यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ४४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम्

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अण्णन् ने जीयर् स्वामीजी के शरण होने का निर्णय किया 

तदागतां तां व्यतिदामनिन्दितां व्यभेदहर्षां परिधीनमानसाम्।
शुभान्निमित्तानि शुभानिभेजिरे नरंश्रियाजुष्टमिवोपजीविनः ॥

(जैसे निधन जनों को धनी व्यक्ति मिलता और लाभ प्राप्त होता हैं, कुछ शुभ संकेतों से सीता माता प्राप्त कर स्वयं को खायम रखा जो अकथनीय कष्टों से गुजरे, किसने सोचा कि ओर कष्ट उनपर बरसेंगे, जो बिना किसी दोष के थे और जिनके पास बिल्कुल खुशी नहीं थी)। अण्णन् ने भी कुछ शुभ चिन्ह उत्पन्न किया और फिर आच्चि (तिरुमञ्जनमप्पा कि पुत्री) कि तिरुमाळिगै में गये और कहा 

रङ्गेश कङ्कर्यं सुतीर्थ देवराजार्यजांपाखलु भाग्यशीला।
रम्योपयन्तुः पदसमाश्रयेण याऽस्मत्कुलं पावनमाधनोति

(क्या आच्चियार् जिसने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के चरणों कि शरण लिये और हमारे वंश को पवित्र बनाया और जो तिरुमञ्जनमप्पा कि पुत्री हैं भाग्यशाली नहीं हैं?) वें बहुत प्रसन्न हुए और कहा “क्या आप द्वारा बनाये गये प्रसाद को पाने के कारण हमें यह लाभ प्राप्त नहीं हुआ!”। उन्होंने तत्पश्चात उत्तम नम्बी के लिये यह संदेश भेजा और यह संदेश अपने भाइ कन्दाडै ऐयङ्गारों में फैलाने को कहे। वें सुनिश्चित करने उनके निवास स्थान में गये कि वें श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों कि शरण होवे। आच्चियार् के पुत्र अण्णन् , दाशरथी अप्पै और तन्दै  एम्बा ने भी उनसे कहा कि उनका भी यही स्वप्न हैं जो अण्णन् का हैं और उनके चरणों में नतमस्तक हुए। वें उनके साथ एम्बा के तिरुमाळिगै में गये जो लक्ष्मणाचार्य जो एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे के पोते हैं। 

यह सुनकर एम्बा बहुत उग्र हो गये और कन्दाडै अण्णन् से पूछा “एक उच्च वंश में जन्म लेने के पश्चात जिसका बहुत नाम, शिक्षण और आचरण हैं क्या ऐसे आप करेंगे?” अण्णन् ने अप्पा और अन्यों के तिरुमाळिगै में गये जो पेरिय आयी जो एम्बा के पुत्र के समान हैं के दिव्य वंश से हैं और उनसे जीयर् स्वामीजी के शरण होने के लिये अच्छे शब्दों में बात किये परन्तु उन्होंने भी  श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के शरण होने से अस्वीकार कर दिया। अण्णन् को हृदय में बहुत दुख हुआ और तत्पश्चात करीब २० जनों के तिरुमाळिगै में गये जो उनके वंशज हैं और उनके भाई के समान हैं। उन्होंने हृदय से उनका स्वागत कर साष्टांग दण्डवत किया, अण्णन के अच्छे शब्दों को सुने, अपने स्वप्नों और अन्य शब्दों को कहा, श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि वैभवता कि प्रशंसा किये और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों कि शरण होने के अपने इच्छा को उनके समक्ष कहा। उन्होंने फिर उन सभी को अपने परिवार सहित श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य तिरुमाळिगै में जाने को कहा। 

उन्होंने अपने साथ तिरुवाऴियाऴवार् को साथ ले गये जो अपने पिता का घर छोड़ कन्दाडै अण्णन् के दिव्य तिरुमाळिगै में गुरुकुलवासम् जैसे आये और कन्दाडै अण्णन् के दिव्य चरणों को धारक, पोषक और भोग्यम् समान माना। अण्णन् ने शुद्ध सत्वम अण्णन् को अपनाया जो जीयर के दिव्य चरणों के शरण हुए, उनके नित्य अपेक्षा को देख और अण्णन् के भगवद विषयम में सन्युक्तता को देखा ताकी जीयर् अण्णन् पर अपनी कृपा बरसायेंगे। अण्णन् ने विचार किया “अपने नाम शुद्ध सत्वम अण्णन् पर खरे उतरे और वें हमारे विषय में अच्छा कहेंगे। अपने शुद्ध हृदय के कारण सभी अपने स्थान में सही रहेगा और कोई बाधा नहीं आयेगी”। इन दोनों के साथ अण्णन् अपने साथ अपने भाई और सम्बंधीयों को भी जीयर के मठ में ले गये। 

आदार – https://granthams.koyil.org/2021/08/28/yathindhra-pravana-prabhavam-44-english/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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