आचार्य हृदयम् – ५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः 

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अवतारिका (परिचय)

इस सूत्र में जीवात्मा को प्राप्त होने वाले ऐसे सुख और दु:ख का कारण समझाया है।

चूर्णिका – ५

अनन्तक्लेश निरतिशयानन्द हेतु – मऱन्देन् अऱियगिलादे उणर्विलेन् एणिलेन् अयर्तॆन्ऱुम् उय्युम् वगै निन्ऱवॊन्ऱै नन्गऱिन्दनन् उणर्विनुळ्ळे आम्बरिसॆन्ऱुम् सॊल्लुगिऱ ज्ञातव्य पञ्चक ज्ञान अज्ञानङ्गळ्

सामान्य व्याख्या

इस अनन्तक्लेश और निरतिशयानन्द (अनन्त सुख और परमानन्द) का कारण – अर्थ पञ्चकम् का अज्ञान होना और अर्थ पञ्चकम् का ज्ञान होना है, जिसका ज्ञान आवश्यक है।

व्याख्यान (टीका टिप्पणी)

अनन्तक्लेश हेतु

जैसे कि जितन्ते श्लोक १-४ में बताया है सम्सार सागरं घोरम् अनन्तक्लेश भाजनम्। त्वामेव शरणं प्राप्य निस्तरन्ति मनीषिषण:।।” (यह  संसार अनन्त दु:खों से भरा सागर है और बहुत क्रूर है। जो अपने हृदय को नियन्त्रण में रखेंगे वे आपको उपाय स्वरूप में प्राप्त करेंगे और इस भवसागर से पार होंगे), इस भौतिक संसार के साथ सम्बन्ध से उत्पन्न अनन्त दु:खों का कारण है – अर्थ पञ्चकम् के विषय में अज्ञानता और जिसमें १) पर (भगवान) के विषय में ज्ञानहीन होना है जैसे कि पेरिय तिरुमोऴि ६.२.२. में वर्णन है मऱन्देन् उन्नै मुन्नम्” (मैं पहले से ही आप के विषय में अज्ञानी हूँ), २) आत्मा (स्वयं) जैसे कि तिरुवाय्मोऴि २.९.९. “एन्नै अऱियगिलादे (स्वयं से अनभिज्ञ), ३) विरोधी (बाधाएं) जैसे पेरिय तिरुमोऴि १.६.६. “ओडियुम् उऴन्ऱुम् उयिर्गळे कॊन्ऱेन् उणर्विलेन् (ऐसी बुद्धि जो सात्विक विषयों में संलग्न नहीं है, दूसरों को क्रोधित करने वाले कार्य करना, कुत्तों के साथ शिकार खेलने में आनन्दित होना, दूर भगाना, पीड़ित करना, जीवों को मारना), ४) उपाय (साधन) जैसे कि पेरिय तिरुमोऴि १.६.१. में वर्णन किया है “पिऱवि नोय् अऱुप्पान् एणिलेन् इरुन्देन्” (मैं जो मूर्ख हूँ, मैंने संसार (जन्म/मृत्यु के चक्र) जैसी व्याधि से मुक्त होने का नहीं विचार किया), ५) पुरुषार्थ (लक्ष्य) जैसे कि पेरिय तिरुवन्दादि ८२ में कहा है कि “अऴियङ्गै अम्मानै एत्तादु अयर्त्तु” (अज्ञानी होने के कारण, एम्पेरुमान् की स्तुति नहीं कर रहा हूँ जिनके दिव्य हस्त में अङ्गुठी थी)।

निरतिशय आनन्द हेतु

जैसे कि श्रीविष्णु पुराण ६.५.५९ “निरस्तातिशय आह्लाद सुखभावैक लक्षण” (वह सत् आनन्द जो इस सांसारिक आनन्द को नष्ट करने में सक्षम है),‌ भगवान की प्राप्ति के रूप में मोक्ष के द्वारा प्राप्त अतिशय आनन्द का कारण‌ है – अर्थ पञ्चकम् का ज्ञान जिसे नीचे दिए गए विषयों को ज्ञात करना है- १) पर (भगवान) जैसे पेरिय तिरुमोऴि में ६.३.६ में वर्णन किया है “निन्नै नॆञ्जिल् उय्युम् वगै उणर्न्देन्” (मैंने अपने मोक्ष प्राप्ति के लिए आपको अपने हृदय में अनुभव किया), २) आत्मा जैसे कि तिरुवाय्मोऴि ८.८.४ में वर्णित है “निन्ऱ ऒन्ऱै उणर्न्देने” (मैं उसको जान गया जिसका अर्थ “अहम्” (मैं) है), ३) विरोधी जैसे कि तिरुवाय्मोऴि ५.७.८ में वर्णन किया है, “अगट्र नी वैत्त माय वल् ऐम्पुलङ्गळ् आम् अवै नन्गऱिन्दनन्” (मैंने वास्तव में आपके द्वारा निर्मित इन्द्रियों को गहराई से समझ लिया है, जिनका स्वरूप अद्भुत है (जो मिश्रित नहीं हैं) न ही उन्हें पराजित किया जा सकता है, जो आपसे विमुख होते हैं उनको नष्ट करने के लिए), ४) उपाय जैसे कि तिरुवाय्मोऴि ८.८.३ में वर्णन किया है “अवनदरुळाल् उऱल् पॊरुट्टु ऎन् उणर्विल् उळ्ळे इरुत्तिनेन् अदुवुम् अवनदिन्नरुळे” (उनकी कृपा से भगवान तक पहुँचने के लिए, जो विपुल ज्ञान से युक्त नित्यसूरियों के नियंत्रक हैं, विशिष्ट हैं, मैंने उन्हें अपने ज्ञान में रखा जो इच्छा के रूप में है; वह इच्छा भी उनकी अहैतुकी कृपा के कारण उत्पन्न हुई थी) और ५) पुरुषार्थ जैसे कि तिरुमालै ३८ में वर्णन किया है “आम् परिसु अऱिन्दुकोशॊण्डु” (भगवद् कैङ्कर्य (भगवान की सेवा) को जानना जोकि आत्मा के वास्तविक स्वरूप के लिए पुरुषार्थ (फल) है)।

इसके साथ, जबकि यह कहा गया है “ज्ञानान् मोक्ष: अज्ञानात् सम्सार:” (ज्ञान मोक्ष की ओर अग्रसर होता है और अज्ञानता बंधन की ओर ले जाता है) जैसे कि हारीत स्मृति ८-१४१ “प्राप्यस्यब्रह्मनो रूपमं प्राप्त उच्च प्रत्यगात्मनः। प्राप्त्युपायं फलं प्राप्तेस् तता प्राप्ति विरोधी च। वदन्ति सकल वेदाः सेतिहास पुराणका:। मुन्यश्च महात्मानो वेद वेदार्थ वेदिनी:।।” (सभी वेद, इतिहास और पुराणों सहित, और वे महान ऋषि जो वेदों के पाठ और अर्थ के ज्ञाता हैं वे अर्थ पञ्चकम् के बारे में वर्णन करते हैं – ब्रह्म का स्वरूप जिसे प्राप्त करना है, जीवात्मा का स्वरूप जो ब्रह्म को प्राप्त करता है, उपाय [जीवात्मा ब्रह्म को प्राप्त करने के लिए], ब्रह्म को प्राप्त करने के पश्चात् [जीवात्मा को] मिलने वाला पुरुषार्थ और प्राप्ति में आने वाली बाधाएँ), अर्थ पञ्चकम् का ज्ञान न होना, जो सारे शास्त्रों का सार है और जिसको आत्मा की मुक्ति के लिए जानना आवश्यक है, और इसी का ज्ञान होना क्रमशः बंधन और मोक्ष के कारण हैं।

अडियेन अमिता रामानुजदासी 

आधार – https://granthams.koyil.org/2024/02/28/acharya-hrudhayam-5-english/

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