श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
नम्माऴ्वार् अपने तिरुवाय्मोऴि में वर्णन करते हैं, “कण्णन् कऴल् इनै नण्णुम् मनम् उडैयीर् ऎण्णुम् तिरुनामम् तिण्णम् नारणमे।” इसका तात्पर्य है कि जो लोग कृष्ण के चरण कमलों की प्राप्ति करना चाहते हैं उनको “नारायण” का ध्यान करना चाहिए।
हमारे श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में नारायण नाम और अष्टाक्षर मंत्र का बहुत महत्व है जिसमें यह नाम विराजित है। इस अष्टाक्षर मंत्र को तिरुमंत्र के रूप में स्वीकार किया जाता है। किसी मनुष्य को अपना शिष्य के रूप में स्वीकार करते हुए आचार्य इस मंत्र का निर्देश देते हैं। इस तिरुमंत्र की वेदों, ऋषियों, आऴ्वारों और आचार्यों ने बहुत महिमा गाई है। हम अर्थ पञ्चकम् (पाँच सिद्धांत) से हमारे आध्यात्मिक जीवन के लिए जो आवश्यक हैं उन्हें समझते हैं। अर्थ पञ्चकम् में जीवात्मा का स्वरूप (हमारा स्वरूप), परमात्मा का (भगवान का स्वरूप) स्वरूप, उपाय स्वरूप (भगवान को प्राप्त करने का साधन), उपेय स्वरूप (उन तक पहँचने के पश्चात् का लक्ष्य), विरोधी स्वरूप (वे बाधाएँ जो उन तक पहुंचने से रोकती हैं) सम्मिलित हैं।
इस भौतिक संसार में हमें इन महान सिद्धांतो की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए और अपने पूर्वाचार्यों द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करते हुए जीवन यापन करना चाहिए। इसके पश्चात् भगवान तक पहँच कर निरन्तर कैङ्कर्य करना चाहिए।
यदि हम भगवान के दिव्य गुणों और लीलायों का निरन्तर ध्यान करें तो हमारे पूर्वाचार्यों द्वारा बताए गए मार्ग से जीवन यापन करना सुलभ हो जाएगा। इस के अनुसार हमने कृष्ण की लीलाओं का सार सहित आनन्द लिया है।
आऴ्वार् एम्पेरुमानार् जीयर् तिरुवडिगळे शरणम्।
जीयर् तिरुवडिगळे शरणम्।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी।
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