसी को एक निर्जीव वस्तु के समान एक हि स्थान पर स्थिर रखता है और कुछ लोगों को प्रेत के रूप में।

“मीरा हो गयी मगन…ओह गली गली हरिगुण गाने लगी”

(मीरा कृष्ण के पीछे पागल थी। वह गलियों में चारों ओर घूमती थीं और हरि के गुण गाती थीं)। मीरा की भक्ति भजन के रूप में बहने कि यह स्थिथि को “उन्मथ” अवस्था को दर्शाती है।

जट भरत एक उत्कृष्ट भक्त थे, आस पास कि दुनिया से अचेतन होके एक स्थान पर स्थित थे। यह जडवथ भक्ति का एक उदाहरण है। शंकर भगवथ्पाद आश्चर्य होते थे कि क्या भक्ति से परे कुछ और शक्ति भी है।

वरदराज भगवान् की दर्शन से ब्रह्मा आश्चर्यचकित हो गए । एक मनुष्य की तरह, कई दिनों के भूखे, जो भोजन देखने पर प्रतिक्रिया होगी,  वरदराज भगवान् का दर्शन अयन के नेत्रों के लिये पर्व हुआ । उसके मुंह से निकला था “आरावमुदे! आरावमुदे! “।

खुशी के आँसू  निकलने लगे थे , उनका शरीर काँपता हुआ, यहां और वहां दौड़ते और नहीं जानते कि क्या करना है । ब्रह्मा ने अपने नेत्र वरदराज भगवान् पर स्थिर रखा था I

समय समय पर, अपने हाथों से ताली बजाते और एक या दो शब्द बोलते कि “वरदराजा !! देवराजा !! दयानिधि !! पेरारूराला !! “(वरद राज भगवान के अलग-अलग नाम), नृत्य करते हुए और चक्कर काटते हुए (प्रदक्षिणा कर रहे थे) I इस प्रक्रिया में अनजाने में उन्होंने उल्टा भी गुमे (अप्रदक्षिणा)।

पुराण ने स्पष्ट रूप से ब्रह्मा की यह स्थिति को चित्रित किया –

“प्रदक्षिणाम प्रैति तधाप्रदक्षिणाम प्रयाति धूरम पुनरेति सन्निधिम I

करेन पस्पर्स ममार्ज तत्वपू: प्रियेंन गातं परिषस्वजे क्षनाम II”

शास्त्र भी इस स्थिति को औचित्य देते हैं –

“अत्यंत भक्ति युक्तस्य न शास्त्रं नैव च क्रम:”

जो भक्ति में डूबे हुए हो वे शास्त्र, नियम, अधिनियम वगैरह के निश्चित रूप से (भक्त) अधीन नहीं है । ब्रह्मा ने सोचा, “वरदराज भगवान् पास से इतने सुंदर और सुरुचिपूर्ण दिखते है। और दूर से?”

तुरंत वह दूर गये और उन्हें देखा।

वह और भी सुन्दर दिखायी दिए। और कुछ दूर गये और आराधना की। वह वरदराज भगवान् के पास गये और अपनी उंगलियों से उनको स्पर्श किया, धीरे-धीरे उनके गालों को निचोड़ा, और गले लगा लिया। परंतु शिशु वरदराज भगवान् को ज़ोर से गले लगाने से दर्द हो सकता सोचके है, झिझके ब्रह्मा। अपने हाथ वापस ले लिये। चारों ओर लोग ब्रह्मा के यह कृत्यों से आश्चर्यचकित थे। चतुर्मुख एक काँपते आवाज़ में एक भावनात्मक श्रद्धांजलि अर्पित की वरदराज भगवान् को।

वास्तव में कैसे?

अगले भाग में …

अडियेन श्रीदेवी रामानुज दासी

आधार  – https://srivaishnavagranthamwordpress.com/2018/05/21/story-of-varadhas-emergence-14-2/

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