श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम:
अवतारिका
श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी इतिहास कि श्रेष्ठता को ओर स्थापित करते हैं
सूत्रं ४
अत्ताले अदु मुऱपट्टदु।
सरल अनुवाद
उस कारण से उसे पहिले कहा गया हैं
व्याख्यान
अत्ताले …
इतिहास के उस अधीक प्रामाणिकता के कारण जैसे कि छांदोग्य उपनिषद ७.२१ में कहा गया हैं “इतिहास पुराणं पञ्चमम्” (इतिहास और पुराण पांचवे वेद हैं) और बृहस्पति स्मृति में “इतिहास पुराणाभ्याम्” (इतिहास और पुराण के साथ), शृति और स्मृति दोनों में, दोनों को सूचीबद्ध करते समय इतिहास को पुराण से पूर्व प्रमुखता प्रदान किया गया हैं।
द्वंद्व समास में (सहयोगी योगिक – संबंधीत संस्थानों का संबंध) किसी शब्द को प्रारम्भ में प्रस्तुत करने के लिए या तो अल्पाक्षर (शब्दांशों की कम संख्या वाला शब्द) या अभ्यार्हिता (वह शब्द जो सूचिबद्ध लोगों के बीच सबसे सम्मानित संस्थानों को इंगित करता हैं) नियम लागू होगा । हांलाकि इतिहास शब्द कम संख्या में शब्दांश नहीं हैं परंतु इसके सबसे पूजनीय प्रकृति के कारण इसे सबसे पहिले उजागर किया गया हैं; ऐसा समझा जाता हैं कि इसके सर्वाधीक पूजनीय होने का कारण इसकी प्रामाणिकता हैं।
वैकल्पिक व्याख्या – साहित्य पर प्रकाश डालते हुए जो वेद को समझता हैं जिसके दो भाग हैं पहिले सूत्र में एक संग्रह के रूप में जैसे कि “इतिहासाश्च पुराणिच इतिहासपुराणानि स्मृत्यश्च इतिहास पुराणिच स्मृतीतिहासपुराणानि ” में कहा गया हैं (इतिहास और पुराण को सामूहिक रूप से “इतिहासपुराणानि” कहा जाता हैं और स्मृति, इतिहास और पुराण को सामूहिक रूप से “स्मृतीतिहासपुराणानि” कहा जाता हैं) क्योंकि श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी का ध्यान योगिक शब्दो पर केन्द्रीत हैं, कम अक्षरों की संख्या होने के बावजूद इतिहास को पूराण से पहिले उजागर करने का कारण दयालुपूर्वक “इवै इरण्डिलुम्” से प्रारम्भ कर सिखाया गया हैं। इस दृष्टिकोण में इस सूत्र के लिए यह समझा जाना चाहिये कि अधिक प्रामाणिकता के कारण “इतिहासपुराणङ्गळाले” में इतिहास को पुराण से पूर्व सूचीबद्ध किया गया हैं।
इस प्रकार क्योंकि श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी दया कर समझाते हैं कि वेद के अर्थों का निर्धारण करते समय इसे (अ) उपबृंहणों की मदद से किया जाना चाहिये (आ) जो उपबृंहणों में से पूर्व और उत्तर भागों कि व्याख्या करते हैं (इ) इतिहास और पुराणों में से जो उत्तर भाग कि व्याख्या करें इतिहास में उसकी अधीक प्रामाणिकता हैं, उन्होंने जिन सिद्धांतों के बारे में आगे बताने जा रहे हैं उनके लिए प्रमाण कि पहचान किए हैं।
अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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