कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – १४ – कलिङ्ग नर्दनम् (कालियदमन)

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यमुना नदी के तट पर एक कालिय/कलिङ्ग नामक एक सर्प अपने परिवार के साथ रहता था। वह दुष्ट निरन्तर विष उगलकर तालाब को विषाक्त बना दिया ताकि कोई भी वहां न आ सके। यदि कोई वहां जाता तो विषैली वायु में श्वास लेने से मूर्च्छित हो जाता। वहां गोपगण के साथ ऐसा ही हो रहा था। इसके कारण वहां पेड़-पौधे और लताएं भी शुष्क होती जा रहीं थीं। यह देख कर श्रीकृष्ण ने कालिय नाग वश में करने का निर्णय लिया।

एक दिवस, श्रीकृष्ण बलराम को बिना बताए उसी तालाब के किनारे गये जहां कालिय नाग रहता था। श्रीकृष्ण वहां पर स्थित कदम्ब वृक्ष के ऊपर चढ़ गये और तालाब में रहने वाले कालियनाग के मस्तक पर बलपूर्वक कूद गए और नृत्य करने लगे। उस नृत्य से उसको कष्ट होने लगा। कालिय नाग का श्वास रुकने लगा, उसकी आंखें बाहर को निकलने लगीं और असहनीय पीड़ा से पीड़ित कालियनाग की पत्नियां श्रीकृष्ण की स्तुति गाने लगीं, आराधना की और क्षमा याचना की। कालियनाग ने भी अपने द्वारा किए अपराध की क्षमा मांगी। श्रीकृष्ण ने आज्ञा दी “तुम्हें अब यहां नहीं रहना चाहिए और समुद्र के पास चले जाना चाहिए।” कालियनाग ने उस आज्ञा का पालन किया।

इस लीला का वर्णन आऴ्वारों ने भी आनन्द पूर्वक किया है। पेरियाऴ्वार तिरुमोऴि में पेरियाऴ्वार विस्तृत वर्णन करते हैं “काळियन् पॊय्गै कलङ्गप् पाय्न्दिट्टु अवन् नीळ्मुडि ऐन्दिलुम् निन्ऱु नडम् सॆय्दु मीळ अवनुक्कु अरुळ् सॆय्द वित्तगन् तोळ्वलि वीरमे पाडिप् पऱ तूमणि वण्णनैप् पाडिप् पऱ”(श्रीकृष्ण उस तालाब में कूद गए जहां कालिय नाग /कळिङ्ग रहता था जो उस तालाब से सबको दूर रखना चाहता था, कालियनाग के पांच फनों वाले सिर पर उसने (श्रीकृष्ण ने) नृत्य किया और तत्पश्चात् उस पर कृपादृष्टि भी की, एम्पेरुमान् (भगवान) के शक्तिशाली स्कन्धों की वीरता की महिमा का गान किया। शुद्ध मणि तुल्य स्वरूप वाले एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) की स्तुति की।) आण्डाळ् नाच्चियार् तिरुमोऴि में भावोद्गार प्रकट करती हैं “नीर्क्करै निन्ऱ कदम्बै एऱिक् कळियन् उच्चियिल् नट्टम् पाय्न्दु पोर्क्कळमाग निरुत्तम् सॆय्द पॊय्गैक् करैक्कु ऎन्नै उय्त्तिडुमिन्” (कण्णन्/श्रीकृष्ण एक कदम्ब /भारतीय ऑक के वृक्ष पर चढ़ गये और दुष्ट कालियनाग के सिर पर कूद गए और ऐसा नृत्य करने लगे कि यमुना का तट युद्धक्षेत्र बना दिया) कुळशेखराऴ्वार् पेरुमाळ्तिरुमोऴि में कहते हैं “कालाल् काळियन् तलै मिदित्तदुम्” (अपने पाद कमल कालियनाग के शीर्ष पर रखते हुए)

तिरुमङ्गै आऴ्वार् पेरिय तिरुमोऴि में कहते हैं “काळियन् तन् सॆन्नि नडुङ्ग नडम् पयिन्ऱ”( नृत्य करने से कालियनाग का सिर कांपने लगा)।

सार-

  • शत्रुओं का विनाश करते समय, एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) के पास स्वयं की योग्यता है।
  • अपराध करने वालों को एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) केवल दण्ड ही नहीं देते जबकि अपराध ज्ञात होनेवाले को क्षमा भी करते हैं।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी

आधार – https://granthams.koyil.org/2023/09/19/krishna-leela-14-english/

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