श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
तनियन् के अवतार के मास, वर्ष आदि का वर्णन करना
फिर श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् ने इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै को तनियन् के अवतार और वाऴित्तिरुनामम् के तारिक और मास के विषय में पूछा। इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै ने यह पाशुर को गाया
नल्लदोर् परिताबि वरुडन्दन्निल् नलमान आवणियिन् मुप्पत्तोन्ऱिल्
सोल्लरिय सोदियुडन् विळङ्गुवेळ्ळित् तोल्किऴमै वळर्पक्क नालानाळिल्
सेल्वमिगु पेरिय तिरुमण्डपत्तिल् सेऴुम् तिरुवाय्मोऴिप् पोरुळैच् चेप्पुमेन्ऱु
वल्लियुऱै मणवाळररङ्गर् नङ्गण् मणवाळ मामुनि वऴङ्गिनारे
(ईडु कालक्षेप परिताबि वर्ष के श्रवण मास के ३१वें दिन, शुक्रवार स्वाती नक्षत्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी में प्रारम्भ हुआ)
आनन्द वरुडत्तिल् कीऴ्मै आण्डिल् अऴगान आनिदनिन् मूल नाळिल्
बानुवारङ्कोण्ड पगलिल् सेय्य पौरणमियिनाळियिट्टुप् पोरुन्दि वैत्ते
आनन्दमयमान मण्डबत्तिल् अऴगाग मणवाळरीडु सात्त
वानवरुम् नीरिट्ट वऴक्के एन्न मणवाळ मामुनिगळ् कळित्तिट्टारे
(ईडु चाट्रुमुऱै प्रमादी वर्ष के रविवार पूर्णिमा के दिन ज्येष्ठ मास के मूला नक्षत्र को हुआ) [दोनों पाशुर अप्पिळ्ळै स्वामीजी ने कृपाकर रचना किये]। श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् स्वामीजी ने फिर यह बताया कि कैसे बद्रीकाश्रम के भगवान नारायण उनके स्वप्न में आये और यह तनियन् (श्रीशैलेश दयापात्रम) का अनुसंधान किये जब तक वें पूरी तरह से सीखे नहीं और कैसे भगवान ने उन्हें कहा कि जब भी वें संप्रदाय के पाशुरों को गाये तब वें इसे गाये। जब उन्होंने यह कहा तब वें आश्चर्य और आनन्द में थे। इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै और अन्य भी बहुत आनंदित होकर कहे “क्या यह तनियन् भगवान से प्रसाद नहीं हैं!” और उस घटना को उत्सव रूप में मनाया। श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् ने समय के साथ स्वयं को सम्भाला; उन्होंने इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै के दिव्य चरणों को पकड़ा और उनसे कहा उनपर कृपा रख उनको श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वैभव को कहे। इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै ने भी इनका वर्णन करने के लिये मान लिया परन्तु मठ में। उन्होंने फिर तिरुप्पावै का अनुसन्धान पूर्ण किया। श्रीतीर्थ और अन्य सम्मान इळैयाऴवार् पिळ्ळै और अन्य को प्रदान किया गया। तत्पश्चात इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् के मठ में गये और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वैभवता का उन्हें वर्णन कर उन्हें प्रसन्न किया। श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् ने भी उसे पूर्ण सुना, उसमें निरत हो गये और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि एकान्त में पूजा करने कि अपनी इच्छा को प्रगट किया। रामानुज दास जो इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै के साथ श्रीरङ्गम् से पधारे श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् के मन को जाने और उन्हें कहे “दास कुछ समय के लिये श्रीमान के नियमानुसार बद्रीकाश्रम और अन्य दिव्यदेशों के भगवान कि पूजा कैङ्कर्य करेगा; आप श्रीमान इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै के साथ श्रीरङ्गम् कि ओर प्रस्थान कर श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों कि सेवा करे; दास फिर श्रीरङ्गम् कि ओर श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों कि सेवा करने पधारेगा”। श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् यह सुनकर बहुत प्रसन्न हो गये और श्रीरामानुज दास कि बहुत प्रेम से प्रशंसा किये। फिर बड़े दया से उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरण पादुका को सही ढंग से रखा और फिर श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् के साथ श्रीरङ्गम् कि ओर प्रस्थान किये। राह में उन्होंने तिरुमला गये और श्रीवेङ्कटेश भगवान कि पूजा किये। श्रीवेङ्कटेश भगवान ने अपनी कृपा उनपर बरसाई और श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् को कुछ कैङ्कर्य करने का आज्ञा किये जिसके लिये उन्हें तिरुमला में हीं रूकना पड़ा जिस कारण से वें बहुत दुखी होगये क्योंकि वें अपनी इच्छानुसार श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि पूजा करने से वांछित रह गये।
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अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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