कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – १८ – वस्त्र-हरण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः

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कृष्ण की मुख्य लीलाओं में गोपियों के वस्त्र हरण की लीला भी प्रमुख लीला है। आईए इस लीला को सार सहित जाने।

कृष्ण को ग्वालिनों से बहुत प्रेम था, उसी प्रकार गोपिकाओं को भी श्रीकृष्ण से अतिप्रेम था। कृष्ण अधिकतर गोपिकाओं के केश खींचकर, कभी उनके वस्त्र खींचकर चिढ़ाते। उसकी इन सब चञ्चल व नटखट लीलाओं को असहनीय होने पर माता यशोदा को उपालम्भ देती थीं और अपना क्रोध भी दिखाती थीं।
एक बार सभी गोपियाँ एकत्र होकर श्रीकृष्ण को बिना सूचित किए एक तालाब पर स्नान करने के लिए गईं। परन्तु श्रीकृष्ण ने भी उनको बिना सूचित किए उनका पीछा किया। वे छोटी गोपियाँ होने के कारण उन्होंने वस्त्र उतार कर तालाब के किनारे रख दिए और तालाब में प्रवेश किया। गोपियों के तालाब में प्रवेश करते ही श्रीकृष्ण ने उनके वस्त्र चुरा लिए और वहाँ स्थित कुरुन्द (कदम्ब) वृक्ष पर चढ़ कर रख दिए और स्वयं भी वहाँ एक शाखा पर बैठ गए। स्नान करने के उपरांत गोपियों को वे वस्त्र नहीं मिले। उन्होंने विचार किया कदाचित कोई देवता या कोई अज्ञात शक्ति ने चुरा लिए हैं। तभी कृष्ण ने उन्हें वृक्ष से पुकारा और कहा, “यदि तुम्हें वस्त्र पुनः प्राप्त करने हैं तो अपने हस्त ऊपर उठाकर, दोनों कर जोड़कर प्रार्थना करो।” पहले उन गोपाङ्गनाओं ने लज्जावश अस्वीकार कर दिया तत्पश्चात भक्तिभाव से अपने देह से हस्त आवरण हटाकर ऊपर उठाए और स्तुति करने लगीं। कृष्ण अति सन्तुष्ट हुए और उनके वस्त्र लौटा दिए।

पेरियाऴ्वार् ने पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में इस लीला का आनन्द लिया “वण्डमर् पूङ्गुऴलार् तुगिल् कैक्कॊण्डु विण्डोय् मरत्तान्” (उसने गोपियों के जिनके केश बहुत सुंदर थे उनके वस्त्र उठाए और एक ऊंचे वृक्ष पर चढ़ गये)। आण्डाळ् ने नाच्चियार् तिरुमोऴि “कोऴियऴैप्पदन् मुन्नम्” में इस लीला का पूर्ण दशक में आनन्द पूर्वक वर्णन किया; तिरुमङ्गै आऴ्वार् पेरिय तिरुमोऴि में सानन्द वर्णन् किया “तुऴैयार् करुमॆन् कुऴल् आय्च्चियर् तम् तुगिल् वारियुम्” (काले कोमल केश वाली गोपाङ्गनाओं के वस्त्र एकत्र किए)।

सार-

  • भगवान के प्रति समर्पण करते समय प्रत्येक को उद्घोषणा करनी चाहिए कि मरे वश में कुछ नहीं है, कोई अन्य आश्रय भी नहीं है और लज्जा त्याग कर यह स्वीकारना चाहिए कि भगवान (श्रीमन्नारायण) के दिव्य चरण कमल ही एकमात्र आधार हैं।
  • गोपिकाओं को जबकि श्रीकृष्ण से बहुत प्रेम था परन्तु यह ज्ञात नहीं हुआ कि वे ही उनका पूरणाश्रय हैं। इसलिए गोपाङ्गनाओं को अनुभूति देने के लिए श्रीकृष्ण ने इस लीला को रचा।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी 

आधार – https://granthams.koyil.org/2023/09/23/krishna-leela-18-english/

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