यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ८०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम्

<< भाग ७९

कोमण्डूर् इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै  और रामानुज दास ने यात्रा प्रारम्भ किये 

जब चक्रवर्ती भगवान श्रीराम अपनी चरण पादुका भाई भरत को दिये तब लक्ष्मणजी को वें नहीं प्राप्त हुई। जब कोमण्डूर् इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै जिनका दिव्य नाम लक्ष्मण हैं को श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि दिव्य चरण पादुका प्राप्त हुई उनमें लोगों के लिये एक खुशी उत्सव हुआ। जैसे रामानुज दास को दिव्य उत्तरियम् प्राप्त हुआ वैसे कोमण्डूर् इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै को दिव्य चरण पादुका प्राप्त हुई। दिव्य चरण पादुका प्राप्त करने के पश्चात कोमण्डूर् इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै को धन प्राप्त हुआ ऐसे लगा जैसे श्रीयामुनाचार्य स्वामीजी अपने स्तोत्र रत्न में कहते हैं “धनम्मदीयं तव पाद पङ्कजम्”। उन्होंने दिव्य चरण पादुका अपने सिर पर रखे जैसे कहा गया हैं “मदीयं मूर्धानम् अलङ्कर्षयति” और बहुत आनंदित थे। रामानुज दास भी बहुत प्रसन्न थे जैसे नाच्चियार् तिरुमोऴि में कहा गया हैं “पेरुमाळ् अरैयिल् पीतगवाडै कोण्डु एन्नै वाट्टम् तणीय वीसीर्” (मुझे भगवान द्वारा अपने कमर पर धारण उस पीले वस्त्र से पंखी करो जिससे मेरे थकावट दूर हो जाये)। 

तिरुवाराधन भगवान के समान दोनों ने दो धन को लेकर गये और तुरंत गंगा किनारे पहुँचे। शास्त्र में कहे अनुसार उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरण पादुका को बहुत देर तक दिव्य स्नान करवाया। उन्होंने यह महसूस किया कि स्वयं श्रीवरवरमुनि स्वामीजी स्नान कर रहे हैं और उन्होंने उसी जल से स्नान किया। उन्होंने उस स्थान के आस पास सभी स्थानों में पूजा किये। 

क्रमेण तीर्थानि शरीर बाजां पापापहान्यूर्जित सौक्यतानि।
परिक्रमन्दावतितिं दृशोस्तौ विनिन्यसुः श्रीबदरीनिवासम्॥

विचित्रादेहसम्पत्तिरीश्वराय निवेदितुम्

(उन दोनों ने (रामानुज दास और कोमण्डूर् इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै ) सहीं क्रम से कई दिव्य जलाशय में स्नान किया जो लोगों के पापों को मिटाने के सक्षम हैं और जो परम सुख देने में समर्थ हैं और फिर बद्री पहुँचे और बद्रीकाश्रम भगवान को उनके नेत्रों के पर्व बनाये) (सम्पन्न शरीर और उसके अंग जिनमें कई प्रकार कि शक्तियाँ हैं भगवान का कैङ्कर्य करने हेतु बनाये हैं)। जैसे कि इन श्लोकों में कहा गया हैं जिनके लिये शरीर का पोषण केवल भगवतार्थम् (भगवान के लिये कैंकर्य हेतु) दिव्यदेश के साथ सम्बन्ध से सभी बाधाओं को दूर करना और सबसे बड़ा पुरुषार्थ प्रदान करना हैं। रामानुज दास और कोमण्डूर् इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै ने सभी दिव्यदेशों का भ्रमण किया और बद्रीकाश्रम में नारायण के पास पहुँचे। जैसे उन्होंने नर नारायण भगवान के लिये बद्री में मङ्गळाशासन् किया जैसे श्लोक में कहा गया हैं 

अयोध्या रामानुजदासनामा सदा मुदा पूजयति प्रसन्नः।
वशीनिजश्रीकुलशेखरस्सन् हरिं बदर्याश्रम वासिनम्तम्॥

(एक व्यक्ति जिसका नाम अयोध्या रामानुज दास हैं सभी पर उसका नियंत्रण था, श्रीवैष्णव वंश के सिरताज पर एक मणि हैं, बड़े उत्साह से बद्रीकाश्रम भगवान को पाला), अयोध्या रामानुज दास अपने वंश का नायक हैं, सभी जनों को स्वीकार्य था, उसका अच्छा आचरण था, हर समय बड़े उत्साह से बद्रीकाश्रम भगवान का पोषण करता। जैसे श्लोक में कहा गया हैं 

सलक्ष्मणं वीक्ष्यपवित्ररूपं समेदय रामानुजदासमेनम्।
समर्चयित्वा विविधोपचारैस्स दर्शयामास रमासहायम्॥

(उस अयोध्या रामानुजदास ने रामानुज दास के पास गया जो शुद्धस्वरूप का था और जो कोमण्डूर् इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै के साथ आया था कई तरीके से उसका सम्मान किया, प्रशंसा किया और बद्रीकाश्रम भगवान के सुन्दर दर्शन कराया), रामानुज अय्यङ्गार् (अयोध्या रामानुजदास) ने रामानुज दास का सम्मान किया जो श्रीरङ्गम् से पधारे और नर नारायण भगवान के दर्शन कराये। उन्होंने कई प्रकार के प्रसाद नर नारायण भगवान के लिये बनाये और अर्पण किया। उन्होंने फिर उन्हें दिव्य प्रबन्ध को गाने को कहा जैसे श्लोक में हैं 

वरयोगिवरागतौचैलतौ नरनारायणसन्निधौ पुरस्तात्।
द्रमिडोपनिषन्महाप्रबन्द प्रथमोधारणे न्ययुङ्तविद्वान्॥

(अयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् जो विद्वान हैं, दो व्यक्ति जो श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के सन्निधी में पधारे थे को आज्ञा किये नर नारायण भगवान के सन्निधी में दिव्य प्रबन्ध गाना प्रारम्भ करें।)। कोमण्डूर् इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै, अयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् के नियमानुसार और जैसे श्लोक में कहा गया हैं 

तथा विदिग्योविदिवत् प्रसादात्वरोपयन्तुर् दुरिरङ्गधाम्ना।
निवेधितुं पद्यवरं द्विकण्ठं पठञ्जकौ द्राविडवेदमेषः॥ 

(कोमण्डूर् इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै जिन्हें सहीं आदेश पता हैं, अयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् के आज्ञानुसार श्रीशैलेश तनियन् गाना प्रारम्भ किये जिसे श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के सामने श्रीरङ्गनाथ​ भगवान द्वारा दयापूर्वक मन कि स्पष्टता के साथ पढ़ा गया था और जो दो भागों से बना हैं और फिर दिव्य प्रबन्ध का पाठ किया), पहिले श्रीशैलेश दयापात्रम तनियन् को प्रारम्भ में गाया फिर दूसरी तनियन् को गाया और फिर दिव्य प्रबन्ध पाशुर को गाया। 

आदार – https://granthams.koyil.org/2021/10/06/yathindhra-pravana-prabhavam-80-english/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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