श्रीवचन भूषण – सूत्रं २ 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम:

पूरि श्रृंखला

पूर्व

अवतारिका 

श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य  स्वामीजी दयापूर्वक यह जान रहे हैं कि वेदों के किस खंड को उपर्युक्त साहित्य मे से किस भाग द्वारा निर्धारित किया जाना हैं। 

सूत्रं २ 

स्मृतियाले पूर्व भागत्तिल अर्थम् अऱुदिइडक्कडवदु; मट्रै इरण्डालुम् उत्तर भागत्तिल अर्थम् अऱुदियिडक्कडवदु। 

सरल अनुवाद 

पूर्व भाग के अर्थ स्मृति द्वारा दृढ़ निश्चय होता हैं। उत्तर भाग के अर्थ इतिहास और पुराण द्वारा दृढ़ निश्चय होता हैं। 

व्याख्यान 

स्मृतियाले …

वेदम जिसे उपबृंह्यम के रूप में जाना जाता हैं, इसके प्रत्येक भाग में प्रगट होनेवाले अर्थों के कारण इसके दो खंड हैं। उसी तरह उपबृंहण के प्रगट होनेवाले अर्थों के आधार पर भिन्न भिन्न खंड होंगे। उनमें स्मृति पूर्वभाग का व्याख्यान रूप, इतिहास आदि उत्तर भाग का व्याख्यान रूप बनाया गया हैं। उन उन उपबृंहणों को लेकर ही उस उस भाग का अर्थ निश्चय किया जाता हैं। इसी कारण से पूर्वभाग के अर्थों को धर्मशास्त्र आदि से प्रतिपादित करते हैं जो गुण, नियम और प्रक्रिया के प्रायश्चित पर कहता हैं। उत्तरभाग के अर्थों जो ब्रह्म को अन्य दो इतिहास और पुराण से प्रतिपादित करता हैं जो भगवान के स्वरूप, रूप, गुण, विभूति और चेष्टितम को दर्शाता हैं । 

इन दो वर्गीकरण के अनुसार अर्थ निर्धारित करने से क्या निहित होता हैं? 

इन स्मृति, इतिहास और पुराणों के साथ जो शाखाओं के अर्थ प्रगट करते हैं जिसमें किसी को प्रशिक्षण नहीं किया जा सकता हैं शाखाओं के अर्थ को एक व्यक्ति द्वारा वांछित के रूप में निर्धारित नहीं किया जा सकता हैं। 

स्मृतियों में ब्रह्म का प्रतिपादन और इतिहासों में कर्म का प्रतिपादन होने पर भी स्मृतियों में ब्रह्मप्रतिपादन कर्मों के ब्रह्माराधनरूपत्व को जानने के लिए एवं इतिहासों में कर्म प्रतिपादन कर्मों के उपासनांगत्व को जनाने के लिए कहा हैं; अत:एव ऐसा कहना असंगत नहीं। 

बार्हस्पत्य स्मृति में कहा गया हैं 

“प्रायेण पूर्व भागार्थ पूराणं धर्मशास्त्रतः।
इतिहास पुराणाभ्यां वेदान्तार्थः प्रकाशयते॥”

 (प्राय: धर्मशास्त्र से पूर्वभाग का अर्थ पूर्ण होता है, इतिहास पुराणों से वेदांतार्थ पूर्ण होता हैं ऐसा कहा हैं)। 

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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