श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्री ईयुण्णि माधव पेरुमाळ् स्वामीजी का वैभव
श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी से ईडु मुप्पत्ताऱायिरम् (श्रीकृष्णपाद स्वामीजी द्वारा लिखा हुआ व्याख्या जो श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी के कालक्षेप पर आधारित हैं) प्राप्त करने के पश्चात श्री ईयुण्णि माधवप्पेरुमाळ् स्वामीजी ने इस व्याख्या को अपने पुत्र श्रीईयुण्णि पद्मनाभप्पेरुमळ् को सिखाया।
उन्होंने उन्हें कई ओर श्रीसूक्तियों से आवश्यक गूढ़ार्थ भी सिखाया ताकि वह श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में संलग्न रहे। श्रीमाधवप्पेरुमाळ् ने यह गूढ़ार्थ कृपाकर अपने शिष्य श्रीकोलवराह नायनार को सिखाया जो श्रीनालूर् पिळ्ळै नाम से भी जाने जाते हैं ताकि यह इस दर्शन में संलग्न रहे। उन्होंने इस ज्ञान को अपने पुत्र श्रीनालूर् आच्चान् पिळ्ळै को कृपा बरसाकर प्रदान किया। श्रीनालूर् आच्चान् पिळ्ळै ने अपने शिष्य श्रीशैलेश स्वामीजी को प्रदान किया जो श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के आचार्य थे और तत्पश्चात् उसे श्रीतिरुनारायणपुरत्तु आय और तिरुवाय्मोऴि आच्चान् पिळ्ळै को सिखाया गया। इसे हम उपदेश रत्नमाला के ४९वें पाशुर में देख सकते हैं “आङ्गवर्पाल् पेऱ्ऱ सिऱियाऴ्वान् अप्पिळ्ळै ताम् कोडुत्तार् तम् महनार् तम् कैयिल् पाङ्गुडने नालूर् पिळ्ळैक्कु अवर् ताम् नल्ल महनार्क्कु अवर् ताम् मेलोर्क्कु ईन्दार् अवरे मिक्कु” (ईडु मुप्पत्ताऱायिरम् के अर्थों को प्राप्त करने के लिये यह वंशावली हैं)।
श्री ईयुण्णि श्रीमाधवप्पेरुमाळ् स्वामीजी का दिव्य नक्षत्र हस्त हैं। उनकी तनियन हैं
वरदार्यकृपापात्रं श्रीमाधवगुरुरं भजे ।
कुरुकादीश वेदान्त सेवोंमीलित वेदनम् ॥
(मैं श्री ईयुण्णि श्रीमाधवप्पेरुमाळ् स्वामीजी कि प्रशंसा करता हूँ जो श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी के कृपापात्र हैं जिन्हें वरदार्य के नाम से भी बुलाते हैं। श्रीसहस्रगीति पर कालक्षेप करने के कारण श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी को स्पष्ट ज्ञान था जिसे तमिऴ् में उपनिषद भी कहते हैं जिसे श्रीशठकोप स्वामीजी ने कृपा कर प्रदान किये हैं)।
श्रीईयुण्णि पद्मनाभप्पेरुमळ् का दिव्य नक्षत्र स्वाती हैं। उनकी तनियन हैं
एनावगाह्य विमलोस्मि शठारिसूनोर्-वाणीगणार्थ् परिबोध सुधापकायाम।
श्रीमन् मुकुन्द चरणाभ्जमधुव्रथाय श्रीपद्मनाभ गुरवे नम आचरामः ॥
(हम उन श्रीपद्मनाभप्पेरुमळ् कि पूजा करते हैं जो श्रिय:पति मुकुंदन के दिव्य चरणों में भृंग के समान हैं और जिनके प्रयास से अमृत के सागर में तल्लीन होने से हमारा मन पवित्र हो जाता हैं जो ज्ञान हैं जिसे हम श्रीशठकोप स्वामीजी के स्तोत्र के अर्थो से प्राप्त कर सकते हैं)।
श्रीनालूर् पिळ्ळै स्वामीजी का दिव्य नक्षत्र पुष्य हैं और उनकी तनियन हैं
श्रीपद्मनाभ कुरुत शठजिन्मुनीन्द्र श्रीसूक्तिभाष्यमदिगमय सम्रुद्धबोधः ।
तत् देवराजगुरवे ह्यतिशचतुश् पूर्वासेत्त कोलवर देशिकमाश्रये तम॥
(मैं श्रीकोलवराह नायनार [नालूर्प पिळ्ळै] के दिव्य चरणों को पकडा हूँ क्योंकि नालूर नामक गाँव में विराजमान होने के कारण जो दीप्तिमान हैं। उनको ईडु का पूर्ण ज्ञान था जो श्रीशठकोप स्वामीजी के श्रीसहस्रगीति कि दिव्य व्याख्या हैं जिसे श्रीईयुण्णि पद्मनाभप्पेरुमळ् से प्राप्त हुआ हैं। श्रीकोलवराह नायनार ने बड़ी कृपा से इन ईडु के ज्ञान को श्रीनालूर् आच्चान् पिळ्ळै को प्रदान किया)।
श्रीनालूर् आच्चान् पिळ्ळै कि तनियन
नमोस्तु देवरजाय चतुर्ग्रामनिवासिने ।
रामानुजार्यदासस्य सुताय गुणशालिने ॥
(मैं श्रीनालूर् आच्चान् पिळ्ळै को अपना अभिवादन प्रदान करता हूँ जिन्हें देवराजर के नाम से भी जाना जाता हैं जो नालूर नामक गाँव में निवास करते थे जो नालूर् पिळ्ळै के सुपुत्र भी हैं जिन्हें श्रीरामानुज दास भी कहते थे। श्रीनालूर् आच्चान् पिळ्ळै सभी दिव्य गुणों से परिपूर्ण हैं)।
कोलादिपात् विदुवारभ्य सहस्रगीतेर्भाष्यम् हि पूर्वतन देशिकवर्यगुप्तम।
त्रेता प्रवर्तय भुवियः प्रतयान्चकार श्रीदेवराज गुरुवर्यमहम् भजे तम॥
(मैं उन महान आचार्य देवराजर (श्रीनालूर् आच्चान् पिळ्ळै) कि प्रसंसा और प्रणाम करता हूँ जिन्हें ईडु कि व्याख्या प्राप्त हुई हैं जिसे पूर्वाचार्यों ने अपने पिता श्रीकोलाधिपर से प्राप्त कर बड़ी सुरक्षता से रखा हैं और पूरे संसार को इन तीन आचार्यों [श्रीशैलेश स्वामीजी, श्रीतिरुनारायणपुरत्तु आय और श्रीतिरुवाय्मोऴिआच्चान् पिळ्ळै ] के माध्याम से बताया हैं)
श्रीशैलनाथगुरु मातृगुरुत्तमाभ्याम् श्रीसूक्ति देशिकवरेण च यस्त्रिदैवम्-
व्यक्तश्शठारिकृति भाष्य सुसम्प्रधायो विस्तारमेति सहि वैष्णवपुन्गवेशु ॥
(वह ईडु का सत्सम्प्रधाय जो श्रीसहस्रगीति पर भाष्यम हैं जो इन तीन आचार्यों श्रीशैलेश स्वामीजी, श्रीतिरुनारायणपुरत्तु आय और श्रीतिरुवाय्मोऴि आच्चान् पिळ्ळै से ख्याती प्राप्त किये और श्रीवैष्णव के ज्येष्ठ और श्रेष्ठों में प्रधानता पाये)।
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अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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