यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ७३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम्

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जैसे की इन पाशुरों में कहा गया हैं वें प्रतिदिन अपने भाग्य कि महानता पर ध्यान करते जिसे उन्होंने प्राप्त किया था। जैसे कि श्लोक में उल्लेख किया गया हैं वह प्रतिष्ठित जनों कि दिव्य गोष्ठी कि पूजा करता रहा 

अन्तः स्वान्तं कमपिमधुरं मन्त्रम् आवर्तयन्तीम् उत्यद्भाश्प
स्तिमितनयनामुज्जिता शेषवृत्तिम्
व्याक्यागर्भं वरवरमुने त्वन्मुखं वीक्षमाणां कोणेलीनः
क्वचित अणुरसौ सम्सतम्ताम् उपास्थाम्

(ओ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी! उस गोष्ठी में दास जो एक महत्वहीन इकाई हैं वह एक कोने में छिप जाता हैं और आप श्रीमान कि पूजा करते रहता हैं जो श्रीमान के मन में मधुर मन्त्र के जाप करते रहता हैं, श्रीमान के दिव्य नेत्र जो हिलती नहीं हैं हालांकि वें खुशी के अश्रु बहा रही हैं, श्रीमान का दिव्य चेहरा जिसने अन्य गतिविधियों को छोड़ दिया हैं और जो उसके भीतर समाहित हैं, उभयवेदान्त रहस्यार्थम (ऐसे वेदांतों के गूढ़ार्थ) की व्याख्या)। वें श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के अन्य सेवको के संग दयापूर्वक वहाँ रहने लगे। उनमें एक सेवक जिन्हें वरम् तरुम् पेरुमाळ् पिळ्ळै कहकर बुलाते थे जो श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के लिये तिरुक्कैच्चेम्बु (दिव्य हाथों में घड़ा) और तिरुवोट्रुवाडै (दिव्य पोछने का कपड़ा) कि सेवा करते थे। उनके केश बड़े हो गये थे। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने उनसे पूछा आपने केश क्यों नहीं कटवाये। उन्होंने कहा उनके यहाँ एक शिशु का जन्म होनेवाला हैं इसलिये उन्होंने नही कटवाये। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने उन्हें तुरन्त उसी दिन कटवाने को कहे और उन्होंने भी वैसे हीं किया। जब वें केश निकाल कर पुनः लौट रहे थे उनके गाँव से एक व्यक्ति ने कहा कि दस दिन पूर्व आपके यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ हैं (प्रथानुसार संतान होने के १०दिन बाद पिता को अपने केश को निकाल देना चाहिये)। यह सुनकर लोग वहाँ पर विस्मित हो गये और कहा “क्या सर्वज्ञता हैं!” उस व्यक्ति ने अपने पुत्र का नाम जीयर् स्वामीजी के नाम से रखा नायनार् । जैसे कि उपदेश रत्नमालै में कहा गया हैं “वन्दु परन्ददु एङ्गुम् इन्दत् तिरुनामम् ” (यह दिव्य नाम चारों और फैल रहा हैं) यह नायनार् नाम बहुत जगह प्रसिद्ध हो गया क्योंकि बहुत जन अपने पुत्र का नाम नायनार् रखे। 

उन दिनों में कन्दाडै अण्णन् श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि पसंदीदा हरी सब्जी की व्यवस्था कर रहे थे और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों में पूजा कर रहे थे कि उनको श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों कि सेवा निरंतर मिले। जब अण्णन् को अपने तिरुवाराधन के लिये प्रसाद का प्रबन्ध करने में कठिनाई हुई तब उसे अपने हृदय से देखते हुए जीयर् स्वामीजी ने दयापूर्वक वह प्रसाद दिया जो उन्होंने अण्णन् से प्राप्त किया। इस तरह अच्छे समय के दौरान श्रीवरवरमुनि स्वामीजी अपने शिष्यों के दृश्य और अदृश्य लाभों कि देखभाल कर रहे थे। उस समय श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को गोष्ठी में अपने शिष्य श्रीभट्टर्पिरान् जीयर् स्वामीजी कि कमी का अहसास हुआ जैसे इस पाशुर में कहा गया हैं 

अप्पिळ्ळै कन्दाडै अण्णन् मुदलानोर्
चेप्पमुडन् सेर्न्द तिरळ्तन्नै एप्पोऴुदुम्
पार्तालुम् एमक्कु इऴवाम भट्टर्पिरान् तादर् तन्नैच्
चूर तीरक् काणामैयाल्

(जब भी मैं विशेष जनों कि गोष्ठी जैसे अप्पिळ्ळै, कन्दाडै अण्णन् आदि को देखता हूँ मुझे बहुत दु:ख होता हैं कि श्रीभट्टर्पिरान् जीयर् स्वामीजी उस गोष्ठी के अंग नहीं हैं और मैं इससे डरता हूँ)। 

अत: श्रीभट्टर्पिरान् जीयर् स्वामीजी तुरन्त पधारे और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के चरणों कि पूजा किये जैसे इस पाशुर में उल्लेख हैं 

अप्पिळ्ळानुम् कन्दाडै अण्णनुम् अरुळ् पुरिन्द चडगोप दासरुम्
ओप्पिलाद सिट्रानुम् कूडिये ओङ्गुवण्मै मणवाळ योगिदान्
सेप्पि वाऴ्न्दु कळित्तुत् तेन् कोयिलिल् सिऱन्द वण्मैयैच् चेवित्तिरामले
तप्पियोडित् तवित्तुत् तिरिवदु तलैयेऴुत्तुत् तप्पदु काणुमे

(अप्पिळ्ळान्, कन्दाडै आण्डान्, श्रीशठकोप दास जिन पर अपनी कृपा बरसाई थी और अतुलनीय सिट्रान् के बढ़ते हुए कद श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के साथ होने के कारण और इसके बजाय मैं इस गोष्ठी से भाग रहा हूँ, की दिव्य दृष्टि की पूजा न करने के अपने दुर्भाग्य को मैं कैसे बता सकता हूँ, भटक रहा हैं?) 

श्रीवरवरमुनि स्वामीजी का मठ विद्वान, प्रख्यात आचार्य, सामान्य जन, आदि से भरा हुआ हैं जैसे कि इस पाशुर में बताया गया हैं

वादु सेयवेन्ऱु सिल वादियर्गळ् वन्दु मनमुऱिय निऱ्पर् ओरुपाल्
वाऴियेनवे पेरिय साबम​ऱ वेन्ऱु सिलर् वन्दनैगळ् सेय्वर् ओरुपाल्
पोदुम् इनि वादम् उन पादम् अरुळेन्ऱु पुग​ऴन्दु निऱपर् ओरुपाल्
पोङ्गिवरुम् एङ्गळ् विनै मङ्ग अरुळ् एन्ऱु सिलर् पोट्रि निऱपर् ओरुपाल्
इदिवै किडक्क म​ऱै नूल् तमिऴ तेरिन्दु सिलर् एदम​ऱ वाऴवर् ओरुपाल्
एदम​ऱ वादुलर्गळ् पेदैयर्गळ् तामयङ्गि निऱैन्दु इऱैञ्जि निऱपर् ओरुपाल्
मादगविनाल् उलगम् एऴैयुम् अळिक्क यन वन्द एदिरासर् अडिसेर्
मामुनिवर् दीपम् अरुळाळर् मणवाळ मामुनि मन्नु मडम् वाऴुम् वळमे

(कुछ जन चर्चा में शामिल होने के लिये पधारेंगे और चर्चा में हार जायेंगे और एक तरफ टूटे हुए हृदय के साथ खड़े हो जायेंगे; कुछ जन आयेंगे, अपने पापों से छुटकारा पाने के लिए अपना प्रणाम कर एक तरफ खड़े हो जायेंगे; कुछ जन कहेंगे कि हमें ओर चर्चा नहीं चाहिये, प्रशंसा करेंगे, उनकी दिव्य चरणों कि कृपा पाकर एक तरफ खड़े हो जायेंगे; कुछ उनकी प्रशंसा करेंगे, अपने बढ़ते पापों पर काबू पाने के लिये उनसे दया कि मांग करेंगे और एक तरफ खड़े हो जायेंगे; जबकी ये सब वहाँ हैं, तमिऴ् वेदों को जानकर, निर्दोष रूप से रहेंगे और एक ओर खड़े होंगे; श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य मठ जो श्रीरामानुज स्वामीजी के दिव्य चरणों के शरण लिए हैं, जो अपनी दिव्य कृपा से सभी सात लोकों का उत्थान करने के लिये पधारे हैं, इस तरह बहुतायत से जीवित रहेंगे)। 

आदार – https://granthams.koyil.org/2021/09/29/yathindhra-pravana-prabhavam-73-english/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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