आचार्य हृदयम् – १२

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अवतारिका (परिचय)

यहाँ पर इस शंका का निवारण किया गया है कि, “क्या (अचित और भगवद् सम्बन्ध) ये दोनों सम्बन्ध जो अनादिकाल से हैं आत्मा के लिए स्थायी हैं?”

चूर्णिका १२

ऒन्ऱु कूडिनदाय्प् पट्रऱुक्क मीण्डु ऒऴिगैयाले पऴवडियेन् ऎन्नुम् अदु ऒन्ऱुमे ऒऴिक्क ऒऴियाददु।

सरल व्याख्या 

जबकि अचित के साथ सम्बन्ध अस्वभाविक है और भगवान के साथ सम्बन्ध स्वाभाविक है और भगवान में आत्मा के अचित के साथ सम्बन्ध का नाश करने का सामर्थ्य है इस कारण से भगवान के साथ सम्बन्ध स्थायी हैं।

व्याख्यान (टीका टिप्पणी)

अर्थात् जैसे कि पेरिय तिरुमोऴि १.१.१ “पॆरुन्दुयर् इडुम्बैयिल् कूडिनेन्” (भयंकर दु:ख को प्राप्त करने वाला, सभी दु:खों का कारण इस देह में जन्म लेना) आत्मा का अचित के साथ सम्बन्ध स्वाभाविक नहीं, परन्तु संयोगवश अर्जित है, जैसे कि पेरिय तिरुमोऴि ११.४.१ “विनै पट्रऱुक्कुम्” (पापों के प्रति आसक्ति का नाश होना है); क्योंकि सर्वशक्तिमान भगवान इस अचित संबंध के साथ ही उसकी रुचि भी समाप्त करते हैं, यह (अचित संबंध) समाप्त हो जाएगा, जैसे कि मुदल् तिरुवन्दादि ५९ “अडैन्द अरुविनैयोडु अल्लल् नोय् पावम् मिडैन्दु अवै मीण्डॊऴिय” (अज्ञानता, हृदय का शूल, शारीरिक रोग (भौतिक शरीर), पाप कर्म, वे पाप जो भौतिक शरीर प्राप्त करने के लिए कारण, कारक हैं, इन जैसे भयंकर कृत्यों से मुक्त होना)।

अतः अनादिकाल से शाश्वत शेष-शेषी सम्बन्ध (अधिपति-सेवक सम्बन्ध) है, जैसे कि तिरुप्पल्लाण्डु ११ में कहा गया है कि, “तिरुमाले नानुम् उनक्कुप् पऴ अडियेन्” (हे श्रीमहालक्ष्मी के नाथ! मैं आपका शाश्वत दास हूँ, नाथ!), चेतना (आत्मा) और ईश्वर (भगवान) दोनों द्वारा विच्छिन्न नहीं किया जानेवाला संबंध है, जैसे कि तिरुप्पावै २८ पासुर में वर्णित है, “उऱवेल् नमक्कु इङ्गु ऒऴिक्क ऒऴियाददु” (आपके साथ हमारा सम्बन्ध न तो आपके द्वारा और न हीं हमारे द्वारा विच्छिन्न किया जा सकता है)।

इसके अतिरिक्त यह भी वर्णन किया है कि अचित सम्बन्ध संयोगवश और कर्म के कारण है, इसलिए यह नित्य है, भगवद्सम्बन्ध अनादिकाल से हैं और अकारणवश है और नित्य है। परन्तु जो सम्बन्ध संयोगवश हैं उन्हें अनादि (जिसका आरम्भ का समय न हो) क्यों कहा जाता है? क्योंकि इसके आरम्भ का ज्ञान नहीं है और शास्त्र में भी अनादि ही वर्णन है, इसलिए अनादि (न आरम्भ हो) माना जाता है। क्योंकि इसका एक दिन भगवान की कृपा कटाक्ष से अन्त हो जाता है, इसलिए इसे संयोगवश मानना निश्चित है।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी

आधार – https://granthams.koyil.org/2024/03/07/acharya-hrudhayam-12-english/

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