श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – अनुबंधम्
श्रीशैलेश मन्त्र का वैभव
श्रीशैलेश दयापात्रं धीभक्तयादिगुणार्णवम् ।
यतीन्द्रप्रवणं वन्दे रम्यजामातरं मुनिम् ॥
यह सर्वविदित हैं कि श्रीरङ्गनाथ भगवान ने कृपाकर श्रीवरवरमुनि स्वामीजी पर उनके शिष्य के रूप में इस तनियन् कि रचना किये। हमारे लिये यह महामन्त्र हैं द्वय महामन्त्र के समान। हम इस मन्त्र कि महानता को यहाँ अनुभव कर सकते हैं।
पिळ्ळैलोकम् जीयर् द्वारा लिखित व्याख्या पर आधारित
पेरिय जीयर् (श्रीवरवरमुनि स्वामीजी) ने श्रीशैलेश स्वामीजी के दिव्य चरणों में शरण लिये थे और उन्हें “वाऴि तिरुवाय्मोऴिप्पिळ्ळै मादगवाल् वाऴुम् मणवाळमामुनिवन्” (श्रीवरवरमुनि स्वामीजी का मंगल हो जो श्रीशैलेश स्वामीजी के कृपा से रहते हैं) उसके लिये उनकी ऐसी प्रशंसा हुई। उन्होंने श्रीशैलेश स्वामीजी से दिव्यप्रबन्ध जैसे श्रीसहस्रगीति और उसके अर्थ को सीखा और चाहा कि सभी इन अर्थों को सीखकर ऊपर उठे। वह इसी उद्देश से गतिविधियों में निरत थे। श्रीरङ्गनाथ भगवान अर्चकों के माध्यम से श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को बुलवाया और उन्हें कहे “पेरिय तिरुमण्डप (भव्य दिव्य कक्ष श्रीरङ्गम् के मंदिर में) में श्रीसहस्रगीति पर हमें और हमारे अनुयायीयों के लिये श्रीसहस्रगीति के अर्थों पर कालक्षेप का प्रबंध करिये ताकि हम सब लाभ उठाये”। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी श्रीरङ्गनाथ भगवान कि आज्ञानुसार उयर्वऱ उयर्नलम् से प्रारम्भ कर और अवावऱच्चूऴ् [श्रीसहस्रगीति का पहला और एक हजार एक सौ और दूसरा पाशुर] के अंत तक कालक्षेप किया। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के कालक्षेप से प्रसन्न होकर श्रीरङ्गनाथ भगवान ने उन्हें मुप्पत्ताऱायिरप्पेरुक्कर् (वह जो श्रीसहस्रगीति के ईडु व्याख्यान [मुप्पत्ताऱायिरप्पडि कहकर बुलाते हैं] को भिन्न भिन्न अर्थों के साथ समझाते हैं और रामानुज सम्प्रदाय से विभिन्न स्तोत्र से सन्दर्भ लेते हुए) उपाधि प्रदान किये। श्रीरंगनाथ भगवान कृपाकर श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के लिये श्रीशैलेश दयापात्रं तनियन् कि रचना करते हैं। श्रीरङ्गनाथ भगवान का उन पर कृपा बरसाने हेतु श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने यह पाशुर कि रचना किये
नामार्? पेरियतिरुमण्डपमार्? नम्पेरुमाळ्
तामाग नम्मैत्तनित्तऴैत्तु-नी माऱन्
चेन्तमिऴ् वेदत्तिन् चेऴुम् पोरुळै इङ्गे
वन्दुरै एन्ऱेवुवदे वाय्न्दु
(हम कौन हैं? तिरुमण्डप क्या हैं? श्रीरङ्गनाथ भगवान ने स्वयं हमें अलग से बुलाकर हमें आदेश दिया “प्रतिदिन आप माऱन् (श्रीशठकोप स्वामीजी) द्वारा रचित शुद्ध तमिऴ् वेद के अर्थों पर कालक्षेप करें”। यह कितना उच्च हैं!।
श्रीरङ्गनाथ भगवान द्वारा कृपाकर रचित श्रीवरवरमुनि स्वामीजी पर तनियन् का अर्थ हैं: मैं कोयिल् अऴगियमणवाळच्चीयर् कि पूजा करता हूँ जो श्रीशैलेश स्वामीजी के दयापात्र हैं, जो ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, आदि जैसे शुभ गुणों के महान सागर हैं और जिनका श्रीभाष्यकार (श्रीरामानुज स्वामीजी) के प्रति अत्याधिक स्नेह हैं।
श्रीशैलेश दयापात्रम् : श्रीवरवरमुनि स्वामीजी श्रीशैलेश स्वामीजी के दया के पात्र हैं। श्रीशैलेश स्वामीजी श्रीयतिराज के दिव्य चरणों को कभी विस्मरण नहीं होने देते हैं जो श्रीशठकोप स्वामीजी के दिव्य चरणों के रूप में रहते हैं। श्रीशैलपूर्ण स्वामीजी (श्रीरामानुज स्वामीजी के मामाजी जिन्होंने श्रीरामानुज स्वामीजी को सम्पूर्ण श्रीरामायण का अध्ययन करवाया था) और श्रीशैलेश स्वामीजी के कृपा से श्रीरामायण और श्रीसहस्रगीति के भक्ति कि बाढ़ आ गई जिसे तीर्तङ्गळ् आयिरम् (१००० दिव्य पाशुर) कहा जाता हैं ने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी में निवास किया हैं जिन्हें यतीन्द्र प्रवणर कहा जाता हैं (जो श्रीरामानुज स्वामीजी के दिव्य चरणों के प्रति स्नेह रखते हैं)।
धीभक्तयादिगुणार्णवम् : श्रीवरवरमुनि स्वामीजी शुभ गुण जैसे ज्ञान (भगवान के प्रति), भक्ति (भगवान के प्रति), वैराग्य (संसार के प्रति), आदि के महान सागर हैं। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के पिछले अवतार यानि श्रीलक्ष्मणजी, श्रीरामानुज स्वामीजी में भी ज्ञान और भक्ति पूर्ण रूप से भरे हुए थे। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के विषय में श्रीरङ्गनाथ भगवान के प्रति यह स्नेह आदि दोगुनी मात्रा में मौजूद हैं।
यतीन्द्रप्रवणम् : यह शब्द यतीन्द्र प्रवणं इस तथ्य को संदर्भित करता हैं कि श्रीवरवरमुनि स्वामीजी का श्रीरङ्गनाथ भगवान के प्रति जो स्नेह हैं वह श्रीरामानुज स्वामीजी तक पहुँच जाता हैं जो स्नेह कि बाहरी सीमा हैं। श्रीरामानुज स्वामीजी पराङ्कुश भक्तर हैं (श्रीशठकोप स्वामीजी के प्रति भक्ति)। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी यतीन्द्र प्रवणर हैं।
वंदे रम्यजामातरं मुनिम् : अऴगियमणवाळमामुनि के दिव्य नाम का ध्यान करते हुए, वे श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों में वंदना करते हैं
आदार – https://granthams.koyil.org/2021/11/01/yathindhra-pravana-prabhavam-105-english/
अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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