श्रीवचन भूषण – सूत्रं ५५

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जब पूछा गया “उस विषय में, प्रपत्ती की वास्तविक प्रकृति क्या है?” श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी  दयापूर्वक समझाते हैं।

सूत्रं – ५५

इदु तनक्कु स्वरूपम् तन्नैप् पॊऱादॊऴिगै।

सरल अनुवाद

प्रपत्ती का वास्तविक स्वरूप यह है कि वह स्वयं को उपाय के रूप में स्वीकार नहीं करेगी।

व्याख्या

इदु तनक्कु …

इदु तनक्कु स्वरूपम्

प्रपत्ती की विशिष्ट प्रकृति क्या है?

तन्नैप् पॊऱादॊऴिगै

प्रपत्ती जो उपाय (भगवान्, साधन) का अनुसरण है, वह उपाय कहे जाने को सहन नहीं करेगी। अर्थात् – जब तक ऊपर-ऊपर से न देखा जाए, यह प्रपत्ती उपाय माने जाने योग्य नहीं होगी।

वैकल्पिक रूप से,

तन्नैप् पॊऱादॊऴिगै

कोई अतिरिक्त शब्द जोड़े बिना [सूत्र में, यह समझा जा सकता है कि], यह स्वयं को उपाय करना सहन नहीं करेगा, हालाँकि इसे एक माना जाता है। 

किसी भी दशा में, उपाय के रूप में स्वयं को सहन न करना ही इसका अर्थ है।

अडियेन् केशव रामानुज दास 

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/03/02/srivachana-bhushanam-suthram-55-english/

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