श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
<< माखन चोरी करना और पकड़े जाना
इससे पहले की लीला में हमने अनुभव किया कि भगवान कृष्ण कैसे माता यशोदा के बंधन में बंध जाते हैं। जब बालकृष्ण को माता यशोदा ऊखल के साथ बांधकर अपने दधि मंथनादि कार्यों में व्यस्त हो गई, तब स्तब्ध (दामोदर) श्रीकृष्ण स्वयं को असक्षम जानकर उस ऊखल के साथ रेंगते हुए दो यमलार्जुन (अर्जुन के वृक्षों को) को जो आपस में गुंथे हुए थे, उखड़ कर धरती पर गिर गये। आइए इस लीला के पीछे कई घटना को जानते हैं।
कुबेर के दो पुत्र नलकूबेर और मणिग्रीव (द्रव्य के दर्प से दर्पित) खेल रहे थे और उनके देवर्षि नारद जी के आगमन का आभास ही नहीं हुआ। ऋषि ने क्रोधित होकर उन्हें वृक्ष बनने का श्राप दे दिया। वे भयभीत हो गए और क्षमा याचना करने लगे। ऋषि नारद जी ने करुणावश उनसे कहा “आप कई वर्षों तक इस धरती पर वृक्ष बनकर रहोगे। भगवान के अवतरित होने पर वे तुम्हें श्राप से मुक्ति प्रदान करेंगे।” अब उनके पास कोई और विकल्प नहीं था, उन्होंने भाग्य के इस लेख को स्वीकार किया और यमलार्जुन वृक्ष के रूप में हो गये।
गोकुल में ये दोनों वृक्ष साथ-साथ थे।उस समय श्रीकृष्ण अपने साथ ओखली (ऊखल)को घुमाते हुए,उन युगल वृक्षों के मध्य स्थान से निकल कर दूसरी ओर आ गये। बलपूर्वक ओखली को खींचने से वे विशाल वृक्ष तीव्र ध्वनि के साथ गिर गये।उस ध्वनि को सुनकर पीछे की ओर मन्द मन्द मुस्कान से दृश्य को देखने लगे।ऋषि,आऴ्वार, आचार्य इस लीला में ध्यान मग्न हो जाते हैं। नलकूबर और मणिग्रीव दोनों उस श्राप से मुक्ति पाकर, भगवान कृष्ण की स्तुति करने लगे और प्रस्थान किया
इस लीला को आऴ्वारों ने सानन्द उद्धृत किया है। नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी जी) तिरुवाय्मोऴि में कहते हैं “पोनाय् मामरुदिन् नडुवे ऎन् पॊल्ला मणिये” (हे मेरे अमूल्य रत्न जो दो मरुद वृक्षों के बीच से होकर निकले!); तिरुमङ्गै आऴ्वार् पेरिय तिरुमोऴि में कहते हैं “निन्ऱ मामरुदु” (विशाल मरुद वृक्ष जो बहुत दृढ़तापूर्वक खड़े थे); कुलशेखर आऴ्वार् पेरुमाळ् तिरुमोऴि में कहते हैं “मरुदु इऱुत्ताय्” (हा, जिसने मरुद वृक्षों को गिरा दिया) ऐसे और भी कई अद्भुत वर्णन हैं। आचार्यों ने यह भी वर्णन किया इन वृक्षों पर राक्षसों का अधिकार था और इसी कारण श्रीकृष्ण ने स्वयं उनको गिरा दिया।
सार-
- किसी के यदि कोई बड़ा अपराध हो जाने पर उसका ज्ञान हो जाये, तो भगवान की कृपा से वह उससे मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
- शत्रु भले ही कितना बड़ा बलशाली हो, भगवान उसका सहज ही विनाश कर सकते हैं।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
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