श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
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अवतारिका
जब पूछा गया “उस विषय में, प्रपत्ती की वास्तविक प्रकृति क्या है?” श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक समझाते हैं।
सूत्रं – ५५
इदु तनक्कु स्वरूपम् तन्नैप् पॊऱादॊऴिगै।
सरल अनुवाद
प्रपत्ती का वास्तविक स्वरूप यह है कि वह स्वयं को उपाय के रूप में स्वीकार नहीं करेगी।
व्याख्या
इदु तनक्कु …
इदु तनक्कु स्वरूपम्
प्रपत्ती की विशिष्ट प्रकृति क्या है?
तन्नैप् पॊऱादॊऴिगै
प्रपत्ती जो उपाय (भगवान्, साधन) का अनुसरण है, वह उपाय कहे जाने को सहन नहीं करेगी। अर्थात् – जब तक ऊपर-ऊपर से न देखा जाए, यह प्रपत्ती उपाय माने जाने योग्य नहीं होगी।
वैकल्पिक रूप से,
तन्नैप् पॊऱादॊऴिगै
कोई अतिरिक्त शब्द जोड़े बिना [सूत्र में, यह समझा जा सकता है कि], यह स्वयं को उपाय करना सहन नहीं करेगा, हालाँकि इसे एक माना जाता है।
किसी भी दशा में, उपाय के रूप में स्वयं को सहन न करना ही इसका अर्थ है।
अडियेन् केशव रामानुज दास
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