श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
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अवतारिका
श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक इस प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं “यदि प्रपत्ती के लिए ऐसे प्रतिबंध नहीं हैं, तो किस प्रक्रिया में ऐसे प्रतिबंध हैं?”
सूत्रं – २५
कर्मत्तूक्कु पुण्य क्षेत्रम्, वसन्तादि कालम्, शास्त्रोक्तङ्गळान तत्तत् प्रकारङ्गळ्, त्रैवर्णिकर् ऎन्ऱु इवै ऎल्लाम् व्यवस्थितङ्गळायिरुक्कुम्।
सरल अनुवाद
[वैधिक] कर्म (नियत गतिविधियों) के लिए, पवित्र निवास स्थान, समय अवधि जैसे वसंत ऋतु आदि, शास्त्र में बताई गई विधियाँ, त्रैवर्णिक ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य करने वाले सभी अनिवार्य हैं।
व्याख्यान
कर्मम् – ज्योतिष्टोम यज्ञ आदि।
पुण्य क्षेत्रम् – शास्त्र में बताए गए दिव्य स्थल।
वसंतादि कालम् – वसंतादि अर्थात ग्रीष्म ऋतु, शरद ऋतु, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष, पूर्वाह्न (दिन का समय), अपराह्न (शाम का समय) जैसे अवधियों को इंगित करता है। काल पर आधारित प्रतिबंध जैसे कि “वसन्ते वसन्ते ज्योतिषा यजेत” (ज्योतिष्ठोम हर वसंत ऋतु में किया जाना चाहिए) में दिखाया गया है
शास्त्रोक्तङ्गळान तत्तत् प्रकारङ्गळ् – शौच (प्रक्षालन), आचमन (मंत्र के साथ पानी पीना), स्नान, व्रत (प्रतिज्ञा), जप आदि चरण जो प्रत्येक कर्म के अनुसार निर्धारित हैं।
त्रैवर्णिकर् – क्योंकि केवल वे ही जिन्होंने उपनयन संस्कार प्राप्त किया है और विशेषज्ञ बनने के लिए वेद का अध्ययन करते हैं, वैदिक कर्म में संलग्न होने के योग्य हैं। ये अन्य योग्यताओं के लिए उपलक्षण (नमूना) हैं जैसे कि गृहमेधि (गृहस्थ होना), कृष्ण केश (काले बाल) होना, वेद वेदांग युक्त होना (वेद और वेद के सहायक विषयों में विद्वान होना) आदि।
व्यवस्थितङ्गळायिरुक्कुम् – ये नियत/स्थापित हैं।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार – https://granthams.koyil.org/2021/01/03/srivachana-bhushanam-suthram-25-english/
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