श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम:
<< श्री शठकोप स्वामीजी कि यात्रा
हम पहले ही जान चुके हैं कि श्रीशैलेश स्वामीजी ने आल्वार तिरुनगरी का पुनर्निर्माण किया और भगवान आदिनाथ, श्रीशठकोप स्वामीजी और श्रीरामानुज स्वामीजी के नित्य कैकर्य की व्यवस्था की। आल्वार तिरुनगरी मे रहकर श्रीशैलेश स्वामीजी ने हमारे सम्प्रदाय (श्रीवैष्णव परंपरा) का अच्छी तरह से संचालन किया।
उस समय में आलवार तिरुनगरी में उस महान दिन आश्विन (तुला) मास के मूला नक्षत्र में, स्वयं श्रीरामानुज स्वामीजी जो आदिशेष के अंश हैं श्रीकिडन्तान्तिरुनावीरुडय पिरान के यहाँ दिव्य पुत्र के रूप में अवतार हुआ। उस बालक को दिव्य दीप्ति प्राप्त हैं यह मानकर उनका नाम श्रीरंगनाथ भगवान के दिव्य नाम पर अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् नायनार प्रदान किया गया। अपनी युवा अवस्था में अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् नायनार अपने काका के यहाँ सिक्कल किडारम नामक गाँव में बड़े हुए। जीवन में सही समय में उन्होंने वैधिक संस्कार प्राप्त किया, पिता से शास्त्र सीखे। फिर उनका विवाह होने पर भी उन्होंने दिव्यप्रबन्ध, रहस्यार्थ ग्रन्थ अपने पिता से सीखा और ज्ञान (भगवान के विषय में ज्ञान), भक्ति (भगवान और उनके भक्तों के प्रति भक्ति) और वैराग्य (संसार से दूर रहना) के धनी हो गये। उनके पिता के परमपद प्राप्त करने के पश्चात अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् नायनार ने श्रीशैलेश स्वामीजी के महानता के विषय में सुना और आलवार तिरुनगरी पहुँचे और श्रीशैलेश स्वामीजी के दिव्य चरणों में शरण ली।। श्रीनायनर के विशिष्ट गुणों को देखकर श्रीशैलेश स्वामीजी आनंदित हुए और नायनर को सम्प्रदाय के अर्थों का निर्देश दिया। उन्होंने नायनार को दिखाया कि श्रीरामानुज स्वामीजी हीं शरण्य हैं और उन्हें उनके सन्निधी में नित्य कैंकर्य करने के लिये नियुक्त किया। नायनार भी श्रीरामानुज स्वामीजी के प्रति असीम स्नेह के कारण कैंकर्य किये और उन्हें यतीन्द्र प्रवण (वह जिसे श्रीरामानुज स्वामीजी के प्रति गहरा प्रेम हो) नाम प्रदान किया।
श्रीशैलेश स्वामीजी अपने अन्त समय में वें बहुत दुखी थे कि “कौन इस सम्प्रदाय का अच्छी तरह से परिपोषण करेगा?” नायनार ने उन्हें कहा “दास तदनुसार करेगा”। श्रीशैलेश स्वामीजी ने उन्हें कहा “यह केवल शब्दों से नहीं कहा जा सकता हैं। आपको प्रण लेना होगा” जिसके बाद नायनार ने वैसे हीं किया। श्रीशैलेश स्वामीजी ने बड़े आनन्द से स्वीकार किया। उन्होंने फिर नायनार को आज्ञा किये कि “संस्कृत शास्त्र पर अधीक केन्द्रीत नहीं होना; श्रीसहस्रगीति और अन्य प्रबन्धों का अच्छे से प्रचार प्रसार करना”। श्रीशैलेश स्वामीजी परमपद को प्रस्थान हुए। नायनार ने अन्तिम संस्कार की।
उस समय अळगिय वरदर जो वानमामलै में निवास करते थे श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के शिष्य हो गये। उन्होंने सन्यास आश्रम स्वीकार किया और वानमामलै मठ के जीयर हो गये। उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को छोड़े बिना कैंकर्य किया। उन्हें देख कई जन श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के शिष्य हो गये।
नायनार अपने दिव्य मन में विचार करते हैं कि वें श्रीरंगम से सम्प्रदाय का पालन पोषण कर सकेंगे और श्रीशठकोप स्वामीजी से आलवार तिरुनगरी छोड़ने कि आज्ञा प्राप्त की। श्रीशठकोप स्वामीजी के आज्ञा से वें श्रीरंगम पहुँचे। श्रीरंगनाथ भगवान ने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के श्रीरंगम में आगमन को आनन्द से उत्सव मनाया और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को आज्ञा दी कि वें निरन्तर श्रीरंगम में हीं विराजमान रहे। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी भी श्रीरंगम में विराजमान होते हुए लुप्त रहस्यग्रन्थों को पुनः लाये और कालक्षेप करना प्रारम्भ किया। ईडु व्याख्या जो श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी द्वारा रचित हैं, के विशेषज्ञ होने के कारण उन्हें दिव्य नाम ईट्टुप् पेरुक्कर् प्रदान किया गया।
तिरुमला के श्रीवेंकटेश भगवान का मंगलाशासन करने हेतु वें रास्ते में कई दिव्यदेश को गये और वहाँ के भगवान का मंगलाशासन किया। वें तिरुमला पहुँचे और श्रीवेंकटेश भगवान और कई महापुरुषों के प्रेम और स्नेह का भण्डार प्राप्त किया। फिर वें काञ्चीपुरम गये और वहाँ श्रीदेवराज भगवान का मंगलाशासन किया। फिर भूतपुरी गये वहाँ श्रीरामानुज स्वामीजी का मंगलाशासन किया। वें काञ्चीपुरम के समीप एक दिव्य स्थान तिरुवेह्का के लिये गये और वहाँ श्रीकिडम्बी आच्छान से श्रीभाष्य (ब्रह्म सूत्र पर श्रीरामानुज स्वामीजी द्वारा रचित व्याख्या) सीखी। उनके कान्ति और ज्ञान को देखकर श्रीकिडम्बी आच्छान ने उन्हें अपने मूल रूप में प्रगट होने को कहा। नायनार नें उन्हें अपना आदिशेष रूप दिखाया। तत्पश्चात वें श्रीरंगम पहुँचे और अपने सम्प्रदाय का पालन पोषण विशेष शैली से किया।
एक बार जब वें कैंकर्य कर रहे थे तब उनके परिवार में एक घटना हुई जिसके कारण उन्हें तिट्टु (घर में किसीके के जन्म या मरण के कारण भगवान के वैधिक कैंकर्य से दूर रहना) रखना पड़ा। उन्होंने अपने मन में निश्चय किया कि वें सन्यास आश्रम में प्रवेश करेंगे। वें श्रीशठकोप जीयर स्वामीजी के पास गये जो उनके साथ बचपन पड़ते थे और जो पहिले हीं सन्यास आश्रम में प्रवेश कर चुके थे और उनसे सन्यास स्वीकार किया। वें इसके बाद श्रीरंगनाथ भगवान कि पूजा करने गये। श्रीरंगनाथ भगवान ने उन्हें अलगिया मणवाल मामुनिगल नामक, पल्लवरायन मठ दिया और सभी तरीके से उनका सम्मान किया। श्रीवानमामलै जीयर स्वामीजी के सहायता से श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने पल्लवरायन मठ का पुनः निर्माण किये और श्रीशैलेश स्वामीजी कुटुंब बनाया जहां वें कालक्षेप करते थे। वें उस मठ में रहकर सम्प्रदाय का पालन पोषण एक विशेष रिती से किया। कई विशेष और शिक्षित जन श्रीरंगम और अन्य स्थानों से वहाँ पधारे और उनसे पञ्चसंस्कार प्राप्त कर उनके शिष्य बने।
श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कई संस्कृत प्रबन्ध, तामील प्रबन्ध और रहस्य ग्रन्थों कि व्याख्यानों कि रचना की। उन्होंने मन्दिर में भगवान के कैंकर्य जो किसी कारणवश रुक गया था उसे पुनः प्रारम्भ किया। उनके शिष्यों के माध्यम से कई दिव्य स्थानों में कैंकर्य प्रारम्भ किया। उन्होंने भारत के कई स्थानों में सम्प्रदाय को श्रीवानमामलै जीयर स्वामीजी के सहायता से स्थापना की और उन्हें भ्रमण करने को कहा। इस प्रकार श्रीरामानुज स्वामीजी के तरह उच्च सम्मान के साथ श्रीरंगम में प्रतिष्ठित रूप से निवास किया।
कालक्षेप के अन्तिम दिन ज्येष्ठ मास के मूला नक्षत्र को श्रीरंगनाथ भगवान एक मन्दिर के अर्चक के पुत्र रूप में प्रगट हुए और यह दिव्य तनियन श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को अर्पण किया “श्रीशैलेश दयापात्रम् धीभक्त्यादिगुणार्णवम्। यतीन्द्र प्रणवम् वन्दे रम्यजामातरम् मुनिम्॥” और उन्हें आचार्य रूप में स्वीकार किया। उन्होंने यह भी कहा कि जहां भी जब भी भगवान कि सेवा होगी (दिव्य प्रबन्ध गाना) तब पहिले यह तनियन को गाया जायेगा।
श्रीवरवरमुनि स्वामीजी इस महानता से साथ परमपद को प्राप्त किया। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के शिष्यों ने बहुत अद्भुत ढंग से उनका अंतिम संस्कार किया।
हम श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के कुछ विशिष्टता को देखेंगे:
शिष्यगण:
अष्ट दिग्गज (आठ प्रधान शिष्य जो हाथी समान आठ दिशाओं कि रक्षा कर रहे हैं): श्रीवानमामलै जीयर स्वामीजी, श्रीवरदनारायणाचार्य स्वामीजी, श्रीभट्टनाथ स्वामीजी, श्रीवेंकट रामानुज स्वामीजी, एरुम्बियप्पा, श्रीप्रणतार्तिहारी स्वामीजी, श्रीरामानुज स्वामीजी, और श्रीप्रतिवादी भयंकर अण्ण स्वामीजी।
नवरत्न: सेनै मुडलियाण्डान नायनार, शठगोप दासर (नालूर सिट्रात्तान), कन्दाडै पोरेट्रु नायन, येट्टूर सिंगराचार्य, कन्दाडै तिरुक्कोपुरन्तु नायनार, कन्दाडै नारणप्पै, कन्दाडै तोऴप्परैप्पै, कन्दाडै अऴैत्तु वाऴवित्त पेरुमाळ। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के कई शिष्य हैं अनेक तिरुवंश और तिरुमाली से (श्रीरामानुज स्वामीजी द्वारा स्थापित ७४ सिंहाधीपति)।
स्थान जहाँ से परमपद को प्रस्थान किये – श्री रंगम
ग्रंथ रचना सूची: श्री देवराज मंगलम्, यतिराज विंशति, उपदेश रत्न मालै, तिरुवाय्मोऴि नूट्रन्दादि, आर्ति प्रबंधम्
व्याख्यान: मुम्मुक्षुप्पाडि, तत्वत्रयम्, श्रीवचनभूषणम्, आचार्य हॄदयम्, पेरियाऴ्वार तिरुमोऴि [पेरियवाच्चान पिळ्ळै का व्याख्यान जो नष्ट हो गया], रामानुज नूट्ट्रन्दादि प्रमाण तिरट्टु [श्लोक संग्रह, शास्त्र टिप्पणि विशेषतः] – ईडु छत्तीस हज़ार पाडि, ज्ञानसारम्, प्रमेयसारम्, तत्वत्रयम्, श्रीवचनाभूषणम्
श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि तनियन:
श्रीशैलेश दयापात्रम् धीभक्त्यादिगुणार्णवम् ।
यतीन्द्र प्रणवम् वन्दे रम्यजामातरम् मुनिम् ॥
दास (श्रीरंगनाथ भगवान, श्रीरंगम के स्वामी) श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि पूजा की, जो श्रीशैलेश स्वामीजी के कृपा पात्र हैं, जो ज्ञान, भक्ति, आदि के सागर हैं और जिनका श्रीरामानुज स्वामीजी के प्रति असीम प्रेम हैं।
श्रीवरवरमुनि स्वामीजी वालितिरुनामं (उनके दिव्य नाम कि प्रशंसा करना)
इप्पुवियिल अरंगेशर्क्कु ईडलित्तान वालिये
एलिन तिरुवाय्मोलिपिल्लै इणैयडियोन वालिये
ऐप्पशियिल तिरुमूलत्त वदरित्तान वालिये
अरवरशप्पेरूंजोदि अनन्तनेन्ड्रूम वालिये
एप्पुवियुम शीशैलम एत्वन्दोन वालिये
एरारूमेदिरशरेनउदित्तान वालिये
मुप्पुरिनूल मणिवडुमुम् मुक्कोल तरित्तान वालिये
मूदरिय मणवालमामुनिवन वालिये
(तिरुनाल पट्टु) –उनके दिव्य नक्षत्र मूला के दिन यह गाया जाता हैं
शेन्दमिल वेदियर शिन्दै तेलीन्दु शिरन्दु मगिलन्दिडु नाल
शीरुलगारियर शेय्दरुल नल्कलै तेशु पोलिन्दिडु नाल
मंदमदिप्पुवि मानिडर तंगलै वानिलुयर्त्तिडुनाल
माशरू ज्ञानियर शेर एदिराशर्दम वाल्वुमुलैत्तिडुनाल
कन्दमलर्प्पोलिल्शूल कुरुगादिबन कलैगल विलंगिडुनाल
कारमर्मेनि अरंगनगर्क्किरै कण्गल कलित्तिडुनाल
अन्दमिल्शीर मणवालमुनिप्परन अवतारम शेय्दिडु नाल
अलगुतिगल्न्दिडुम ऐप्पशियिल तिरुमूलमदेनु नाले
आदार – https://granthams.koyil.org/2022/12/05/azhwarthirunagari-vaibhavam-4-english/
अडियेन् शिल्पा रामानुज दासि
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