कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४३ – जरासन्ध का वध

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एक बार नारदजी द्वारका जी गये। कृष्ण उनके सत्कार के लिए आगे आए और उनकी स्तुति, सेवा की। वे सर्वत्र भ्रमण करते हैं इसलिए कृष्ण ने उनसे पूछा, “पांडव कैसे हैं?” उन्होंने उत्तर देते हुए कहा, “ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ करने के इच्छुक हैं”। वहां उपस्थित यादव पहले जरासंध का वध करना चाहते थे। इसके लिए कृष्ण अपने मंत्री उद्धव से परामर्श करते हैं। उद्धव ने मन्त्रणा दी, “पहले जरासंध जैसे बड़े शत्रु का वध करने के पश्चात् ही राजसूय यज्ञ कर सकते हैं।” कृष्ण ने तत्क्षण इंद्रप्रस्थ की ओर प्रस्थान किया जहाँ पांडवों ने श्रद्धापूर्वक सत्कार किया। कुछ मास वहाँ आनन्दपूर्वक रहे।

एकबार पांडवों की राजसभा में विराजमान कृष्ण के समक्ष युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ करने की जिज्ञासा व्यक्त की। कृष्ण ने स्वीकृति दी। तब युधिष्ठिर ने अपने भ्राताओं को सभी दिशाओं में भेजा और अन्य राजाओं को पराजित कर धन एकत्र कर लाए। वे जरासंध को पराजित कैसे करें यह चर्चा करने लगे। कृष्ण ने कहा कि जरासंध ब्राह्मणों का सम्मान करता है, इसका उपयोग कर उसे पराजित करना चाहिए। विशाल सेना लेकर उसको पराजित करना कठिन है जबकि व्यक्तिगत रूप से युद्ध के लिए आमन्त्रित करके पराजित किया जा सकता है। कृष्ण, भीम और अर्जुन ब्राह्मण वेश में जरासंध के यहाँ गए और उसकी प्रशंसा की। जरासंध ने उनसे कहा, “मैं आपकी कामना पूर्ण करुँगा।” कृष्ण ने उससे कहा, “तुम्हें हम में से किसी एक के साथ युद्ध करना होगा।” जरासन्ध समझ गया कि वे ब्राह्मण नहीं हैं और उनका वास्तविक रुप देखकर जरासंध ने भीम के साथ युद्ध करना स्वीकार किया।

युद्ध आरम्भ हुआ। उनको देखकर ऐसा लगा जैसे दो पर्वत एक दूसरे पर प्रहार कर रहे हैं। इस प्रकार यह युद्ध बहुत समय तक चलता रहा तब भीम ने कृष्ण की ओर देखा तब कृष्ण ने घास के तिनके के दो हिस्से कर दूर फेंक दिया। इस प्रकार जरासंध के शरीर के दो टुकड़े कर फेंक दिया और उसके वध के पश्चात् कृष्ण ने जरासंध के पुत्र को राज्य का राजा बना दिया। जरासंध के द्वारा कारागार में बंद राजाओं को मुक्त कराया। वे सब इंद्रप्रस्थ लौटे, और युधिष्ठिर इस बात से अति प्रसन्न हुआ तत्पश्चात् राजसूय यज्ञ की व्यवस्था करने लगे।

हमारे पूर्वाचार्यों ने आऴ्वारों के पासुरों की व्याख्या की है और भगवान का ध्यान करना और प्राप्ति का मार्ग बताया, और कहा कि किसी को काल यवन, जरासंध आदि के जैसे वध करने के स्थान पर भगवान का ध्यान करना चाहिए।

सार-

  • कोई कितना भी शक्तिशाली हो यदि उसमें कृष्ण की भक्ति नहीं है, तो वह शक्ति व्यर्थ है।
  • जो लोग राजसूय यज्ञ करते हैं उन्हें चक्रवर्ती के रूप में महिमामंडित किया जाए। इसी प्रसिद्धि को पाने के लिए युधिष्ठिर ने यज्ञ किया।
  • कृष्ण अपने भक्तों, पाण्डवों का मंत्री, मित्र आदि बनकर अनेक प्रकार से सहायता करते हैं।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी 

आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/19/krishna-leela-43-english/

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