आल्वार तिरुनगरी वैभव – उत्सव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम:

आल्वार तिरुनगरी वैभव

<< सन्निधी

प्रतिदिन ताम्रपर्णी नदी से जल लाकर श्रीशठकोप स्वामीजी का तिरुमंजन करते हैं। पूर्ण: वर्ष में भगवान, अम्माजी, आलवार और आचार्य के कई उत्सव होते हैं। हम इस विषय में अब अधीक सीखेंगे।

प्रति माह में होनीवाली पालकी उत्सव

  • अमावस्य – भगवान
  • एकादशी (प्रति अमावस्य और पूर्णिमा के पश्चात ११वां दिन) – भगवान और अम्माजी
  • द्वादशी (प्रति अमावस्य और पूर्णिमा के पश्चात १२वां दिन) – आलवार
  • पूर्णिमा – आलवार
  • शुक्रवार – भगवान और अम्माजी
  • रोहिणी – भगवान श्रीकृष्ण
  • पूनर्वसू – भगवान श्रीराम
  • उत्तर फाल्गुणी – भगवान और आलवार
  • विशाखा – भगवान और आलवार
  • श्रावण – भगवान

४००० दिव्य प्रबन्ध को अनुसन्धान करने का क्रम

प्रति महीने ४००० दिव्य प्रबन्ध सेवाकाल क्रम (४००० दिव्य प्रबन्ध अनुसन्धान करने कि विधि) कि व्यवस्था ऐसी होती हैं कि आलवार के शातुमौरे (अंतिम दो या तीन पाशुर क आ अनुसन्धान करना) उनके नक्षत्र के दिन हीं आते हैं।.

  • रोहिणी – अमलनादि पिरान
  • मृगशिरा – कुछ भी अधीक अनुसंधान नहीं
  • आद्रा – रामानुज नूट्रंदादि
  • पूनर्वसु  – पेरुमाल तिरुमोली, श्रीसहस्रगीति का पहिला शतक
  • पुष्य  – श्रीसहस्रगीति का दूसरा शतक
  • आश्लेषा – नान्मुगन तिरुवन्दादि, श्रीसहस्रगीति का तीसरा शतक
  • मघा  – तिरुच्चन्द विरुत्तम, श्रीसहस्रगीति का चौथा शतक
  • पूर्वफाल्गुनी  – नाच्चियार तिरुमोली, श्रीसहस्रगीति का पांचवा शतक
  • उत्तरफाल्गुनी – तिरुप्पल्लाण्डु, पेरियाल्वार तिरुमोलि का पहला शतक, श्रीसहस्रगीति का छठा शतक
  • हस्त – पेरियाल्वार तिरुमोलि का दूसरा शतक, श्रीसहस्रगीति का सातवा शतक
  • चित्रा  – पेरियाल्वार तिरुमोलि का तीसरा शतक, श्रीसहस्रगीति का आठवा शतक
  • स्वाती  – पेरियाल्वार तिरुमोलि का चौथा और पांचवा शतक, श्रीसहस्रगीति का नौवा शतक
  • विशाखा – तिरुविरुत्तम, तिरुवाशिरियम, पेरिय तिरुवन्दादि, श्रीसहस्रगीति का दसवा शतक
  • अनुराधा – कुछ भी अधीक अनुसंधान नहीं
  • ज्येष्ठा –  , तिरुप्पल्लियेलुच्चि
  • मूला – उपदेश रत्नमालै, तिरुवायमोलि नूट्रंदादि
  • पूर्वाषाढ़ा – पेरिय तिरुमोलि का पहला शतक
  • उत्तराषाढ़ा – पेरिय तिरुमोलि का दूसरा शतक
  • श्रवण  – पेरिय तिरुमोलि का तीसरा शतक, मुदल तिरुवन्दादि
  • धनिष्ठा – पेरिय तिरुमोलि का चौथा शतक, इरण्ड़ाम तिरुवन्दादि
  • शतभीषा – पेरिय तिरुमोलि का पांचवा शतक, मून्राम तिरुवन्दादि
  • पूर्वभाद्रपदा – पेरिय तिरुमोलि का छठा शतक
  • उत्तरभाद्रपदा  – पेरिय तिरुमोलि का सातवा शतक
  • रेवती – पेरिय तिरुमोलि का आठवा शतक
  • अश्विनी – पेरिय तिरुमोलि का नौवा शतक, तिरुवेलुकूटिरुक्के, शिरिय तिरुमडल
  • भरणी – पेरिय तिरुमोलि का दसवा शतक, पेरिय तिरुमडल
  • कृतिका – पेरिय तिरुमोलि का ग्यारवा शतक, तिरुक्कुरुन्दाण्डगम, तिरुनेडुन्दाण्डगम

टिपणी

नित्य सेवा काल

  • भगवान कि सन्निधी में – रात्री – तिरुप्पल्लाण्डु, शेन्नियोङ्गु (पेरिय तिरुमोलि ५.४)  
  • आलवार कि सन्निधी में – प्रात: – कण्णिनुण शिरुत्ताम्बु, पहिले तिरुप्पावै गाया जाता हैं। फिर उस दिन के दिव्य नक्षत्र अनुसार जैसे पहिले बताया गया हैं।
  • आलवार कि सन्निधी में – रात्री – कण्णिनुण शिरुत्ताम्बु, एलै एदलन (पेरिय तिरुमोलि ५.८), आलियेल (तिरुवाय्मोलि ७.४)

अनध्ययन काल (जब दिव्य प्रबन्ध का पाठ नहीं होता हैं) – नित्य सेवा में

  • भगवान कि सन्निधी में – ४००० तनियन
  • आलवार कि सन्निधी में – प्रात: – उपदेश रत्नमालै – रात्री – रामानुज नूट्रंदादि
  • धनुर्मास भगवान और आलवार सन्निधी –तिरुप्पल्लियेलुच्चि और तिरुप्पावै

उत्सव (तामील महीने अनुसार)

चैत्र

  • आदिनाथ भगवान का ब्रह्मोत्सव – १० दिन – चैत्र महिने के आद्रा नक्षत्र के दिन, रात्री में सवारी, श्रीशठकोप स्वामीजी भगवान के साथ चलते हैं भगवान को देखते हुए। चैत्र महिने के पूर्नवसु नक्षत्र के दिन रात्री में श्रीराम भगवान सवारी में वीथी में जाते हैं। ९वें दिन – चैत्र मास के आद्रा नक्षत्र (दिव्य रथ)। १०वें दिन – चैत्र उत्तर फाल्गुनी – मीक्क आदिप्पिरान का तीर्थवारी (ताम्रपर्णी नदी वें दिव्य विसर्जन)। 
  • श्रीमधुरकवि स्वामीजी का दिव्य नक्षत्र – चैत्र मास में चैत्र नक्षत्र
  • श्रीरामानुज स्वामीजी दिव्य अवतार उत्सव – ११ दिन। १०वें दिन आद्रा नक्षत्र के दिन (श्रीभविष्यदाचार्य सन्निधी), श्रीरामानुज स्वामीजी आदिनाथ भगवान के दिव्य मंदिर जाते हैं और मंगलाशासन करते हैं।
  • चैत्र पूर्णिमा – २ दिन – पूर्णिमा के दिन – भगवान सवारी में जाते हैं। पूर्णिमा के पश्चात पहिला दिन श्रीशठकोप स्वामीजी सवारी में जाते हैं।
  • श्रीवैकुंठ भगवान ब्रह्मोत्सव ५वां दिन – पोलिंदु निन्ऱ पिरान्, श्रीशठकोप स्वामीजी श्रीवैकुंठ दिव्यदेश (आलवार तिरुनगरी के समीप दिव्य देश) के सवारी में जाते हैं।

वैशाख

  • श्रीशठकोप स्वामीजी अवतार उत्सव – १० दिन; ५वें दिन नव तिरुपति भगवान के गरुड सेवा; श्रीशठकोप स्वामीजी हंस वाहन में; श्रीमधुरकवि स्वामीजी बाँस की‌ कुर्सी में। ७वें दिन श्रीशठकोप स्वामीजी और श्रीरामानुज स्वामीजी एक साथ एक सिंहासन पर विराजमान होते हैं और श्रीभविष्यदाचार्य सन्निधी में तिरुमंजन होता हैं; ८वें दिन – अप्पन कोइल जहां श्रीशठकोप स्वामीजी का अवतार हुआ – श्रीकृष्ण भगवान का घुटनों के बल चलते हुए के समान शृंगार; ९वे दिन वैकासी तिरुत्तेर्   ((विशाखा नक्षत्र में रथोत्सव))।
  • वैशाख उत्ताराषाढ़ – वरुषाभिषेक (वर्ष में एक बार जब सम्प्रक्षान होता हैं)

ज्येष्ठ

  • ज्येष्ठ का पहिला दिन – मुप्पऴम्   (तीन प्रकार के फल अर्पण होते हैं, गर्मी के मौसम के अंत का एक लक्षण)
  • वसन्तोत्सव – १० दिन, ज्येष्ठ में उत्तर फाल्गुनी में शात्तुमुरै
  • ज्येष्ठ में अनुराधा नक्षत्र – श्रीमान नाथमुनी स्वामीजी
  • ज्येष्ठ में ज़्येष्ठा नक्षत्र – ज्येष्ठाभिषेक – साथ आवरण के साथ करते हैं
  • ज्येष्ठ में मूला नक्षत्र – तिरुप्पुली भगवान का दिव्य नक्षत्र (दिव्य इमली का पेड़)

आषाढ़

  • आषाढ़ में पूर्व फाल्गुनी – कुरुगूर नाच्चीयार सवारी में श्रीरामानुज स्वामीजी के मन्दिर जाती हैं
  • पक्षी राज (गरुडजी) उत्सव – १०दिन – शात्तुमुरै आषाढ़ मास के स्वाती नक्षत्र के दिन
  • आषाढ़ मास के उत्तराषाढ़ नक्षत्र

श्रावण

  • तिरुप्पवित्रोत्सव (दिव्य, पवित्र करने का उत्सव) – ९ दिन – प्रारम्भ श्रावण मास में शुक्लपक्ष एकादशी के दिन (पूर्णिमा के पश्चात ११वें दिन)। ९वें दिन – मिक्क आदिप्पिरान् तीर्थवारि।  
  • श्री पाञ्चरात्र श्रीजयंती – पुराण पठन (पुराण से पढ़ना), श्रीकृष्ण भगवान का मन्दिर में सवारी; अगले दिन उऱियड़ि (भक्तों द्वारा खेला गया एक खेल) – भगवान, अम्माजी, आलवार, श्रीकृष्ण भगवान कि गलियों में सवारी।
  • तिरुक्कोळूर् वैत्त मानिधि पेरुमाळ् ब्रह्मोत्सवम् – ९वें दिन – तिरुक्कोलूर को श्रीशठकोप स्वामीजी कि सवारी – तिरुत्तेर (दिव्य रथ) कि दिव्य झांकी

भाद्रपद

  • नवरात्री उत्सव – ९ दिन
  • विजय दशमी – शिकार करने प्रस्थान करना
  • भाद्रपद महीने के श्रवण नक्षत्र – ज्ञानप्पिरान, श्रीवेंकटेश भगवान
  • भाद्रपद महीने के श्रवण नक्षत्र – वेदांताचार्य – आदिनाथ भगवान के मन्दिर में सवारी में जाते हैं और मंगलाशासन करते हैं

आश्विन

  • आश्विन मास का पहिला दिन – वेन्नीर्क्काप्पु (गर्म जल से रक्षा) से प्रारम्भ
  • ऊँञ्जल् उत्सवम् – १०दिन – शात्तुमुरै आश्विन मास के उत्तर फाल्गुनी के दिन
  • श्रीवरवरमुनि स्वामीजी उत्सव – १२ दिन – मूला नक्षत्र के दिन श्रीवरवरमुनि स्वामीजी शोभायात्रा से आदिनाथ भगवान के मन्दिर श्रीशठकोप स्वामीजी के पालकी में जाकर मंगलाशासन करते हैं
  • पूर्वाषाढ़ – श्रीविश्वक्सेनजी
  • श्रवण – श्रीसरोयोगी स्वामीजी
  • श्रवण – श्रीपिल्लै लोकाचार्य स्वामीजी – ११दिन – श्रवण नक्षत्र के दिन श्रीपिल्लै लोकाचार्य स्वामीजी शोभायात्रा से आदिनाथ भगवान के मन्दिर जाकर मंगलाशासन करते हैं
  • धनिष्ठा – श्रीभूतयोगी स्वामीजी
  • शतभीषा – श्रीमहद्योगी स्वामीजी
  • दीपावली – आलवार और आचार्य शोभायात्रा से आदिनाथ भगवान के मन्दिर जाते हैं 

कार्तिक

  • कृतिका – श्रीपरकाल स्वामीजी
  • रोहिणी – श्रीयोगीवाहन स्वामीजी
  • श्री पाँचरात्र तिरुक्कार्तिगै दीपम् – सोर्कप्पानै, दिव्य कंठ में तेल लगाना, अगले दिन से अनध्ययन काल (जब दिव्यप्रबंधम् का पाठ करना रद्द किया जाता है) आरंभ होता है।
  • शुक्ल पक्ष एकादशी (अमावस्या के पश्चात ११वां दिन) – कैशिक  एकादशी – सारे आऴ्वार और आचार्य शोभायात्रा निकालकर आदिनाथर आऴ्वार के मंदिर जाते हैं।
  • कैशिक द्वादशी – कैशिक पुराण का पाठ पढ़ना (पुराण पढ़ना), अण्णावियार् ब्रह्मरथम (मधुरकवि आऴ्वार् के वंशज को पालकी में उठाकर लाना), पेरुमाळ  गरुड़ सेवे (भगवान का गरुड़ आरूढ़ उत्सव), आऴ्वार  हंस वाहन में।

मार्गशीष

  • महीने का पहिला दिन – तिरुप्पल्लियेलुच्चि से प्रारम्भ, धनुर्मास क्रम
  • अमावस्या के बाद के दिन तिरु अध्ययनम् प्रारम्भ (अगर दिन का कुछ क्षण है तो भी प्रारम्भ होता है); २१ दिन – पगल् पत्तु (वैकुंठ एकादशी तक के दस दिन का उत्सव, दिन के समय १० दिन का उत्सव) ९ या १० या ११ दिन का हो सकता है। पगल् पत्तु के समय प्रति दिन आऴ्वार के दो दिव्य झाँकी। दशमी (१०वें दिन) – श्रीशठकोप स्वामीजी के शयन झाँकी, भगवान के लिये अम्माजी के दिव्य झाँकी।
  • शुक्ल पक्ष एकादशी – वैकुण्ठ एकादशी। पोलिंदु निन्ऱ पिरान् – शयन। श्रीसहस्रगीति के पाठ को प्रारम्भ करने कि व्यवस्था को भगवान सुनते हैं।
  • इरापत्तु (वैकुंठ एकादशी से लेकर दस दिनों तक का उत्सव) के समय (रात्री में १० दिन का उत्सव) – प्रतिदिन तिरुमुडी सेवा (भगवान अपने दिव्य चरण श्रीशठकोप स्वामीजी के दिव्य सिर पर रखते हैं अपनी कृपा उनपर बरसाते हैं)। आद्रा नक्षत्र के दिन भगवान और श्रीरामानुज स्वामीजी का एक साथ तिरुमंजन। ८वें दिन – तिरुवेडुपऱि (श्रीपरकाल स्वामीजी घोड़े पर सवार होकर भगवान कि प्रदक्षिणा लगाते हैं)। १०वें दिन श्रीशठकोप स्वामीजी का मोक्ष। ११वें दिन – वीडु विडै तिरुमंञ्जनम् (मोक्ष से लौटने के पश्चात दिव्य स्नान)
  • आनेवाला तिरुविसागम् (वैशाख नक्षत्र) – अनध्ययन काल संपन्न
  • ज्येष्ठ – श्रीभक्ताङ्घ्रिरेणु स्वामीजी

पौष

  • संक्रांती – वङ्ग क्कडल (तिरुप्पावै का अन्तिम पाशुर); तिरुप्पल्लियेलुच्चि के लिये शातुमूरै
  • कनु (पोंङ्गल् के अगली सुबह स्त्रियों द्वारा मनाए जाने वाला त्यौहार) –  देवियों के लिए तीर्थवारि कनु (पोंङ्गल् के बाद का दिन)
  • मघा – श्रीभक्तिसार स्वामीजी
  • हस्त – श्रीकुरेश स्वामीजी आदिनाथ भगवान के मन्दिर मंगलाशासन करने के लिये जाते हैं

मघा

  • मासी उत्सवम् पहला दिन – वेन्नीर्क्काप्पु  संपन्न
  • प्लवोत्सवम् (तेप्पोत्सवम् – ताल में नौका विहार उत्सव) – आऴ्वार के दिव्य विग्रह का प्रतिष्ठोत्सव  – १३ दिन। ७ वे दिन – आऴ्वार एम्पेरुमानार् सेर्ति (साथ में) तिरुमंञ्जनम्  (भविष्यदाचार्यन सन्निधि में), ९‌ वे दिन – तिरुत्तेर्। १० वे दिन – पेरुमाळ् तेप्पोत्सवम्। ११ वे दिन – सारे आऴ्वार और आचार्यों का तेप्पोत्सवम्। १२ वे दिन – मासी विसागम् – आऴ्वार के दिव्य रूप में तीर्थवारि। १३ वे दिन – आऴ्वार शोभायात्रा निकालकर तिरुत्तोलैविल्लि मंङ्गलम पोहुँचने के उपरांत साटृमुऱै। तिरुत्तोलैविल्लि मंङ्गलम अध्ययन उत्सवम् साटृमुऱै।
  • पूर्नवसु – श्रीकुलशेखर स्वामीजी
  • मृगशिरा – श्रीकाञ्चीपूर्ण स्वामीजी। नम्बी आदिनाथ भगवान के मंदिर में मंगलाशासन के लिये सवारी में जाते हैं।

फाल्गु

  • भगवान का ब्रहमोत्सव – १० दिन। ९वें दिन – रथोत्सव। १०वें दिन पंङ्गुनि उत्तिरम् (फाल्गुन माह के ‌उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र) – मिक्क आदिप्पिरान् तीर्थवारि
  • उत्तर फाल्गुनी – आदि नाच्चियार सवारी में श्रीरामानुज स्वामीजी के सन्निधी में जाती हैं
  • उगादी – आलावर और आचार्य गण सवारी में आदिनाथ भगवान के मन्दिर जाते हैं। नये पंचांग का वाचन।

टिप्पणी

  • सामान्य रूप से, यहाँ उत्सव के ५ वे दिन, पेरुमाळ् गरुड़ वाहन में शोभायात्रा निकालते हैं, आऴ्वार हंस वाहन।
  • चारों उत्सवम् में गरुड़/हंस ध्वज का आरोहण होगा (उत्सवम् के आरंभ को सूचित करने)
  • चारों उत्सवम् में तिरुत्तेर् (रथ में शोभायात्रा) होगा।
  • जब भी आदिनाथर आऴ्वार मंदिर में तीर्थवारि होगा तब भविष्यदाचार्य के सन्निधि में तिरुमण्काप्पु होगा (माथे पर ऊर्ध्व पुंड्र‌‌‌ तिलक लगाना)।

आदार – https://granthams.koyil.org/2022/12/07/azhwarthirunagari-vaibhavam-6-english/

अडियेन् शिल्पा रामानुज दासि

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