यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ३७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम्

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श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कृपाकर श्रीपेरुम्बुदूर् के लिये प्रस्थान किये 

तत्पश्चात श्रीवरवरमुनि स्वामीजी श्रीपेरुम्बुदूर् के लिये प्रस्थान किये जैसे कि इस श्लोक में उल्लेख हैं 

यतीन्द्रत्जननीम्प्राप्य पुरीं पुरुषपुङ्गवः।
अन्तः किमपि सम्पश्यन्नत्राक्षीः लक्ष्म्णं मुनिम्॥

(पुरुषों में सबसे उत्तम श्रीवरवरमुनि स्वामीजी, श्रीरामानुज स्वामीजी के जन्म स्थान श्रीपेरुम्बुदूर् गये, उस स्थान के विशेषताएँ को देखे, प्रसन्न होकर श्रीरामानुज स्वामीजी कि पूजा किये)। खुश होकर उस नगर में खड़े होकर कहा 

इदुवो पेरुम्बुदूर् ? इङ्गे पिऱन्ददो
एतिरासर् एम्मिडरैत् तीर्तार् ? – इदुवोदान
तेङ्गुम् पोरुनल् तिरुनगरिक्कोप्पान
ओङ्गु पुगऴुडैयवूर्

(क्या यह श्रीपेरुम्बुदूर् हैं? क्या यह वह स्थान हैं जहां यतिराज का अवतार हुआ और हमें बाधाओं से पार लगाया? क्या यह वों स्थान नहीं हैं जो आऴ्वार्तिरुनगरि के समान प्रसिद्ध हैं जहाँ तामिरबरणि नदी बह रही हैं!) वें एक और पाशुर गाते हुए नगर में प्रवेश किया 

एन्दै एतिरासर् एम्मै एडुत्तळिक्क
वन्द पेरुम्बुदूरिल् वन्दोमो !-सिन्दै
मरुळो ? तेरुळो ? मगिऴमालै मार्बन्
अरुळो इप्पेट्रुक्कडि ?

(क्या हम श्रीपेरुम्बुदूर् पहुँच गये हैं जहाँ हमारे स्वामी श्रीयतिराज हमारा पोषण करने अवतार लिया हैं? क्या हमारा मन व्यग्र हो रहा हैं? या क्या हम दृढ़ता से स्पष्ट हैं? क्या यह भाग्य [श्रीपेरुम्बुदूर् पधारने का] उसकी छाती (श्रीशठकोप स्वामीजी) पर मगिऴमालै कि (सुगंधीत फूल) माला कि कृपा से हैं?) आनंद से लक्ष्य प्राप्त करने का ध्यान करते हुए नगर में प्रवेश किया जिसे प्राप्त करना असंभव हैं। उन्होंने श्रीरामानुस नूट्रन्दादि का ३१ वां पाशुर “आण्डुगळ् नाळ् तिङ्गळाय…..इरामानुसनैप् पोरुन्दिनमे” पूर्ण हृदय से गाया (हे मन! वर्षों से हम इस संसार में नाना प्रकार के योनियों में जन्म लेकर क्लेशों का अनुभव किए हैं। आज एकाएक ही सुंदर भुजावले श्रीहस्तिगिरिनाथ श्रीवरदराज भगवान के पादभक्त श्रीरामानुज स्वामीजी का आश्रय लिया जो काञ्चीपुरम् में निवास करते हैं)। उन्होंने श्रीपेरुम्बुदूर् के मन्दिर में प्रवेश कर श्रीभाष्यम् (श्रीवेदव्यास के ब्रह्म सूत्र पर श्रीरामानुज स्वामीजी द्वारा लिखित व्याख्या) सीखने कि आज्ञा प्राप्त किये। उस रात्री श्रीरामानुज स्वामीजी श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के स्वप्न में आये और उन्हें बुलाकर कहा “हम आपको श्रीभाष्यम कांचीपुरम के श्रीवरदराज भगवान के मन्दिर में सिखायेंगे। किडाम्बि नायनार के पास पहुँचे। हमें और श्रीशैलेश स्वामीजी को प्रसन्न करने हेतु पढे और तत्पश्चात दिव्य प्रबन्ध के व्याख्यों का निरंतर प्रचार प्रसार विभिन्न माध्यम से करें”। श्रीरामानुज स्वामीजी के निर्हेतुक निर्देश से वें पूर्ण उत्साह से श्रीरामानुज स्वामीजी द्वारा रचित श्रीभाष्यम् को सीखने के लिये काञ्चीपुरम् के श्रीवरदराज भगवान के मन्दिर को लौटे। 

आदार – https://granthams.koyil.org/2021/08/21/yathindhra-pravana-prabhavam-37-english/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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