कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ५५ – महाभारत युद्ध – भाग २

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः

श्रृंखला

<< सहस्रनाम

भीष्म की पराजय के पश्चात्, द्रोण कौरवों के सेनापति बने। भीषण युद्ध में बहुत योद्धा मारे जा रहे थे।

भीष्म ओर हिडिंबा का पुत्र घटोत्कच युद्ध के मैदान में आया और कौरवों की सेना के लिए एक बहुत बड़ा भय बन गया। अन्त में कर्ण के द्वारा वह मारा गया।

अर्जुन और सुभद्रा द्वारा जन्मे अभिमन्यु ने बड़ी वीरता से युद्ध किया। कौरवों ने द्रोण के नेतृत्व में उसे मारने के लिए चक्रव्यूह रचने की योजना बनाई। अभिमन्यु चक्रव्यूह भेद तो सकता था परन्तु उससे बाहर आना नहीं जानता था। युधिष्ठिर और अन्य सब ने कहा कि वे उसके पीछे-पीछे आएँगे और समर्थन करेंगे, चक्रव्यूह भेद करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसलिए वह चक्रव्यूह में चला गया। तभी कई महारथियों ने एकत्र होकर उसे मार डाला। बहुत से सैनिकों ने युधिष्ठिर को रोक लिया। अभिमन्यु को मारने के लिए जयद्रथ ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई।

अर्जुन की अनुपस्थिति में यह सब हुआ। उसके लौटने पर यह जानकारी मिली कि उसका पुत्र अभिमन्यु ने वीरता से युद्ध किया अन्त में कायरतापूर्ण ढंग से मार दिया गया। वह बहुत दु:खी और क्रोधित हुआ। उसने प्रतिज्ञा की कि वह अगले दिन सूर्यास्त से पहले अपने पुत्र की हत्या करने वाले जयद्रथ को मार देगा, यदि वह ऐसा न कर पाया तो स्वयं को मार डालेगा।

अगले दिन युद्ध आरम्भ हुआ और कौरवों ने सुनिश्चित किया कि अर्जुन जयद्रथ के पास न आने पाए। सूर्यास्त होने ही वाला था उसी समय, कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से सूर्य पर आवरण बना लिया, ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सूर्य अस्त हो गया है। दुर्योधन ने जयद्रथ को बाहर निकाला और अर्जुन से पूछा, “तुम आत्महत्या करने वाले हो?” उस समय कृष्ण ने चक्र हटा दिया और अर्जुन को आदेश दिया, “अब तुम एक बाण से जयद्रथ का सिर काट दो और सुनिश्चित करो कि, उसका सिर उसके पिता के हाथ पर गिरे।” अर्जुन ने ऐसा ही किया और जैसे ही जयद्रथ के पिता ने सिर नीचे डाल दिया, जो अप्रत्याशित रूप से उसके सिर पर आ गिरा, और उसकी म‌त्यु हो गई।

इस प्रकार कृष्ण ने अर्जुन को अभिमन्यु का हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए सहायता की।

आऴ्वारों ने अपने पासुरों में भगवान के द्वारा दिन को रात्रि में बदलते देखा।

  • पोय्गै आळ्वार् ने अपने मुदल् तिरुवन्दादि में वर्णन किया है, “मुयङ्गु अमरुळ् तेराऴियाल् मऱैत्तदु ऎन् नी तिरुमाले पोराऴिक्कैयाल् पॊरुदु” (हे श्रीमन्नारायण! महाभारत युद्ध में आपने अपने हाथ में चक्र लेकर सूर्य को क्यों आवरित कर दिया?)
  • तिरुमऴिशै आऴ्वार् ने अपने नान्मुगन् तिरुवन्दादि में वर्णन किया है, “वेङ्गदिरोन् मायप्पॊऴिल् मऱैय तेराऴियाल् मऱैत्ताराल्” (भगवान ने सूर्य को अपने चक्र से ढककर पूरे संसार को अन्धकारमय बना दिया।)
  • तिरुमङ्गै आऴ्वार् ने अपने पेरिय तिरुमोऴि में वर्णन किया है, “पाऴियाल् मिक्क पार्त्तनुक्कु अरुळिप्पगलवन् ऒळि कॆड पगले आऴियाल् अन्ऱु अङ्गु आऴियै मऱैत्तान् अरङ्गमा नगर् अमर्न्दाने” (श्रीरङ्गम में विराजमान श्रीरङ्गनाथ जिन्होंने दिन के समय सूर्य को चक्र से ढककर शक्तिशाली अर्जुन पर कृपा बरसाई।)

सार-

  • सुदर्शन चक्र सूर्य से भी तेजस्वी हैं। भगवान ने अपने चक्र द्वारा सभी की दृष्टि को अन्धकारमय कर दिया जैसे सूर्यास्त हुआ हो।
  • जयद्रथ को मारना अत्यावश्यक था। जो भी जयद्रथ के सिर को धकेलेगा वह मृत्यु को प्राप्त होगा-अर्जुन को उससे भी बचना चाहिए। इसीलिए भगवान ने युक्ति से सुनिश्चित किया कि अर्जुन उसका सिर काटकर उसके पिता के हाथ पर गिरा दे।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी

आधार – https://granthams.koyil.org/2023/10/31/krishna-leela-55-english/

संगृहीत: https://granthams.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – https://pillai.koyil.org

Leave a Comment