श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
अप्पिळ्ळै (श्रीप्रणतार्तिहारी स्वामीजी) और अप्पिळ्ळार् (श्रीरामानुज स्वामीजी) श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों के शरण होते हैं
सात गोत्रों के नियम को सम्पन्न कर एऱुम्बियप्पा एऱुम्बि लौटने का निर्णय करते हैं परन्तु पूर्वसंकेत शुभ नहीं थे। उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के समक्ष साष्टांग दण्डवत किया जिन्होंने उन्हें प्रसन्न होकर कहा “यहाँ एक अद्भुत घटना होना हैं। आप ओर एक कोई शुभ दिन को लौट सकते हैं”। यह सुनकर प्रतिष्ठित जन एक दूसरे से कहने लगे “यह जान पड़ता हैं कोई अद्भुत घटना होनेवाली हैं” हालांकि उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि वह क्या हैं।
कुछ दिनों में अप्पिळ्ळै और अप्पिळ्ळार् अपने परिवार सहित श्रीरङ्गनाथ भगवान कि पूजा करने वहाँ पधारे। उन्हें श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों के प्रति क्षणिक भी प्रेम न था। दो दिन के लिये वें कावेरी नदी के तट पर निवास किये और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के अनुष्ठान का विश्लेषण किया, उनके बोलने में निपुणता, कैसे कन्दाडै अण्णन् और उनके वंशज श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के चरणों के शरण हुए और उत्सुकतापूर्ण से “यह कैसे हुआ?” अप्पिळ्ळै ने अप्पिळ्ळार् को बुलाकर पूछा “क्या यह हो सकता हैं?” अप्पिळ्ळार् ने उन्हें कहा “एऱुम्बियप्पा शास्त्रों में निपुण हैं। वें एक महान आचारसीलर् (जो विबिन्न नियत गतिविधियों को सही ढंग से देखता हैं) हैं। वें ऐसे नहीं कर सकते हैं। हम जाकर पूछेंगे”। उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के मठ के समीप गये उनके एक विश्वसनिय व्यक्ति जो समर्थ था, से कहें “जाकर एऱुम्बियप्पा से कहें अप्पिळ्ळान् आये हैं। अगर एऱुम्बियप्पा वहाँ हैं तो वें तुरन्त पधारेंगे। अगर कोई और हैं तो वें पूछेंगे अप्पिळ्ळान् कौन हैं?” उस व्यक्ति ने एऱुम्बियप्पा का पता लगाया और उन्हें साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया। उन्होंने अप्पा से कहा “अप्पिळ्ळार् गली में उनकी प्रतिक्षा कर रहे हैं। उन्होंने दास को आप श्रीमान को उनके आने के विषय में बताने को कहा हैं” यह सुनकर अप्पा प्रसन्न हुए और बड़े विनम्रता से कहे “यह उनके लिये एक अच्छा समय हैं”। उन्होंने अप्पिळ्ळार् से मिलने तुरन्त चले गये। अप्पिळ्ळार् ने अप्पा के काँधों पर अंकित शंख और चक्र को देखा और स्पष्टता से जान लिया और अप्पा को साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया। अप्पा ने उनके विषय में जाना और उनके साथ एक तिरुमाळिगै के बैठक में बैठे। अप्पा ने फिर उनसे वह बात को बताया कि कैसे श्रीरङ्गनाथ भगवान ने उन्हें ऊपर उठाने हेतु श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों के शरण किया। यह सुनकर अप्पिळ्ळार् के मन में स्पष्टता आगई। स्वयं को भी उपर उठाने हेतु उन्होंने अप्पा से कहा कि अप्पिळ्ळै और अन्य सभी दिव्य कावेरी नदी के तट पर शिविर में रह रहे हैं और अप्पा से अनुरोध किया वें वहाँ पधारे। अप्पा मठ में लौटे और श्रीवानमामलै जीयर् स्वामीजी को अब हुई पूर्ण घटनाओं कि सूचना दिये और उनसे कहा “श्रीमान को दास पर उन्हे सुधारने और वहाँ लाने हेतु कृपा बरसानी होगी”। उन्होंने फिर अप्पिळ्ळार् के साथ वहाँ गये और अप्पिळ्ळै से मिल प्यार से बात किये। उन्होंने अप्पिळ्ळै से अच्छे निर्देश को साझा और अप्पिळ्ळै में एक पवित्रता का पोषण कर उसमें एक प्रेरणा उत्पन्न किये। इस दौरान श्रीवानमामलै जीयर स्वामीजी श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के समीप गये और कहा “अप्पिळ्ळै और अप्पिळ्ळार् प्रख्यात जन हैं; वें कावेरी नदी के तट पर निवास कर रहे हैं। उन्होंने प्रारम्बीक सात्विक सम्भाषणम् प्राप्त कर लिया हैं। एऱुम्बियप्पा अभी वहाँ गये हैं। अच्छे आचार्य प्राप्त करने हेतु जो होना हैं वह प्राप्त कर चुके हैं। यह निश्चित हैं कि वे आप श्रीमान के चरणों के शरण होंगे। क्या श्रीमान का दिव्य मन कभी भी यह नहीं सोचता हैं कि ‘आत्मलाभात् परं किञ्चिदन्यत् नास्ति’ (आत्मा को सही दिशा प्रदान करना हीं महानतम लाभ हैं। बाकी सब नही हैं)? यह भी कहा गया हैं कि आचार्य शिष्य और भगवान के मध्य में उपकारकन हैं। श्रीमान को उनपर कृपा बरसानी होगी। श्रीमान का दिव्य मन ऐसे होना चाहिये कि एऱुम्बियप्पा और दास कि इच्छा पूर्ण हो जाये”। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने कृपाकर कहा “श्रीरामानुज स्वामीजी का ऐसे दिव्य विचार था; एक का दिव्य नाम भी श्रीरामानुज स्वामीजी का हैं”। श्रीवानमामलै जीयर् स्वामीजी भी बहुत प्रसन्न हुए और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने अनुरोध किया “श्रीमान को दास को उन्हें लाने कि आज्ञा प्रदान करना चाहिये”।
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अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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