श्रीवचन भूषण – सूत्रं २९

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जब पूछा गया “हमने वह कहाँ देखा?” श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी पूर्व निर्देशित पहलुओं से दिखा रहे हैं।

सूत्रं – २९

द्रौपदी स्नातैययन्ऱे प्रपत्ती पण्णिट्रु; अर्जुनन् नीसर् नडुवेयिऱे इव्वर्थम्  केट्टदु। 

सरल अनुवाद

द्रौपदी ने (अपने मासिक धर्म में) ऋतु स्नान किए बिना प्रपत्ती की। अर्जुन ने नीच लोगों के मध्य प्रपत्ती का अर्थ सुना।

व्याख्यान

द्रौपदी …

स्नातैययन्ऱे प्रपत्ती पण्णिट्रु – दुशासन द्वारा घसीटे जाने पर भव्य सभा में पहुँचते समय, द्रौपदी ने, अशुद्ध अव्सथा में, बिना स्नान किए प्रपत्ती की, जैसा कि महाभारत सभा पर्व में कहा गया है “रजस्वलैक वस्त्राहं नतुमाम्नेतुम् अर्हसि | गुरुणाञ्च पुरःस्तातुं सभायां नाहम् उत्सहे ||”  (मुझे, मासिक धर्म में,  एक वस्त्र पहने हुए  काल‌ में घसीटकर‌ ले जाना उचित नहीं है। मैं गुरुओं के सामने और विशाल सभा में उपस्थित होना सहन नहीं कर सकती); इस से- यह दिखाया गया है कि शरणागति करने से पहले अनुष्ठानिक रूप से शुद्ध होने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

नीसर् नडुवेयिऱे इव्वर्थम्  केट्टदु – यहाँ, नीसर् (नीच व्यक्ति) अर्थात उन प्रतिकूल व्यक्तियों से, जिन्हें “शौरिचिन्ता” (कृष्ण को याद करते हुए) के रूप में जाना जाता है, जैसा कि पेरिय तिरुमोऴि ११.६.८  में श्रीपरकाल स्वामीजी (तिरुमङ्गै आऴ्वार्) द्वारा दयापूर्वक कहा गया है “नॆडुन्तगयै निनैयादार् नीसर् तामे” (जो लोग सर्वेश्वर के बारे में नहीं सोचते हैं वें बहुत नीच)।

जो लोग भगवान से विमुख हो जाते हैं,  उन्हें सबसे नीच कुत्ता खाने वाला कहा जाता है, जैसे “विष्णु भक्ति विहीनस्तु यतिश्च स्वपचादामः” (जो विष्णु के प्रति भक्ति से रहित है, भले ही वह यति हो, वह कुत्ते खाने वाले से भी कम है); श्रीभागवतम् “विप्रात् द्विषट् गुणयुतात् अरविन्दनाभ| पादारविन्द विमुखाच् च्वपचं वरिष्ठम् ||”  (एक कुत्ता खाने वाला उस ब्राह्मण से बड़ा है जिसमें बारह प्रमुख गुण होकर भी वह उस पुरुष के दिव्य चरण कमलों के प्रति प्रतिकूल है जिसकी नाभि कमल है); इसके अतिरिक्त, सेनाओं में वे कर्म चाण्डाल (जिन्होंने अपने कार्यों से कुत्ते खाने वाले के गुण प्राप्त कर लिए हैं) उपस्थित हैं,  जैसा कि ब्रह्माण्ड पुराण में कहा गया है “सद्यश चण्डाळतं व्रजेत्” ( तुरंत चाण्डाल का स्वभाव प्राप्त कर लेंगे) श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित द्रौपदी का अपमान करने के कारण और श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित पाण्डवों के साथ बुरा करने के कारण।

नीसर् नडुवे– ऐसा कहने से ऐसा प्रतीत होता है कि अर्जुन को जो दीनता प्राप्त हुई है, वह नीच लोगों से निकटता के कारण है। इससे प्रपत्ति के बारे में सुनते समय नीच व्यक्तियों के बीच ऐसा नहीं किया जा सकता  का प्रतिबन्ध निरस्त हो जाता है।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार – https://granthams.koyil.org/2021/01/07/srivachana-bhushanam-suthram-29-english/

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