श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम:
हमारे श्रीवैष्णव सम्प्रदाय मे दिव्य निवास आल्वार तिरुनगरी हैं जिसे श्रीकुरूगापुरी भी कहा जाता है, के विषय मे बहोत सारी श्रेष्ठता है। पहिले के समय मे इस निवास को आदिक्षेत्र, कुरूगापुरी, श्रीनगरी इन नामों से जाना जाता था। इस निवास मे श्रीशठकोप स्वामीजी के अवतार के पश्चात जोकि प्रपन्न जन कूटस्तर है (भगवान के शरणागत लोगो मे प्रमुख) इसे आल्वार तिरुनगरी के नाम से लोकप्रियता प्राप्त हुई। हम यहा पर इस स्थान की महानता का आनंद लेंगे।
आल्वार तिरुनगरी प्राचीन निवास है। यह श्रीशठकोप स्वामीजी के अवतार का स्थान है, जो आल्वारों मे प्रमुख है जिन्हे श्रीपति (श्रीमहालक्ष्मी जिनकी दिव्य पत्नी है), सर्वेश्वर (सभी के स्वामी) के द्वारा अज्ञानता के बिना ही ज्ञान और भक्ति प्रदान की गई हैं। इसे श्रीवैष्णवों के १०८ दिव्य देशों (दिव्य निवास) मे से एक ऐसे माना जाता है, क्योकि श्रीशठकोप स्वामीजी ने यहाँ पर भगवान का मंगलाशासन (प्रबंधों द्वारा भगवान की स्तुति करना) किया था। इसके अतिरिक्त यह दिव्य निवास है जहाँ से श्रीरामानुज स्वामीजी का दिव्य विग्रह श्रीमधुरकवी आल्वार के प्रयास की वजह से, श्रीशठकोप स्वामीजी की कृपा से, ताम्रपर्णी नदी मे से उनके इस पृथ्वी पर अवतार के ४ हजार साल पहिले ही प्राप्त हुई। यह इसीलिए भी दिव्य निवास है क्योकि श्रीवरवरमुनी स्वामीजी जो कि श्रीरामानुज स्वामीजी के अपरावतार माने जाते है और उन्हें श्रीरंगनाथ भगवान जो श्रीरंगम के पीठाधीश भगवान है जोकि हमारे संप्रदाय के लिए प्राथमिक निवास है, उन्होने जिन्हे अपना आचार्य माना था वह अवतरित हुऐ थे।
इस प्रकार इस निवास मे मुपुरउतिया स्थल (तीन महान घटनाओ से प्रेरित एक निवास स्थान) की महिमा है जैसे की भगवान का दिव्य निवास स्थान, आल्वारों ने अवतार लिया वह निवास और एक निवास जहाँ आचार्य अवतरित हुये।
यह श्रीवैष्णव दिव्यदेश हैं जहां महान जनों का अवतार हुआ है, निवास किये और कैंकर्य किये और आज तक भी कैंकर्य होते हैं। तमिलनाडु के तुत्तूक्कुड़ी जिला के तिरुनेल्वेल्ली – तिरुचेंदूर रास्ते के “नव तिरुपति” में प्रार्थमिक निवास स्थान हैं।
हम इस दिव्य निवास के विषय में कई अद्भुत कथाओं का आनंद ले जिसकी तह में ऐसी श्रेष्ठता हैं।
- प्राचीन इतिहास
- श्री शठकोप स्वामीजी का इतिहास और महानता
- श्री शठकोप स्वामीजी कि यात्रा
- श्रीवरवरमुनि स्वामीजी का इतिहास और वैभव
- सन्निधी
- उत्सव
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अडियेन् शिल्पा रामानुज दासि
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