श्रीवचन भूषण – सूत्रं ६९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

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अवतारिका

श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी इस सिद्धांत की विश्वसनीयता स्थापित करने के लिए दयापूर्वक श्रीवेदांति स्वामीजी के शब्दों को उद्धृत करते हैं (भगवान ही एकमात्र साधन हैं)।

सूत्रं – ६९

“अन्तिम कालत्तुक्कुत् तञ्जम् इप्पोदु तञ्जम् ऎन् ऎन्गिऱ निनैवु कुलैगै ” ऎन्ऱु जीयर् अरुळिच्चॆय्वर्।

सरल अनुवाद

श्रीवेदांति स्वामीजी दयापूर्वक समझाते थे, “अंतिम क्षण का आश्रय ‘यह विचार छोड़ देना है कि अब आश्रय क्या है?”

व्याख्या

अन्तिम कालत्तुक्कु …

अर्थात – एक बार श्रीवेदांति स्वामीजी एक श्रीवैष्णव का हालचाल पूछने गए जो उनके शिष्यों में से एक थे। उस समय उन श्रीवैष्णवर ने पूछा “कृपया मुझे एक बुद्धिमान उपदेश दें जो मेरे अंतिम क्षणों में मेरे लिए आश्रय होगा। श्रीवेदांति स्वामीजी ने कृपापूर्वक उन्हें उपदेश दिया – अंतिम क्षणों के लिए आश्रय यही है कि स्वयं की रक्षा का विचार कि “अब क्या आश्रय है” ऐसे सोचना त्याग दिया जाए । इस प्रकार आत्मा के उत्थान के लिए ईश्वर के विचार फलीभूत होंगे यदि आत्मा की स्वयं की रक्षा करने की सोच बदल जाती है (अर्थात जब वह इसे त्याग देता है)।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/03/21/srivachana-bhushanam-suthram-69-english/

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