श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः
साम्ब कृष्ण और जाम्बवति के पुत्र थे। लक्ष्मणा, जो दुर्योधन की पुत्री थी के स्वयंवर के समय उसने हरण कर लिया। यह देख कौरव बहुत क्रोधित हुए और विशाल सेना सहित साम्ब पर आक्रमण किया। साम्ब अकेले ही इस सेना को भ्रमित कर लड़ने लगा। अन्ततः सभी ने मिलकर साम्ब पर अधिपत्य स्थापित किया। यह सुनकर बलराम दुर्योधन आदि के पास जाकर साम्ब को मुक्त कराने का आग्रह किया। परन्तु उसने बलराम से अहंकारपूर्ण बात की जिससे वह क्रोधित हो गया, उनका विनाश करने के लिए आगे बड़ा। वे सब भयभीत होकर बलराम के सामने आत्मसमर्पण करने लगे। तत्पश्चात् दुर्योधन ने अपनी पुत्री का विवाह साम्ब से कर दिया, और बहुत उपहारों के साथ प्रस्थान किया।
एकदा नारद जी द्वारका गये। द्वारका बहुत ही सुन्दर नगरी है, क्यारियों, झीलों, विभिन्न प्रकार के पक्षियों, फूलों, हवेलियों और महलों से भरी है। कृष्ण ने अपनी दिव्य पत्नियों के साथ सोलह हजार एक सौ आठ महलों का निर्माण किया और वे गृहस्थाश्रम धर्म का पालन करते हुए अपने शिशुओं के साथ व्यक्तिगत रूप में सभी महलों में जीवन यापन कर रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण ने अपनी प्रत्येक पत्नी से दस पुत्र व एक पुत्री को जन्म दिया।
नारद प्रत्येक महल में प्रवेश करते। सबसे पहले रुक्मिणी जी के गृह में प्रवेश किया जहाँ वे कृष्ण की बहुत सुन्दर सेवा कर रहीं थीं। नारद जी को देखते ही कृष्ण दौड़कर उनके पास आए उनके चरण प्रक्षालन कर सेवा की। आगे चलकर नारद जी ने देखा कि कृष्ण अपनी पत्नी और उद्धव के साथ खेल रहे हैं। वहां कृष्ण ने उनका स्वागत किया और स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली। इस प्रकार भिन्न -भिन्न महलों में भिन्न -भिन्न गतिविधियों को करते देखा। कहीं घोड़े पर सवार होकर और कहीं अनुष्ठान करते, कहीं आखेट करते और कहीं ब्राह्मणों की पूजा करते देखा। यह सब देखकर नारद कृष्ण के भिन्न-भिन्न स्वरूप देखकर अति आनन्दित हुए।
पेरियाळ्वार् ने अपने पेरियाळ्वार् तिरुमोऴि में श्रीद्वारिका जी में विराजमान कृष्ण भगवान के विषम में वर्णन किया, “पदिनाऱाम् आयिरवर् देविमार्पणिसेय्य तुवरै इन्नुम् अदिल् नायगरागि वीट्रिरुन्द मणवाळर्” (कृष्ण द्वारका में भगवान के रूप में रहे जिनकी सोलह हजार एक सौ आठ रानियों के द्वारा सेवित हो रहे हैं)।
सार-
- एम्पेरुमान् परमपुरुष (सर्वश्रेष्ठ पुरुष) हैं इसलिए बहुत आत्माएं उनको पति के रूप में वरण करना चाहतीं हैं। इसीलिए कृष्ण ने इस अवतार में उनसे विवाह किया और गृहस्थाश्रम धर्म का पालन किया और आनंद प्रदान किया।
- भगवान कृष्ण ने स्वयं श्रीभगवद्गीता में कहा है, “जबकि कृष्ण के लिए धर्म का पालन करने की बाध्यता नहीं है तब भी आदर्श बनने के लिए प्रत्येक कर्तव्य का उचित रूप से पालन किया।”
अडियेन् अमिता रामानुजदासी।
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