श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कृपाकर व्याख्यान कि रचना किये
जैसे कि कहा गया हैं “भूत्वा भूयो वरवरमुनिर भोगिनां सार्वभौम श्रीमद रङ्गेवसति विजयी विश्वसंरक्षनार्थम्” (आदिशेष इस संसार के रक्षण हेतु श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के रूप में अवतार लिए और भव्य से श्रीरङ्गम् में निवास कर रहे हैं), क्योंकि उन्होंने संसार के रक्षण हेतु अवतार लिया उन्होंने अपने दिव्य मन में इस संसार के उद्दार का निश्चय किया और कृपाकर श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी के रहस्यों पर व्याख्यानों कि रचना किये।
रहस्यग्रन्थ तत्वेषु रम्यामास तत्प्रियम्।
वाक्यसङ्गति वाक्यार्थ तात्पर्याणि यथाश्रुतम्॥
व्याकुर्ववन्नेव पूर्वेशां वर्तमानः पतेपते।
सवमनीषागतं नैव कल्पयन किञ्चिदप्यम्॥
गुप्ताम सर्वै गुरुत्वेन कूटानर्थान्धीतिशत्।
देशिकानां निबन्द्रूणां दर्शयन्नेक कण्ठताम्॥
व्याक्यालङ्कार वाक्याकि व्याचक्षाणो विचक्षणः।
सुदीयः स्वाद्यामास स्वस्वरूपं सुदुर्गृहम्॥
(यह श्रीवरवरमुनि स्वामीजी पूर्वाचार्यों द्वारा अपनायेँ विधियों में दृढ़ता से निहित हैं; उन्होंने कभी भी यह नहीं कहा जो उनके मन को भाता हैं परन्तु दयापूर्वक वहीं कहे जो उनके आचार्यों ने उन्होंने सीखाया हैं, अर्थ पर आधारीत व्याख्यों के लिये, एक श्लोक के पिछले और वर्तमान भागों के सम्बन्ध के लिये, शब्दों और भावनाओं के अर्थ। अपनी दया से उन्होंने अपने विशिष्ट अर्थों को प्रगट किया जो अर्थों की महानता के कारण पूर्वाचार्यों द्वारा छिपाये गये थे। इस प्रकार उन्होंने उन लोगों को सत्य के अर्थों के साथ आनंदित करने के लिये जो पूरी तरह से रहस्य ग्रन्थों में लगे हुए थे। इसके अलावा चाहे वह वेद हो या उपनिषद या स्मृतियाँ या इतिहास जैसे श्रीरामायण आदि या श्रीपाञ्चरत्न के विषय में बताते हैं, इन प्रामाणिक ग्रन्थों के माध्यम से उन्होंने आचार्यों की एकमतता को दिखाया जिन्होंने कई अलग अलग ग्रन्थों की रचना किये थे। एक विशेषज्ञ के रूप में उन्होंने दयापूर्वक श्रीवचन भूषण के सूक्तियों पर व्याख्यान लिखा, इस तरह ज्ञानियों को आत्मस्वरूप की वास्तविक प्रकृति का अनुभव कराकर आनंदित महसूस कराया जिसे जानना मुश्किल हैं)। इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने तत्त्वरहस्य पर व्याख्या लिखना प्रारम्भ किया और फिर दयापूर्वक एक व्याख्या लिखा जिसे श्रीवचन भूषण के लिये एक विशिष्ट संकलन के रूप में सराहा गया जो सभी गहरे और विशिष्ट अर्थों को प्रगट करता हैं। उन्होंने श्रीवचन भूषण की महिमा का ध्यान किया और एक पाशुर संकलित किया
चीर्वचनबूडणमाम् दैय्वक्कुळिगैप् पेऱ्ऱोम्
पार् तन्नैप् पोन्नुलगाप्पार्क्क वल्लोम्- तेरिल् नमक्कु
ओप्पार इनि यार् उलगासिरियन् अरुळ्
तप्पामल् ओदियपिन् तान्
(हमें श्रीवचन भूषण नामक दिव्य गोली प्राप्त हुई जिसके कारण हम इस संसार को परमपद के रूप में देख सकते हैं। यदि हम विश्लेषण करें तो श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी के दया के विषय में बोलने के पश्चात निशिचित रूप से हमारी बराबरी कौन कर सकेगा?)
उनके शिष्यों ने भी श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि स्तुति में निम्नलिखित श्लोक कि रचना किये:
वाक्भूषणम् वकुळभूषण शास्त्रसारम्
यो मातृशाञ्च सुखमम् व्यव्रुणोद्दयाळुः।
रम्योबयन्तृमुनये यमिमाम् वराय
तस्मै नमः शमदमादि गुणार्णवाय॥
(हम उन श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को प्रणाम करते हैं जो शुभ गुणों के सागर हैं जैसे समन (मन पर नियंत्रण), धामन (पाँच इंद्रियाँ पर नियंत्रण) और जिन्होंने श्रीवचन भूषण पर एक विस्तृत व्याख्या दिये जो कि श्रीसहस्रगीति का सार हैं जिसे श्रीशठकोप स्वामीजी ने कृपाकर लिखा हैं जो एक वकुलमाला धारण करते हैं जैसे कि हम जैसे सुस्त दिमाकवाले लोग भी समझ सकते हैं)।
इसके पश्चात श्रीवरवरमुनि स्वामीजी रामानुज नूट्रन्दादि पर व्याख्या लिखे जो श्रीवचन भूषण का आधार हैं और जो चरमपर्वनिष्ठा (अंतिम साधन में दृढ़ रहना जिसे साधन के रूप में आचार्य के साथ सलंगन किया जा रहा हैं) और ज्ञान सारम और प्रमेय सारम (प्रबन्ध जिसकी रचना श्रीरामानुज स्वामीजी के शिष्य श्रीदेवराजमुनि स्वामीजी ने किया) को समझाता हैं। उन्होंने श्रीसहस्रगीति जैसे दिव्य प्रबन्ध को भी निरन्तर प्रचार करके प्रतिष्ठा दिलाई जो पहिले नहीं थे। उस समय के आसपास उनके शिष्यों ने उनसे दयापूर्वक अपने दिव्य मुख से श्रीसहस्रगीति के विषय में एक प्रबन्ध कि रचना करने का अनुरोध किया और उन्होंने विधिवत रूप से तिरुवाय्मोऴि नूट्रन्दादि कि रचना किये। उन्होंने तत्त्वत्रय (श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य द्वारा रचित रहस्य) के लिये प्रमाणत्तिरट्टु और ईडु (श्रीसहस्रगीति पर श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी कि व्याख्या) कि रचना किये। उन्होंने कृपा करके उपदेश रत्नमाला कि रचना किये जिसमे आचार्यों के उपदेशों की वंशावळि का विवरण हैं जो संप्रदाय के अर्थों को बताता हैं। उन्होंने दया करके श्रीरामानुज स्वामीजी के नित्यम (तिरुवाराधन का क्रम या किसी के तिरुमाळिगै में भगवान कि पूजा करने का क्रम) पर एक संक्षिप्त लेख दिया।
आदार – https://granthams.koyil.org/2021/09/13/yathindhra-pravana-prabhavam-58-english/
अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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