श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्रीवरवरमुनि स्वामीजी वाऴित्तिरुनामम्
इप्पुवियिल् अर्ङ्गेसर्क्कु ईडळित्तान् वाऴिये
एऴिल् तिरुवाय्मोऴिप्पिळ्ळै इणैयडियोन् वाऴिये
ऐपसियिल् तिरुमूलत्तु अवतरित्तान् वाऴिये
अरवरसप्पेरुञ्जोदि अनन्तन् एन्ऱुम् वाऴिये
एप्पुवियुम् श्रीशैलम् एत्तवन्दोन् वाऴिये
एरारुम् एदिरासर् एनविदित्तान् वाऴिये
मुप्पुरिनूल् मणिवडमुम् मुक्कोल्तरित्तान् वाऴिये
मूदरिय मणवाळमामुनिवन् वाऴिये
नाळ् पाट्टु
चेन्दमिऴ् वेदियर् चिन्दै तेळिन्दु चिऱन्दु मगिऴ्न्दिडु नाळ्
सीरुलगारियर् सेय्दरुळ् नऱ्कलै तेसुपोलिन्दिडु नाळ्
मन्दमदिप्पुवि मानिडर् तङ्गळै वानिल् उयर्त्तिडु नाळ्
मासऱु ज्ञानियर् चेर् एदितासर्तम् वाऴ्वु मुळैत्तिडु नाळ्
कन्दमलर् पोऴिल्सूऴ् कुरुगादिबन् कलैगळ् विळङ्गिडु नाळ्
कारार्मेनि अरङ्गनगर्क्कु इऱै कण्गळ् कळित्तिडु नाळ्
अन्दमिल् चीर् मणवाळमुनिप्परन् अवदारम् चेय्दिडु नाळ्
अऴगु तिगऴ्न्दिडुम् ऐप्पसियिल् तिरुमूलम् अदु एनुम् नाळे
मङ्गळम्
श्रीमते रम्यजामातृ मुनीन्द्राय महात्मने ।
श्रीरङ्गवासिने भूयात् नित्यश्रीर्नित्य मङ्गळम्
श्रीपिळ्ळैलोकार्य जीयर् के वैभव
श्रीपिळ्ळैलोकार्य जीयर् (पिळ्ळै लोकम्) जिन्होंने कृपाकर यह ग्रन्थ यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् कि रचना किये जिसमें बड़ी सुन्दरता से श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वैभवों को बताया गया हैं वे गोविंदप्पा दास के वंश में अवतार लिया हैं जो श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों में निरत थे जैसे श्रीमधुरकवि स्वामीजी श्रीशठकोप स्वामीजी के दिव्य चरणों में निरत थे। ये श्रीगोविंदप्पा दास ने सन्यासाश्रम को स्वीकार किया और भट्टर्पिरान् जीयर् दिव्य नाम प्राप्त किया जो श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के अष्टदिग्गज (आठ दिशाओं में हाथी) में से एक हैं। अऴगियमणवाळर् श्रीगोविंदप्पा दास के पुत्र थे। अऴगियमणवाळर् के पौत्र श्रीवरदाचार्य थे। जब श्रीवरदाचार्य ने सन्यासाश्रम को स्वीकार किया तब उनका नाम पिळ्ळै लोकम् जीयर् हुआ। उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी की यतिराज विंशति, उपदेश रत्न मालै, तिरुवाय्मोऴि नूट्रन्दादि और आर्ति प्रबंधम् की दिव्य रचनाओं के लिये मणिप्रवाळ व्याख्यान की दयापूर्वक रचना किये। उन्होंने कृपाकर रामानुजार्य दिव्य चरित्र, रामानुज नूट्रन्दादि, नालायिरत तनियन पर व्याख्यान कि रचना किये जो श्रीरामानुज स्वामीजी के वैभव को दर्शाता हैं। उनका जन्म मास् चित्तिरै (मेष मासम्) और दिव्य नक्षत्र श्रवण हैं।
मन्दिर के समुन्द्र में बह जाने के पश्चात उन्होंने तिरुक्कडल्मल्लै में सन्निधी का पुनः निर्माण किया, इसकी वर्तमान स्थिति में और मन्दिर के अंदर भगवान और श्रीभूतयोगी स्वामीजी के दिव्य विग्रह को स्थापित किया था। उन्हें सन्निधी में सम्मान प्राप्त हुआ जैसे तीर्थ, आदि। अभी भी उनके पूर्वाश्रम के वंशज को यह सम्मान प्राप्त होता हैं। इन जीयर् स्वामीजी कि विस्तृत जीवनी उपलब्द नहीं हैं।
श्रीपिळ्ळैलोकम् जीयर् तिरुवडिगळे शरणम्
आदार – https://granthams.koyil.org/2021/10/30/yathindhra-pravana-prabhavam-104-english/
अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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