श्रीवचन भूषण – सूत्रं ३४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

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अवतारिका

इस प्रकार, श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी ने प्रपत्ती के स्थान, समय आदि के आधार पर प्रतिबंध न होने के अपने कथन को समझाया। इसके अतिरिक्त, वे प्रपत्ती के विषय नियम (जिसके प्रति समर्पण किया जाता है उस इकाई के आधार पर प्रतिबंध) के कथन की व्याख्या कर रहे हैं।

सूत्रं – ३४

विषय नियममावदु – गुण पूर्तियुळ्ळ इडमे विषयमागै; पूर्तियुळ्ळदुम् अर्चावदारत्तिले।

सरल अनुवाद

समर्पण के लक्ष्य के आधार पर प्रतिबन्ध है – जो सर्वगुण सम्पन्न होने के कारण समर्पण का विषय है; ऐसी पूर्णता अर्चावतार में विद्यमान है।

व्याख्यान

विषय नियममावदु …

गुण पूर्तियुळ्ळ इडमे विषयमागै– भगवान के पांच रूप, अर्थात पर-स्वरूप (परमपद में विद्यमान रूप), व्यूह-स्वरूप (क्षीरसागर में विद्यमान रूप), विभव-स्वरूप (विविध अवतार), अंतर्यामी-स्वरूप (आत्मा में निवास) और अर्चा-स्वरूप (विग्रह रूप), इनमें वह रूप जो गुणों से युक्त है जैसे सौलभ्य (आसान पहुँच) वही समर्पण का लक्ष्य है।

जब पूछा गया कि गुणों की इतनी पूर्णत: कहाँ है, तो श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कहते हैं, “पूर्ति उळ्ळदुम् अर्चावतारत्तिले”। अर्चावतार में गुणों की पूर्णता को स्वाभाविक रूप से सर्वज्ञ भगवान द्वारा भी पूरी तरह से समझाया नहीं जा सकता है जैसा कि पद्म संहिता में कहा गया है “अर्चावतार विषये मयाप्युत्तेचतस्तथा | उक्ता गुणा न शक्यन्ते वक्तुम् वर्षशतैर्पि ||” (भले ही कोई सौ वर्षों तक बोलने का यत्न करे, लेकिन अर्चावतार के गुणों को समझाना संभव नहीं है। यहाँ तक कि मैं भी अर्चावतार के गुणों को संक्षेप में नहीं बता सकता [क्योंकि यह असीम रूप से विशाल है])।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/01/16/srivachana-bhushanam-suthram-34-english/

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