श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः
अवतारिका (परिचय)
जब यह प्रश्न पूछा गया, “इस अज्ञानता का मूल कारण क्या है?” तब इसका स्पष्टीकरण यहां दिया गया है।
चूर्णिका – ६
इवट्रुक्कु कारणम् इरण्डिल् ऒन्ऱिनिल् ऒन्ऱुगैगळ्।
सामान्य व्याख्या
इसका (ज्ञान और अज्ञान का) कारण रजस और तमस में लीन रहना है।
व्याख्यान (टीका टिप्पणी)
अर्थात् – अर्थ पञ्चकम् में अज्ञानता का कारण रजस (राग), तमस (अज्ञान) जैसे गुणों की अधिकता है, जैसे कि तिरुच्चन्द विरुत्तम् ६८ “मुत्तिऱत्तु वणियत्तु इरण्डिल् ऒन्ऱु” (सत्व, रजस और तमस तीन गुणों में रजस और तमस के साथ संयोजन), अर्थ पञ्चकम् में ज्ञान का कारण सत्व (भला) गुणों की अधिकता है जैसे कि तिरुवेऴुकूट्रिरुक्कै “मुक्कुणत्तु इरण्डवै अगट्रि ऒन्ऱिनिल् ऒन्ऱि निन्ऱु” (सत्वगुण (शान्ति) पर ध्यान केंद्रित करें, और दो अन्य गुणों (रजस, तमस) से बचाव करें)। जबकि रजस और तमस अन्यथा ज्ञान की ओर ले जाते हैं (एक तथ्य को कुछ और समझना) और विपरीत ज्ञान (किसी तथ्य की गुणवत्ता को त्रुटिपूर्ण ढंग से समझना) की ओर ले जाते हैं। सत्वम् सच्चे यथा ज्ञान (सच्चा ज्ञान) की ओर ले जाता है।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
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