श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
तिरुमालिरुञ्चोलै के भगवान ने तनियन् का प्रचार प्रसार किया
एक जीयर् जिसका श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों से सम्बन्ध था वे तिरुमालिरुञ्चोलै के भगवान के सभी कैङ्कर्य कर रहे थे। वें निरन्तर अपने आचार्य श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के आत्मगुण और विग्रहगुण का ध्यान कर रहे थे। वें मन्दिर कि परिक्रमा लगा रहे थे और यह सोच रहे थे कि श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के लिये एक तनियन् विशिष्ट जनों से उत्पन्न होना चाहिए जिसका निरन्तर ध्यान किया जा सके। वें श्रीविश्वक्सेनजी के सन्निधी में पहुँचे और उनकी पूजा किये जब मन्दिर के अर्चक वहाँ श्रीविश्वक्सेनजी कि तिरुवाराधन करने पहुँचे। उन्होंने तिरुवंधिक्काप्पु (विग्रह कि सुरक्षा के लिये कपूर का दिया लगाया) करने पहुँचे तब उन्होंने यह श्लोक ऊँचे स्वर से गया
श्रीशैलसुन्दरेशस्य कैङ्कर्यनिरतोयतिः।
अमन्यत गुरोस्स्वस्य पद्यसम्भवम आर्यतः॥
(एक जीयर् जो तेऱ्कुत् तिरुमलै (दक्षीण दिशा में दिव्य पहाड़) में भगवान के कैङ्कर्य करने में लीन हैं ने यह विचार किया कि विशेष जनों के मुख से एक तनियन् का उद्भव होना चाहिये) और भगवान के सन्निधी में अपना कैङ्कर्य को जारी रखने को गये। उस समय एक व्यक्त जिनका नाम सेनै मुदलियार् हैं जिसका श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों में सम्बन्ध हैं दक्षीण दिशा में कई दिव्य स्थानों में मङ्गळाशासन् करने के पश्चात भगवान के मंदिर में भगवान के दिव्य चरणों में पूजा करने पधारे। उन्हें देख जीयर् स्वामीजी बहुत प्रसन्न हुए और भगवान के सन्निधी में मङ्गळाशासन् करने ले गये। भगवान ने सेनै मुदलियार् पर कृपा बरसाये और उन्हें श्रीतीर्थ प्रदान किये। उन्होंने श्रीशठारी सेनै मुदलियार् के सिर पर रखकर अर्चक के माध्यम से कहे
जिह्वाग्रे तव वक्ष्यामि स्थित्वावतसुभावनम्।
पद्यं त्वदार्यविषयं मुनेरस्य ममाज्ञाः॥
(मैं आपके जिव्हा के नोक पर बैठकर अनुसन्धान करने जा रहा हूँ। इन जीयर् स्वामीजी को बताये कि मेरी
आज्ञा क्या हैं और आपके आचार्य श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के विषय में पवित्र क्या हैं)। यह सुनकर सेनै मुदलियार् जैसे इस श्लोक में कहा गया हैं
धन्योस्मीतिच सेनेश देशिकोवदतस्वयम्।
वहन्शिरसि देवस्य पादौ परमपावनौ॥
(सेनै मुदलियार् अपने सिर पर भगवान के दिव्य चरणों को रखकर कहे कि उनपर कृपा हो गई और उन्होंने यह श्लोक गाया), श्रीशठारी को अपने सिर पर रखकर श्रीशैलेश दयापात्रम् से प्रारम्भ कर तनियन् गाया। यह सुनकर अर्चक भी जीयर् के लिये यह श्लोक को गाये। कुछ समय पश्चात सेनै मुदलियार् और अर्चक दोनों यह श्लोक को भूल गये। दोनों जीयर् स्वामीजी के मठ में गये और उनसे विनंती किये कि कृपाकर यह तनियन् गाये। जीयर स्वामीजी ने उनसे पूछे “आपहीं ने कृपाकर यह तनियन् को गाये। आप क्या पुनः इस सुनने कि इच्छा करते हैं?” सेनै मुदलियार् ने कहा “दास को कुछ भी ज्ञात नहीं हैं। यह सुन्दरराज भगवान (तिरुमालिरुञ्चोलै में भगवान का दिव्य नाम) ने कृपाकर सुन्दरजामात्रुमुनि के लिये कहा हैं”। जीयर् स्वामीजी ने यह तनियन् को गाया और तीनों बहुत प्रसन्न हुए और उस तनियन् के शरण हुए हैं।
बड़े प्रेम से सेनै मुदलियार् श्रीरङ्गम् जाकर इस घटना को सभी को कहना चाहते थे। बड़े आग्रह से वें श्रीरङ्गम् पहुंचे और जीयर् स्वामीजी के गोष्ठी को साष्टांग किया और पूरी घटना सभी को सुनाये। यह सुनकर सभी प्रसन्न हुए और कहे “आपने दयापूर्वक वह लाया हैं जो श्रीवेङ्कटेश भगवान और तिरुमालिरुञ्चोलै के भगवान के लिये बहुत सुखद हैं! यह जीयर् के लिये क्या गौरव हैं!”
वानमामलै जीयर् स्वामीजी और अन्यों ने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि प्रशंसा किये
वानमामलै रामानुज जीयर् स्वामीजी बहुत आनंदित थे और अवाक रह गए। जीयर् स्वामीजी ने उन्हें अपने दिव्य हाथों से स्पर्श किया और उन्हें कहा “आप अपने खुशी के लिये एक निर्गम के रूप में कुछ शब्द क्यों नहीं बोलते?” वानमामलै जीयर् स्वामीजी श्रीकन्दाडै अण्णन् स्वामीजी को देखते हुए तुरन्त कहे “दोनों स्तनों से ऐसे छलक रहे दूध को धारण करनेवाले हैं न हम” [यहाँ संदर्भ जीयर् स्वामीजी के तनियन् के दो पंक्तियों का हैं]; अण्णन् ने कहा “जिस तरह से श्रीमान ने इसे रखा हैं वह उस दूध से भी मीठा हैं”; श्रीप्रतिवादि भयङ्कर् अण्णा स्वामीजी ने अण्णन् कि प्रशंसा करते हुए कहा “आप दोनों ने जो भी कहा हैं वह एक दूसरे से श्रेष्ठ हैं!” अप्पिळ्ळै स्वामीजी ने उसे जोड़ कर कहा “मंत्रों के मणि कि दूसरी पंक्ति [इसे द्वय महा मन्त्र या श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के तनियन के रूप में लिया जा सकता हैं] पहली पंक्ति से श्रेष्ठ हैं।” श्रीभट्टर् पिरान् जीयर् स्वामीजी ने कहा “शठकोप द्वयम् , द्वयम से भी श्रेष्ठ हैं; रामानुज द्वयम् शठकोप द्वयम् से भी श्रेष्ठ हैं; इन से भी बढ़कर यह तनियन् जो हमारे आचार्य कि अभिवादन हैं वह महत्तम हैं” इस तरह अर्थपूर्ण प्रशंसा श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वैभव कि किये।
वाक्य द्वयम्
श्रीमन् नारायण चरणौ शरणं प्रपद्ये
श्रीमते नारायणाय नमः
शठकोप द्वयम्
श्रीमन् शठकोप चरणौ शरणं प्रपद्ये
श्रीमते शठकोपाय नमः
रामानुज द्वयम्
श्रीमन् रामानुज चरणौ शरणं प्रपद्ये
श्रीमते रामानुजाय नमः
पाध्य द्वयम्
श्रीशैलेश दयापात्रं धीभक्त्यादिगुणार्णवम्
यतीन्द्र प्रवणं वन्दे रम्यजामातरं मुनिम्]
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अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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