श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
<< वृन्दावन की ओर प्रस्थान, बहुत से असुरों का वध
श्रीकृष्णावतार की लीलाओं में, बहुत मनोहर अनुभूति और अद्भुत सिद्धांतों का वर्णन हुआ है। उन लीलाओं में एक अद्भुत लीला जिसमें श्रीकृष्ण एक कुम्हार और उसके (दधि रखने के) पात्र को कैसे मोक्ष प्रदान करते हैं। इतिहास और पुराणों में इस कथा के उद्भव ज्ञात करने में असमर्थता जताई गई है। परन्तु हमारे पूर्वाचार्यों के कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथ इस लीला के उत्तरदायी हैं। आइए इस लीला का रसास्वादन करते हैं।
वृन्दावन में एकदा बालकृष्ण सदा की तरह माखन चुराने के पश्चात् बचकर भागने का प्रयास कर रहे थे, तब कुटिया में पहुंचे जो पास में ही थी। वहां एक दधिपाण्डन नामक कुम्हार निवास करता था। जब बालकृष्ण उधर छिपने का स्थान ढूंढ़ते हुए आए और एक बड़े से पात्र को देखकर उसके नीचे छिपा गए, यह सब देख वह कुम्हार बहुत प्रसन्न हुआ। अब बालकृष्ण उस कुम्हार से कहते हैं “कोई पूछता हुआ इधर आ जाए तो मेरी उपस्थिति का उन्हें मत बताना।” कुमहार ने सहमति प्रकट की। माता यशोदा ने वहां आकर पूछा “क्या बालक कृष्ण यहां आया है।” उसने कहा “यहां कोई नहीं आया।” (माता को) उन्हें ऐसा कहकर लौटा दिया।
तत्पश्चात् श्रीकृष्ण के द्वारा उस पात्र से बाहर निकलने केलिए प्रयास करते देख कुम्हार ने कहा “यदि आप बाहर आना चाहते हैं तो आपको पहले मुझे इस भौतिक संसार से मोक्ष देना स्वीकार करना होगा।” तब उन्होंने उत्तर दिया “मैं मोक्ष के बारे में कुछ नहीं जानता। मैं तो एक छोटा बालक हूँ, और यदि तुम चाहते ही हो तो मैं मक्खन दे सकता हूँ।” कुम्हार ने बलपूर्वक कहा “मुझे आपके बारे में ज्ञात हो गया है, मैं सच्चाई जान गया हूं, अब मुझे मोक्ष प्रदान करना ही होगा।” श्रीकृष्ण प्रसन्नता से बोले, “ठीक है! स्वाकृति है।” कुम्हार ने इतना ही नहीं बल्कि (प्रार्थनापूर्वक) आगे कहने लगा, “केवल मेरे लिए ही नहीं जबकि आपको मेरे उस पात्र को भी मोक्ष प्रदान करना चाहिए जिसमें मैं दधि (दही) रखता हूं।” श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया “मैं ऐसा नहीं कर सकता। तुम कितने लोभी हो! मैं तुम्हें मोक्ष प्रदान करता हूं तब तुम सभी के लिए मोक्ष मांग रहे हो।” कुम्हार ने हठपूर्वक कहा, “यह पात्र मुझे बहुत प्रिय है। मैं आपको तभी बाहर निकलने दूँगा जब आप मटके (पात्र) (घड़ा) को भी मोक्ष प्रदान करोगे।” अन्ततः एम्पेरुमान् ने (श्रीमन्नारायण) स्वाकृति के साथ कहा, “ठीक है! हम आपके पात्र को भी मोक्ष प्रदान करते हैं।”
इस लीला को तिरुक्कोळूर् पॆण् पिळ्ळै वार्त्तै में “इङ्गिल्लै ऎन्ऱेनो दधिपाण्डनैप् पोले” (दधिपाण्डन् की तरह , “वह यहां नहीं है”, क्या मैंने कहा था?) वर्णित है। इसके अतिरिक्त आचार्य हृदयम् में, जिसे अऴगिय मणवाळ्प् पेरुमाळ् नायनार् ने २२८ वीं चूर्णिका में वर्णन किया है, कि एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) कई विभिन्न प्रकार की प्रजातियों को मोक्ष प्रदान करते हैं। उन्होंने दर्शाया “इडैयार् तयिर्त्ताऴि” (गोप-ग्वाल गण दधि रखने वाला पात्र)। मणवाल् मामुनि (वरवरमुनि स्वामी जी) भाष्य में थोड़ा भिन्न रूप से समझाते हैं, उनके दिव्य कथन “वॆण्णै कळवु काणप् पुक्कविडत्ते तॊडुप्पुण्डुवन्दु तम्मगत्ते पुगप् पडलैत् तिरुगि वैत्तु मोक्षम् ताराविडिल् काट्टिक्कॊडुप्पेन् ऎन्ऱु मोक्षम् पॆट्र ददिपाण्डर्” (मक्खन चुराने के पश्चात् बालकृष्ण पीछा किया जाने पर दौड़ते हुए दधिपाण्डर् के घर में प्रवेश कर गए और कुम्हार ने सांकल बन्द कर दी)। श्रीमद् वरवरमुनि स्वामी जी ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की है कि जैसे कुम्हार ने श्रीकृष्ण को अपने घोड़े के स्थान पर अपने घर में बन्द कर दिया है।
इस प्रकार यह दधिपाण्डन् की लीला एक अद्भुत लीला है। दुर्भाग्यवश हम इतिहास और पुराणों में इस लीला प्रवाह को ज्ञात करने में असमर्थ हैं। आचार्यों के द्वारा इस लीला का लगभग ही पता चला।
सार-
- भगवान भले ही स्वयं को सहज प्रस्तुत करें परन्तु भक्त को भगवान के वास्तविक स्वरूप का भान हो जाता है।
- उच्च भक्त केवल नित्य कैङ्कर्य में संलग्न होने के लिए ही एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) से मोक्ष (८४ लाख योनियों से मुक्ति) की याचना करते हैं।
- हमें यहां समझना होगा कि श्रीकृष्ण ने दधिपाण्डन् को मोक्ष प्रदान किया जबकि घड़ा अचेतन है, तो उसे मोक्ष प्राप्ति कैसे हुई। मणवाळ मामुनिगळ् (वरवरमुनि स्वामी जी) ने आचार्य हृदयम् में टिप्पणी में इसका स्पष्टीकरण किया है कि नाम और रूप वाली किसी भी प्रजाति को आत्मा द्वारा नियंत्रित किया जाता है, कुम्हार के हठ करने से उस घड़े की आत्मा को मोक्ष मिला। विशेष -पापयुक्त आत्माओं को वृक्ष, पौधे, लता, पाषाण, वस्त्रादि जैसे शरीर प्राप्त होते हैं।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
आधार – https://granthams.koyil.org/2023/09/09/krishna-leela-10-english/
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