श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्रीवेङ्कटेश भगवान इस तनियन् का प्रचार करते हैं
इस तनियन् से सम्बंधीत एक और अद्भुत बात हैं [श्रीशैलेश दयापात्रम् से प्रारम्भ कर और मणवाळमामुनिये इन्नमोरु नूट्ट्राण्डिरुम् के अन्त तक]। तेन्नन् उयर् पोरुप्पु (दक्षीण दिशा में दिव्य पहाड़ यानि तिरुमालिरुञ्चोलै) में तिरुमालिरुञ्चोलै भगवान और दैव वडमलै (उत्तर में दिव्य पहाड़) में अप्पन (श्रीवेङ्कटेश भगवान) इस तनियन् का समर्थन करेंगे और प्रचार प्रसार में सहायत करेंगे। इस तनियन् के उत्पन होने के पूर्व एक व्यक्ति जो मुमुक्षु था भगवान के ध्यान में नित्य घूमता रहता था। उसे ऊपर उठाने के लिये सर्वेश्वर ने उसे वह तनियन् सिखाया। उस व्यक्ति ने उस तनियन् को अपनी शरण मानकर उसका निरन्तर जाप करने लगा। फिर भाद्रपद महिने में जब श्रीवेङ्कटेश भगवान का तिरुमला में ब्रह्मोत्सव मनाया जाता हैं तब वह मुमुक्षु तिरुमला पहुँचा। अर्चक के माध्यम से श्रीवेङ्कटेश भगवान ने उसका हाथ पकड़ा उसे श्रीवैष्णवों कि गोष्ठी में लाये जो इयल गोष्ठी चाट्ट्रुमुऱै (दिव्य प्रबन्ध कि समाप्ती जो नित्य प्रति दिन में अनुसन्धान किया जाता हैं) का अनुसन्धान कर रहे थे। उन्होंने उस व्यक्ति से कहा “जो भी वें कृपाकर कह रहे हैं उसे सुनो” और उन्होंने उन श्रीवैष्णवों से कहा “वो जो अनुसन्धान करना चाहता हैं उसे सुनो”। मंदिर के कार्य के मुख्य अर्चक पेरिया केल्वी जीयर ने उस तनियन् का अनुसंधान किया जो संदेश रूप में श्रीविश्वक्सेनजी द्वारा प्राप्त हुआ। यह सुनकर उस व्यक्ति ने गोष्ठी को साष्टांग दण्डवत प्रणाम कर और उन्हें कहा “कृपया दास के प्रार्थना को सुने” और अविच्छिन्नित “यह कैसी अद्भुत विशेषता हैं! यह वहीं श्लोक हैं जिसे दास ने स्वप्न में प्राप्त किया और इसे यहाँ गाया जा रहा हैं”। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने कहा “अगर यह बात हैं तो कृपया उस श्लोक का अनुसंधान करिये”। उस व्यक्ति ने तुरन्त श्रीशैलेश दयापात्रम् … गाया। यह सुनकर सभी प्रसन्न हो गये और उसे कहे उसने यह श्लोक कैसे प्राप्त किया। यह सभी सुनकर वह व्यक्ति पूर्ण भक्ति से श्रीरङ्गम् पहुँचा और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के चरणों में गिर गया जैसे उखड़ा हुआ पेड़। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी जो बहुत दयालु हैं उस व्यक्ति को अपने दिव्य हाथों से पकड़ा और पूछा “आप कौन हैं? आप यहाँ क्यों पधारे हैं?” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया “दास कई दिव्य देशों में एक मुमुक्षु जैसे घुमता था” और वह सभी कहे जो उनके स्वप्न में उन्होंने देखा हैं। फिर उन्होंने वह तनियन् का अनुसन्धान किया और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों को अपने सिर पर रखा। उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी से कहा “श्रीवेङ्कटेश भगवान ने अपनी विशिष्ट कृपा दास पर बरसाई हैं, दिव्य गोष्ठी में दास को तनियन् कहने को कहा और दास को श्रीमान के दिव्य चरणों कि पूजा करने को कहे”। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी यह सब सुनकर कहे “आपको भगवान कि विशिष्ट कृपा प्राप्त हुई हैं। आपकी क्या इच्छा हैं?”। उस व्यक्ति ने कहा “दास को तनियन् प्राप्त हुई हैं जो मन्त्र के रूप में हैं जो मोक्ष प्राप्त करने का उपाय हैं; दास को मंत्रप्रदा आचार्य (वह जिसने मंत्र सिखाया हैं) तिरुमलैयप्पन् प्राप्त हुए हैं; दास को श्रीमान भी प्राप्त हुए हैं जो मंत्र प्रतिपाध्य देवता (उस मन्त्र के माध्यम से जानी जाने वाली अस्तित्व)। दास कि ओर कोई इच्छा शेष हैं क्या?”। उन्होंने अपने हाथों से ताली बजाते हुए पूरी तरह से नृत्य किया।
यह सुनकर श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने श्लोक को गाया
मन्त्रेत् देवतायाञ्च तथामन्त्रप्रदे गुरौ
त्रिषुभक्तिस्सदाचार्या सासिप्रथमसाधनम्
(सभी को इन तीन अस्तित्व के प्रति निरन्तर भक्ति के साथ आचरण करना चाहिये – मन्त्र, देवता जिन्हें उस मंत्र द्वारा समझाया गया हैं और आचार्य जो मंत्र सिखाते हैं; ऐसी भक्ति भगवद प्राप्ति का साधन हैं), यह कहते हुए कि इस व्यक्ति के साथ तीनों हैं! क्या यह विशेषता नहीं हैं जो किसी के योग्यता को पूरा करने के लिये आवश्यक हैं! वह बहुत प्रसन्न हुए और ताप आदि से प्रारम्भ कर पञ्चसंस्कार किया और उन्हें दास नाम दिया “श्रीवेङ्कटरामानुजदास”। भगवान ने भी उसे कहा “ओ श्रीवेङ्कटरामानुजदास! आओं! हम तुम्हें श्रीवैकुण्ठ प्रदान करेंगे” और उन्हें श्रीशठारी से सम्मान किया। वहाँ पधारे सभी जन ने उनका सम्मान किया और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वैभव कि प्रशंसा किये।
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अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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