कृष्ण लीलाएँ और उनका सार- २६ – अक्रूर जी की यात्रा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः

श्रृंखला

<< कंस‌ का भयभीत होना और षड्यंत्र

कंस ने श्रीकृष्ण और बलराम को लाने के लिए अक्रूर जी को भेजा। प्रभात वेला में ही वे तीव्र गति से वृन्दावन की ओर चल पड़े। अक्रूर जी श्रीकृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पित थे और बहुत समय से उनका दर्शन पाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उत्सुकता भरी वृन्दावन की ओर जाने की इस यात्रा की तुलना तिरुवेङ्गड यात्रा (तिरुमला तिरुपति की यात्रा) और अर्चिरादि मार्गम् (प्रकाशित मार्ग) और परमपदम् तक पहुँचने से की जाती है।

अक्रूर जी प्रभात होते ही शीघ्र ही अपने रथ पर सवार होकर वृन्दावन की ओर निकल गये। वहाँ जैसे ही उत्सुकतावश श्रीकृष्ण को प्रणाम कर ध्यान मग्न हुये, तभी श्रीकृष्ण ने अपने कर कमलों से उन्हें उठाया और हृदय से लगा लिया। जब अक्रूर जी श्रीवृन्दावन पहुँचे तब श्रीकृष्ण और बलराम गायों को दुहने जा रहे थे। भक्ति से ओत-प्रोत भावुक हुए अक्रूर जी उनको देखकर रथ से कूदकर दौड़े और कटे हुए वृक्ष की भाँति उनके चरणों में गिर गये। श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने करकमलों से उठाया और हृदय से लगा लिया जो आनन्द वर्धक था।

तत्पश्चात् श्रीकृष्ण उन्हें भीतर प्रवेश कराया और आवभगत की। नन्दगोप जी, बलराम और श्रीकृष्ण ने उनके आने का कारण पूछा। अक्रूर जी ने कंस के कुविचार और योजनाओं के बारे में जानकारी दी। श्रीकृष्ण ने शीघ्र ही कहा “आइए अक्रूर जी के साथ चलें।” नन्दगोप जी उन सभी के साथ और लोगों को भी भेजने का निर्णय लिया और श्रीकृष्ण और बलराम अक्रूर जी के रथ पर चढ़े। यह देखकर गोपिकाएँ विलाप करने लगीं और इस वियोग को सहन करने में असमर्थ हो गईं। जैसे ही रथ ने गति पकड़ी वे उसके पीछे-पीछे चलने लगीं, परन्तु श्रीकृष्ण ने पीछे आने से रोका, गोपिकाओं ने इच्छा रहित हो उनकी विदाई की।

कुछ क्षण पश्चात् वे यमुना नदी के तट पर पहुँचे। अक्रूर जी ने अपना संध्यावन्दन (सूर्यास्त समय किया जाने वाला अनुष्ठान) करने के लिए रथ रोका। वे रथ से उतरकर नदी में प्रवेश करने लगे। जैसे ही वे नदी से जल लेकर आचमन करने लगे, भगवान जल के अन्दर आदिशेष पर विराजे हुए अद्भुत मुद्रा में प्रकट हुए। अक्रूर जी आश्चर्यचकित हो गये और जल से बाहर देखा कि श्रीकृष्ण तो रथ पर विराजमान हैं, श्रीकृष्ण सर्वेश्वर के रूप में प्रकट हुए इस स्वरूप का आनन्द अनुभव करते हुए श्रीकृष्ण की स्तुति की और महिमागान किया।

इस प्रकार, अक्रूर जी श्रीकृष्ण और बलराम को मथुरा ले गये।

सार-

  • प्रत्येक दिन हमें भगवान तक पहुँचने के लिए तीव्र उत्सुकता रखनी चाहिए।
  • कोई कहीं भी हो, किसी भी स्थिति में हो, यदि वह भगवान तक पहुंचने की तीव्र इच्छा रखता है तो भगवान निश्चित ही ऐसे व्यक्ति पर अपनी कृपा बरसायेंगे।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी

आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/02/krishna-leela-26-english/

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