श्रीवचनभूषण – सूत्रं २६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

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अवतारिका

अपने पूर्व व्रत प्रपत्ती को समझाने के लिए, जिसमें पहले उल्लेखित कोई भी प्रतिबंध नहीं है, पहले  श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी स्थान और समय के आधार पर प्रतिबंध की न्यूनता की व्याख्या कर रहे हैं।

सूत्रं – २६ 

“स एष देशः कालः” ऎङ्गैयाले इदुक्कु देश काल  नियमम् इल्लै।

सरल अनुवाद

जैसे कि “स एष देशः कालः”, में कहा गया है स्थान और समय के आधार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं हैं। 

व्याख्यान

“स एष देशः कालः” …

[श्री विभीषणजी के शरणागति के समय] पहले श्री जाम्बवंत और सुग्रीव महाराज ने विनम्रतापूर्वक अपना विषय प्रस्तुत किया था जैसा कि श्रीरामायण युद्ध कांड १७.५७ में कहा गया है बद्ध वैराच्च पापाच्च राक्षेसेन्द्राद्विभीषणः । अदेश काले सम्प्राप्तस्सर्वथा शङ्क्यतामयम् ।। (यह विभीषण जो रावण के यहाँ  से आ रहा है, जो बहुत शत्रुतापूर्ण है और (सीता माता के प्रति) पापी है, अनुचित समय पर अनुचित स्थान पर आ गया है; उस पर पूरा संदेह किया जाना चाहिए); हनुमान इसका खंडन करते हैं जैसा कि श्रीरामायण युद्ध कांड १७.५६ से १७.५८ में कहा गया है “अदेश काले सम्प्राप्त इत्ययं यद्विभीषणः । विवक्षा तत्रमेऽस्तीयं तां निबोध यथा मति ।। स एष देश: कालश्च भवतीति यथा तथा । पुरुषात्पुरुषं प्राप्य तथा दोष गुणावपि ।। दौरात्म्यं रावणे दृष्टवा विक्रमंच तथा त्वयि । युक्तमागमनंह्यत्र सदृशं तस्य बुद्धितः ।।”

(इन श्लोकों को श्रीवरवरमुनि स्वामीजी बहुत सुन्दरता एक व्याख्या रूप में विस्तार से समझाते हैं)।  

[हनुमानजी कहते हैं] आपके महामहिम मंत्रियों द्वारा यह घोषणा की गई थी कि श्रीविभिषणजी, जिनका रावण ने अपमान किया था, अनुचित समय पर अनुचित स्थान पर पहुँचे, अपना नीच स्वभाव दर्शाता हुए; इस सन्दर्भ में मेरी एक इच्छा है। वह जब आये, जो समय था और जो स्थान था, उस समय और स्थान की उपयुक्तता के विषय में कृपया मुझसे सुनें। वह है,

  • रावण जो स्वभाव से तामसीक (अज्ञानी) है, सदा दूसरों को हानि पहुँचाने पर केंद्रित रहता है। दूसरी ओर, महामहिम, स्वभाव से अत्यंत सात्विक (अच्छे) होने के कारण, सदैव दूसरों की रक्षा करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसलिए उसने अपने स्थान पर आपको ही लक्ष्य माना।
  • और, यदि वह रावण को नहीं छोड़ता है, तो वह रावण के बुरे कार्यों में उसकी सहायता करेगा और उसे ऐसी शत्रुता से मारे जाने का दोष लगेगा। किंतु यदि वह आप महामहिम के साथ जुड़ जाता है जो धार्मिक हैं, तो उसे आप महामहिम के दिव्य चरणों की सेवा का फल मिलेगा, जिससे एक महान जीवन प्राप्त होगा। इन्हीं दो पहलुओं पर विचार करते हुए वह यहाँ आये।
  • साथ ही, रावण की दुष्ट प्रकृति को देखकर, जिसने आपके दिव्य हृदय को चोट पहुँचाने के लिए सबसे क्रूर पाप किया था, और आपके दुष्ट व्यक्तियों को सहजता से नष्ट करने का पुरुषत्व को देखकर, एक बुद्धिमान व्यक्ति के लिए यह आगमन उपयुक्त है।
  • इसके अतिरिक्त, जो सही सोच रखता है, उसके लिए यह उपयुक्त है।

इस प्रकार, क्योंकि तिरुवड़ी (हनुमान) जो शरणागति धर्म (समर्पण की प्रक्रिया) में पारंगत हैं, यह निर्धारित करते हैं कि “ऐसे व्यक्ति को उस स्थान और समय में दोष देखने की आवश्यकता नहीं है जब श्री विभीषण आऴ्वान, जो अपने मन में बहुत शुद्ध हैं, आये थे। वे जहाँ भी जब पहुँचते हैं, वही उचित स्थान और समय है”, यह कहा जा सकता है कि प्रपत्ती के लिए स्थान और समय के आधार पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/01/04/srivachana-bhushanam-suthram-26-english/

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