श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
उन श्रीवैष्णवों को सुधारना जो उनके मध्य में शत्रुता पाल रहे हैं
दो श्रीवैष्णव आपस में अहंकार के कारण बहस कर रहे थे। उसी स्थान पर दो कुत्ते भी झगड़ रहे थे। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने यह देखा और उन कुत्तों से पूछे कि “क्या आप भी श्रीवचन भूषण पर विशेषज्ञ हैं इन श्रीवैष्णव जैसे जिनमे अहंकार विकसित हुआ हैं और बहस कर रहे हैं?” यह सुनकर उन दोनों श्रीवैष्णवों को अपने व्यवहार पर शर्मिंदगी हुई और उस दिन से दोनों झगड़ना बन्द कर दिये।
पदार्थों के प्रति वैराग्य
उत्तर दिशा से कुछ जन ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक धारण कर कुछ पदार्थ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के मठ में लाये। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने यह पता लगाया कि यह पदार्थ लाने के लिये जो धन हैं कैसे लाया गया हैं और उन्हें यह पता चला कि यह गलत तरिके से लाया गया हैं। उन्होंने तुरन्त उसे अस्वीकार कर दिया। तत्पश्चात मठ के जमीन पर पदार्थ लगाया गया और मठ में लाया गया।ओर जो उन खेतों मे काम कर्ते थे वे मठ का हि प्रसाद गृहण कर्ते थे। जिस स्थान पर वें बैठकर प्रसाद पाते थे उस स्थान को गाय के गोबर से साफ करते थे। जमीन उससे अभी भी गिली थी। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने जमीन गिला होने का कारण पूछे। वहाँ जो थे उन्होंने कारण बताया। रात होने के बावजूद उन्होंने तुरन्त वह सामग्री को श्रीभण्डारा में जमा कर दिया।
क्या बूढ़ी गिलहरी पेड़ पर चढ़ने में सक्षम नहीं हैं?
एक वृद्ध महिला जो मठ को छोड़ने में सक्षम नहीं थी रात्री में वहीं शयन करने लगी। यह देख श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने उसे मठ छोड़ने को कहा। जब वहाँ के लोगों ने उनसे पूछा तो उन्होंने यह कहा “गिलहरी भले हीं बूढ़ी हो गई हो क्या वह पेड़ चढ़ने में सक्षम नहीं हैं? जो हमारे लिये प्रतिकूल हैं उनके लिये हमारे विषय में बदनामी फैलाने के लिये यह पर्याप्त कारण हैं”।
कुछ को उनके मूल स्वभाव के लिये दण्ड
एक श्रीवैष्णव ने मठ के लिये तूदुवळैक्कीरै (एक प्रकार के पत्ते की सब्जी) लाये और एक महिला को दिये जो मठ के मडप्पळ्ळि (रसोय्घर) और प्रसाद बनाने के लिये इसका प्रयोग नहीं किया। पश्चात जब प्रसाद परोसा गया तब उस श्रीवैष्णव ने उस महिला को प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने यह देखा और दयापूर्वक पूछा कि क्या हुआ। उस श्रीवैष्णव ने पूर्ण घटना सुनाया। यह सुनकर श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने उस महिला को ६ महीने तक प्रसाद न बनाने को कहा। उस महिला ने प्रणाम किया और अपने अपराध के लिये क्षमा के लिये विनंती किये। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने उस महिला को हमेशा के लिये उसका कैङ्कर्य जारी रखने को कहा।
श्रीवैष्णवों को अकेले नहीं आना चाहिये
एक श्रीवैष्णव जिसका नाम वरन्तरुम्पिळ्ळै हैं एक दिन श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों कि पूजा करने कि इच्छा को प्रगट किया, अकेले पधारे और विनंती कर श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों में साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को बड़ा दु:ख हुआ और कहे “श्रीवैष्णवों को अकेले नहीं आना चाहिये, सभी को संग लेकर आना चाहिये” और उसे स्वीकार करने के पूर्व उसे मठ के सीढ़ी पर ६ महीने बैठेने को कहे।
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अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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