श्रीवचनभूषण – सूत्रं १३

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श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपाकर अम्माजी की प्रतिक्रीया समझाते हैं जब वें उनकी परामर्च पर नहीं बदलते हैं। 

सूत्रं १३

उपदेशत्ताले मीळाद​ पोदु चेतननै अरुळाले तिरुत्तुम, ईश्वरनै अऴाले  तिरुत्तुम। 

सरल अनुवाद

जब वें अम्माजी के परामर्श को सुनकर नहीं बदलते हैं  तब अम्माजी चेतन को केउपा से और ईश्वर को अपने सौन्दर्य से सुधारती हैं। 

व्याख्यान

उपदेशत्ताले मीळाद पोदु

पिराट्टी की सलाह सुनने के बाद भी चेतन के न बदलने का कारण धुर्वासना आदि हैं जैसे तिरुविरुत्तम ९५ में कहा गया हैं “यादानुम पट्ऱी नीङ्गुम्” (भगवान को कोई भी कारण बताकर छोड़ देना), क्योंकि अनादि काल से वह भगवान से मुंह मोड़ रहा है और सांसारिक सुखों में डूबा हुआ है।


पिराट्टी की सलाह सुनने के पश्चात भी ईश्वर के न बदलने का कारण उसकी पूर्ण स्वतंत्रता है, जो उसके हृदय को चेतन के प्रति दया दिखाने से रोकती है, जो कि चेतन की गलतियों के अनुसार उसे दंडित करने के इरादे के कारण है।

इन्हीं कारणों से दोनों ईश्वर और चेतन दोनों पिराट्टी की सलाह सुनने के बाद भी अपने कर्म पारतंत्रय से पीछे नहीं हटते हैं। 

चेतननै अरुळाले तिरुत्तुम सोचते हुए “अफसोस! उसके बुरे विचार दूर होने चाहिए और उसके मन में अच्छे विचार आने चाहिए”, वह उस पर अपनी महान दया की वर्षा करती है जैसा कि श्रीसहस्रगीति के ९.२.१ में कहा गया हैं “पङ्गयत्ताळ् तिरुवरुळ्” (कमल पुष्प पर विराजमान की दिव्य दया) और उसके कारण उसके पापी विचार समाप्त हो जाते हैं और वह भगवान की ओर मुड़ जाता है।

ईश्वरनै अऴाले  तिरुत्तुम – जब भगवान ने यह कहकर अम्माजी की सलाह छोड़ दी कि “मुझे परेशान करना बंद करो! यह आपका कर्तव्य नहीं है”, वह प्यार से अपनी आँखें घुमाती है, अपने कपड़े ढीले करती है और उसे अपनी सुंदरता से हतप्रभ कर देती है और उन्हें अपनी बातों का पालन करने और चेतनों को स्वीकार करने के लिए तैयार करने के लिए विवष करती है।

अत: सूत्रं  ७ के “पुरुषकारमाम्बोदु ” से यहाँ तक अम्माजी के पुरुषकार के लिए जो गुण चाहिये वह उन्हें कैसे प्रगट करती हैं वह मिलन और अलगाव में पुरुषकार कैसे करती हैं और जैसे वह इन्हें करती हैं यह सब अच्छी तरह से समझाया गया हैं। 

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

आधार – https://granthams.koyil.org/2020/12/19/srivachana-bhushanam-suthram-13-english/

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