कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ११ – अघासुर वध (उद्धार)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः

श्रृंखला

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जब श्रीकृष्ण लगभग पांच वर्ष के हुए, तब ग्वाल-बालों के साथ गैय्या-बछड़ों को लेकर ध्यानपूर्वक वन को जाते थे और वृन्दावन में हरियाली से आच्छादित वन हैं, वे वन में हंसते खेलते, इधर-उधर दौड़ते, बालोचित खेल खेलते और गोधूलि वेला में लौट आते। माता यशोदा और अन्य ग्वालिनें उन्हें प्रसाद पाने के लिए दधि भात, अचार आदि साथ दे देतीं। सब ग्वाल-बाल श्रीकृष्ण के साथ दोपहर में प्रसन्नचित्त प्रसाद पाते।

एक दिन इसी प्रकार वे वन को गए तब कंस के द्वारा भेजा गया अघासुर नाम का राक्षस वहां उपस्थित हो गया जो कि पूतना और बकासुर का भाई था। श्रीकृष्ण के द्वारा उनका वध होने के कारण अघासुर बहुत क्रुद्ध था, उसने विशाल सर्प का रूप धारण कर लिया और अपना भीषण मुख खोलकर ग्वाल-बालों के मार्ग पर धीरे-धीरे रेंगता हुआ स्थित हो गया। वह किसी चमकती हुई गुफा की भांति प्रतीत हो रहा था और सभी ग्वाल-बालों ने कुतूहलवश उसके मुख में प्रवेश कर लिया। श्रीकृष्ण को अघासुर की योजना पहले से ज्ञात थी, कुछ देर बाहर रहे। परन्तु अघासुर श्रीकृष्ण के द्वारा भीतर प्रवेश करने की प्रतीक्षा में था।

अन्ततः श्रीकृष्ण ने प्रवेश किया। शीघ्र ही अघासुर ने अपना मुख बंद कर लिया। अब सभी का श्वास अवरुद्ध होने लगा और वे मूर्च्छित होने लगे। श्रीकृष्ण ने सतर्कतापूर्वक अघासुर के वध के लिए उपयुक्त उपाय सोचा और विराट् रूप धारण कर लिया। अघासुर के प्राण अवरुद्ध होने से वह शक्ति हीन हो गया, तभी श्रीकृष्ण ने अन्दर से उसके शीर्ष भाग पर मुष्टिका का प्रहार किया। उसका मस्तक दो भागों में फूट गया और गिरकर मर गया। श्रीकृष्ण की करुणा दृष्टि से सभी ग्वाल-बाल चेतनायुक्त हुए।

सार:-

  • यदि भगवान का समर्थन की प्राप्ति होती है तो किसी भी प्रकार के संकट से छुटकारा मिल जाता है।
  • भगवान सदैव अपने भक्तों को संकटों से मुक्त करने के लिए सदा सतर्क रहते हैं।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी 

आधार – https://granthams.koyil.org/2023/09/10/krishna-leela-11-english/

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